शैव पंथ में रात्रियों का महत्व अधिक है। हिंदु धर्मग्रंथानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि की रात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।
विवाह का समय :
ND
माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। तत्ववेत्ताओं द्वारा इसे जीव और शिव के मिलन की रात्रि कहा जाता है। इसीलिए इस रात्रि को महिलाएँ अच्छे पति, वैवाहिक सुख और पति की लंबी आयु की कामना से भी मनाती हैं।
प्रलय :
WD
कुछ का मानना है कि शिव ने तांडव नृत्य कर सृष्टि को भस्म कर दिया था तब सृष्टि की जगह बहुत काल तक यही महारात्रि छाई रही। देवी पार्वती ने इसी रात्रि को शिव की पूजा कर उनसे पुन: सृष्टि रचना की प्रार्थना की इसीलिए इसे शिव की पूजा की रात्रि कहा जाता है। फिर इसी रात्रि को भगवान शंकर ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से स्वयं को ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित किया।
रुद्र रूप : यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शंकर का रुद्र के रूप में ब्रह्मा से अवतरण हुआ था। विष्णु से ब्रह्मा और ब्रह्मा से रुद्र की उत्पत्ति मानी जाती है।
समुद्र मंथन : समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से विष (हलाहल) उत्पन्न हुआ तो भगवान शंकर ने उक्त विष को पीकर अपने कंठ में सजा लिया इसीलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। विषपान की इस रात्रि की याद में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
ND
शिव पूजा और उत्सव : प्रत्येक प्रांत में शिव पूजा और उत्सव को मनाने के तरीके भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किंतु पूजा में शिव को आँकड़े का फूल और बिल्व पत्र ही चढ़ाया जाता है और जहाँ भी उनका ज्योतिर्लिंग है वहाँ भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है। उक्त पूजा के बाद ही उत्सव का आयोजन होता है जिसमें कुछ लोग भाँग पीते हैं और रातभर जागरण करते हैं।