Pitru paksha 2024 : हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार पितृ पक्ष यानी श्राद्ध महालय भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो गए हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक यानी कुल 16 दिनों तक चलता है। इसमें श्राद्ध का पहला दिन और आखिरी दिन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। आओ जानते हैं पूर्णिमा के श्राद्ध की 5 खास बातें।
1. पूर्णिमा के श्राद्ध को ऋषि तर्पण भी कहा जाता है। इस दिन मंत्रदृष्टा ऋषि मुनि अगस्त्य का तर्पण किया जाता है। इन्होंने ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को खा गए थे। इसी के सम्मान में श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा तिथि को इनका तर्पण करके ही पितृ पक्ष की शुरुआत की जाती है।
2. जिनकी मृत्यु पूर्णिमा को हुई है उनका श्राद्ध पूर्णिमा को करते हैं। इनका श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। हालांकि कहते हैं कि यदि किसी महिला का निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या के दिन भी किया जा सकता है।
3. पूर्णिमा श्राद्ध को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का आयोजन करके अधिक से अधिक प्रसाद वितरण करना चाहिए।
4. उमा-महेश्वर का पूजन और व्रत किया जाता है। यह व्रत सभी कष्टों को दूर करके जीवन में सुख-समृद्धि लाता है
5. इस दिन पंचबलि कर्म अर्थात गाय, कौवे, कुत्ते, चींटी और देवताओं को अन्न जल अर्पित करना चाहिए। ब्राह्मण भोज कराना चाहिए। इस दिन यथाशक्ति दान दक्षिणा देना चाहिए। यह नहीं कर सकते हो तो नदी में संध्या के समय दीपदान करना चाहिए।
क्या है भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व?
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है।
इसी दिन उमा महेश्वर व्रत भी रखा जाता है।
यह पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृपक्ष यानि श्राद्ध प्रारंभ होते हैं।
यह व्रत खास तौर से महिलाएं रखती है।
यह व्रत करने से जहां संतान बुद्धिमान होती है, वहीं यह व्रत सौभाग्य देने वाला भी माना जाता है।