नवरात्रि का त्योहार व्रत और साधना के लिए होता है। माता दुर्गा को समर्पित यह त्योहार संपूर्ण भारत में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। दरअसल नवरात्रि का त्योहार उत्सव से ज्यादा व्रत और साधना के लिए होता है, लेकिन लंबे काल के प्रचलन के कारण इसके स्वरूप बदलता गया और मूल उद्येश्य और इसकी पवित्रता एवं शालिनता समाप्त हो गई।
हिन्दू माह के अनुसार नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है। चार बार का अर्थ यह कि यह वर्ष के महत्वपूर्ण चार पवित्र माह में आती है। यह चार माह है:- पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन।
उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इसमें से चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। तुलजा भवानी बड़ी माता है तो चामुण्डा माता छोटी माता है। दरअसल, बड़ी नवरात्रि को बसंत नवरात्रि और छोटी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं। प्रथम संवत् प्रारंभ होते ही बसंत नवरात्रि व दूसरा शरद नवरात्रि, जो कि आपस में 6 माह की दूरी पर है।
भारत में आम जनता के बीच अश्विन मास की नवरात्रि ज्यादा प्रचलित है। इस दिन उत्सव का माहौल रहता है। लोग गरबा नृत्य करते हैं और कन्याओं को भोजन करवाते हैं। यह नवरात्रि दीपावली के पहले आती है। पितृपक्ष के 16 दिनों की समाप्ति के बाद आश्विन मास की नवरात्रि का प्रारंभ होता है। इसी नवरात्रि के प्रारंभ होने के साथ ही भारत में लगातार उत्सव और त्योहारों का प्रारंभ भी हो जाता है।
बाकी बची दो आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। यह नवरात्रि साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है। जिसमें कि आषाढ़ सुदी प्रतिपदा (एकम) से नवमी तक दूसरा पौष सुदी प्रतिप्रदा (एकम) से नवमी तक। ये दोनों नवरात्रि युक्त संगत है, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं। यही नवरात्रि अपने आगामी नवरात्रि की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है।
अत: ये चारों नवरात्रि वर्ष में 3-3 माह की दूरी पर हैं। कुछ विद्वान पौष माह को अशुद्ध माह नहीं गिनते हैं और माघ में नवरात्रि की कल्पना करते हैं। किंतु चैत्र की तरह ही पौष का महीना भी विधि व निषेध वाला है अत: प्रत्यक्ष चैत्र गुप्त आषाढ़ प्रत्यक्ष आश्विन गुप्त पौष माघ में श्री दुर्गा माता की उपासना करने से हर व्यक्ति को मन इच्छित फल प्राप्त होते हैं।
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां: गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होते हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं। उस समय पृथ्वी पर रुद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है।