घर को गृह भी कहते हैं। घर वास्तु अनुसार होना चाहिए। घर सुगंधित तथा साफ-सुथरा होना चाहिए। घर मंदिर के आस-पास ही हो, जिससे की हमारे कर्तव्य के प्रति हम सजग रहे तथा मंदिर दर्शन से उस ईश्वर की याद बनी रहे। इसके मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कारण भी है। घर में मंदिर की जगह ध्यान कक्ष होता है ना की मंदिर।
वास्तु रचना :
1.घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वह चार दिशा है-ईशान, उत्तर, वायव और पश्चिम।
2.घर के सामने आँगन और पीछे भी आँगन हो जिसके बीच में तुलसी का एक पौधा लगा हो।
3.घर के सामने या निकट तिराहा-चौराह नहीं होना चाहिए।
4.घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए। अर्थात बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे की दीवार के दाएँ शुभ और बाएँ लाभ लिखा हो।
5.घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा 'ॐ' की आकृति लगाएँ।
6 .घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान का कक्ष हो, नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।
7.घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र या मूर्ति ना रखें। घर में मंदिर ना बनाएँ।
8.घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच का स्थान) खाली रखें।
9.घर की छत में किसी भी प्रकार का उजालदान ना रखें।
10.घर हो मंदिर के आसपास तो घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
11.घर में किसी भी प्राकार की नाकारात्मक वस्तुओं का संग्रह ना करें और अटाला भी इकट्ठा ना करें।
12.घर में सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।
13.उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक रखना चाहिए।
14. घर के उपर केसरिया धवज लगाकर रखें।
16. घर में किसी भी तरह के नकारात्मक पौधे या वृक्ष रोपित ना करें।
अंतत: किसी वास्तुकार से पूछकर-जानकर घर को सजाया और संवारा जा सकता है। घर का वास्तु सही है तो ग्रह-नक्षत्र भी सही ही रहते हैं। घर में गृहकलह ना हो तो सभी तरह की सुख शांति प्राप्त की जा सकती है। घर को पूर्णत: हिंदू रीति अनुसार ही बनाएं, जो एक वैज्ञानिक रीति है।- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'