हिन्दू धर्म में प्राचीनकाल से ही पांच संप्रदायों का प्रचलन रहा है:- शैव, वैष्णव, शक्त, वैदिक और स्मार्त। सभी संप्रदाय के अलग-अलग नियम और संस्कार होते हैं लेकिन सभी में दो तरह के विभाजन भी होते हैं, जैसे एक वह समूह जिसे समाज में संस्कार, कर्मकांड, यज्ञ, मंदिर आदि के कार्यों को सुचारू रूप से संपन्न करने या कराने की जिम्मेदारी सौंप रखी है। दूसरा वह समूह जिसे साधु समाज कहते हैं जो समाज को धर्म का मार्ग बताता है, आश्रम में रहकर शिक्षा और दीक्षा देता है और जो धर्म की रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत होता है। उक्त पांचों संप्रदाय में यह दो तरह के विभाजन होते हैं।
चोटी रखने का महत्व :
सुश्रुत संहिता में लिखा है कि मस्तक के भीतर ऊपर जहां बालों का आवृत (भंवर) होता है, वहां सम्पूर्ण नाडिय़ों व संधियों का मेल है, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता है। यहां पर चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है। सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख आदि का संबंध है और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, इंद्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंगंग से है। मस्तिष्क मस्तुलिंगंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। मस्तिष्क ठंडक चाहता है औमस्तुलिंगंग गर्मी। मस्तिष्क को ठंडक पहुंचाने के लिए क्षौर कर्म करवाना औमस्तुलिंगंग को गर्मी पहुंचाने के लिए गोखुर के परिणाम के बाल रखना आवश्यक है। बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक समस्तुलिंगंग की रक्षा करते हैं।'
चोटीधारी और जटाधारी :
पहला जो कर्मकांड, संस्कार आदि को संपन्न कराता है वह प्राचीनकाल में चोटीधारी होता था उसके सिर पर सिर्फ चोटी ही होती थी। दूसरा वह जो धर्म, शिक्षा और दीक्षा का कार्य करता था वह दाड़ी और जटाधारी होता था। लेकिन कालांतर में समाज के यह विभाजन बदलते गए। शास्त्रों के अनुसार चोटी की लंबाई और आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होनी आवश्यक मानी गई है जबकि वर्तमान में इसका ध्यान नहीं रखा जाता। प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदंड के समान माना जाता था।
चोटी या शिखा रखने के कारण:
वैष्णव पंथी जब मुंडन कराते हैं तो चोटी रखते हैं और शैव पंथी जब मुंडन कराते हैं तो चोटी नहीं रखते हैं। मुंडन कराने के कई मौके होते हैं। पहला जब पैदा होने के बाद जब पहली बार बाल उतारे जाते हैं, दूसरा जब परिवार आदि में कोई शांत हो जाता है तब, तीसरा विशेष तीर्थ आदि में और चौथा किसी विशेष पूजा या कर्मकांड में।
चोटी रखने के कई कारण होते हैं। बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। चोटी या शिखा रखने का संस्कार बच्चे के मुंडन और उपनयन संस्कार के समय किया जाता है। जब यज्ञोपवित धारण की जाती है तब भी मुंडन संस्कार में चोटी रखी जाती है। यज्ञोपवित कोई भी संप्रदाय का व्यक्ति धारण कर सकता है। जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है उसे सहस्त्रार चक्र कहते हैं। उस स्थान के ठीक नीचे आत्मा का निवास होता है जिसे ब्रह्मरंध कहा गया है। चोटी रखने के बाद उसमें गठान बांधी जाती है।
सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचोबीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है। भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है। विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। हमारे ऋषियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था।
इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है इसीलिए चोटी का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है।
मिशन विचार क्रांति शान्तिकुंज हरिद्वार के अनुसार असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी रखने के स्थान के सीधे नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, जो कपाल तंत्र के अन्य खुली जगहों (मुंडन के समय) की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील भी होती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्मांड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को कैच यानी कि ग्रहण भी करती है।
इस तरह से चोटी रखना घातक?
फैशन के चलते भी कई पुरुष महिलाओं की तरह भी चोटी रखने लगे हैं यह उनके व्यक्तित्व और भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। वर्तमान में देखा जा रहा है कि घने बालों के बीच पुरुषों में चोटी या शिखा रखने का प्रचलन चल रहा है। यह अनुचित तरीका है। शिखा बंधन और विधान को जाने या उनका पालन किए बगैर चोटी रखना अनुचित ही नहीं घात भी सिद्ध हो सकता है।
हालांकि लाल किताब के अनुसार घने बालों के बीच भी चोटी कुछ विशेष परिस्थिति में रख सकते हैं। जैसे कि जिस किसी की भी कुंडली में राहु नीच का हो या राहु खराब असर दे रहा है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखने की सलाह दी जाती है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो चोटी रखना हानीकारक भी हो सकता है। यदि गुरु अच्छी स्थिति में है तब भी चोटी रखना घातक सिद्ध हो सकता है।
दरअसल हमारे सिर और पैर के स्थान पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का असर होता है। यह मान लिया जाए कि हम एक धरती है तो सिर और पैर का स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव है। इसीलिए तो दक्षिण में पैर करके नहीं सोते क्योंकि जिस तरह से दक्षिण से उत्तर की ओर उर्जा का प्रवाह जारी है उसी तरह हमारे सिर से पैर की ओर उर्जा प्रवाहित हो रही है। हमें इस विज्ञान को समझकर ही चोटी रखना चाहिए। अन्यथा यह कभी घातक भी सिद्ध हो सकता है।
सिर पर चोटी रखने के उचित स्थान, उचित लंबाई और आकार को समझ कर ही चोटी रखें। चोटी में कब गठान बांधी जाती है और कब खोली जाती है यह भी समझना जरूरी है। स्नान, दान, जप, हवन आदि में शिखा बंधी होनी चाहिए। भोजन, लघुशंका, दीर्घशंका, मैथुन, व मुर्दा ढोते समय शिखा खोल देनी चाहिए। घने बालों में चोटी रखना चाहिए या नहीं यह भी किसी जानकार से पूछकर ही रखें। चोटी रखने को फैशन न समझें।