Bilva patra arpit karne ke niyam in hindi: धार्मिक मान्यता के अनुसार बिल्वपत्र को शिव जी के तीनों नेत्रों का प्रतीक माना जाता है। उनके यह 3 नेत्र भूत, भविष्य और वर्तमान देखते हैं। श्रावण मास के सोमवार को शिव जी की विशेष पूजा होती है। इस पूजा में बिल्वपत्र अर्पित करने का खासा महत्व है। यदि आप बिल्वपत्र को नियम से अर्पित करेंगे तो आपको शिवजी का आशीर्वाद मिलेगा और पुण्य फल की प्राप्ति होगी। आओ जानते हैं बिल्व पत्र अर्पित करने के नियम।ALSO READ: श्रावण मास में नागपंचमी का त्योहार कब मनाया जाएगा, क्या हैं शुभ मुहूर्त?
10 स्वर्ण मुद्रा के दान के बराबर एक आक पुष्प के चढ़ाने से फल मिलता है। 1 हजार आक के फूल का फल एवं 1 कनेर के फूल के चढ़ाने का फल समान है। 1 हजार कनेर के पुष्प को चढ़ाने का फल एक बिल्व पत्र के चढ़ाने से मिल जाता है।
1. बिलपत्र तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि चतुर्थी तिथि, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और किसी माह की संक्राति पर कभी भी बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
2. तीन जन्मों के पापों के संहार के लिए त्रिनेत्ररूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र, जो सत्व-रज-तम का प्रतीक है, को इस मंत्र को बोलकर अर्पित करना चाहिए-
'त्रिदलं त्रिगुणाकरं त्रिनेत्र व त्रिधायुतम्।
त्रिजन्म पाप संहार बिल्व पत्रं शिवार्पणम्।।
या
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
3. भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय है। बिल्व अथव बेल पत्र में तीन अखंडित पत्र होना चाहिए। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है। मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग पर 3 से 11 बेलपत्र चढ़ाना शुभ होता है।
4. हम अपनी श्रद्धा के अनुसार उस पर तिलक लगा सकते हैं या पत्र पर 'ॐ' या फिर 'ओम नमः शिवाय' भी लिख सकते हैं।
5. फिर बेलपत्र की चिकनी सतह को शिवलिंग से स्पर्श कराकर चढ़ाना चाहिए। इस दौरान ऊँ नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
6. त्रिसंख्या से न्यून पत्ती वाला बिल्वपत्र पूजन योग्य नहीं होता है। प्रभु को अर्पित करने के पूर्व बिल्वपत्र की डंडी की गांठ तोड़ देना चाहिए।
7. सारदीपिका के 'स्युबिल्व पत्रमधो मुखम्' के अनुसार बिल्वपत्र को नीचे की ओर मुख करने (पत्र का चिकना भाग नीचे रहे) ही चढ़ाना चाहिए। पत्र की संख्या में विषम संख्या का ही विधान शास्त्रसम्मत है।
9. कालिका पुराण के अनुसार चढ़े हुए बिल्व पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) से पकड़कर उतारना चाहिए। चढ़ाने के लिए सीधे हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) एवं अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए।