श्राद्ध के 16 दिनों में सबसे ज्यादा सुना जाता है कि कुतप काल में श्राद्ध करें, आखिर यह कुतप काल है क्या? आइए जानें....
पितरों के निमित्त किए गए श्राद्ध में प्रत्येक वस्तु एवं समय का खास महत्त्व होता है। पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध में काक (कौआ), गौ, श्वान, पिपीलिका व देवस्वरूप ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है।
पितरों को भोजन अर्पित करने के लिए अग्नि में भोज्य पदार्थों की आहुति दी जाती है जिसे धूप डालना कहते हैं। इस धूप का एक विशेष समय निर्धारित है जिसे कुतप-काल कहा जाता है। कुतप-काल में किया गया तर्पण एवं दी गई धूप अक्षय फ़लदायी होती है। कुतप-काल दिन के 11:30 बजे से 12:30 के मध्य का समय होता है। शास्त्रानुसार कुतप-काल में श्राद्ध विधि करने का विशेष महत्त्व है।