Mahakaleshwar Temple: 11 जुलाई 2025 से श्रावण मास प्रारंभ होने वाला है। 14 जुलाई को सोमवार रहेगा। यदि आप उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन करने जा रहे हैं तो आपको 7 बातों का ध्यान रखना जरूरी है तभी आपको बाबा के दर्शन का लाभ मिलेगा और आपकी यात्रा पूर्ण होगी। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल ही एकमात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहते हैं कि 'आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।' अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
1. महाकाल के साथ करें इनके भी दर्शन: उज्जैन में साढ़े तीन काल विराजमान है- महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्ध काल भैरव। इनकी पूजा का विशेष विधान है। इसके अलावा माता हरसिद्धि के दर्शन करना न भूलें। यदि आप महाकाल बाबा के दर्शन करने जा रहे हैं तो माता हरसिद्धि के दर्शन के बाद कालभैरव और गढ़कालिका में कालिका माता के दर्शन जरूर करें।
2. जूना महाकाल: महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करना चाहिए। कुछ लोगों के अनुसार जब मुगलकाल में इस शिवलिंग को खंडित करने की आशंका बढ़ी तो पुजारियों ने इसे छुपा दिया था और इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे थे। बाद में उन्होंने उस शिवलिंग को वहीं महाकाल के प्रांगण में अन्य जगह स्थापित कर दिया जिसे आज 'जूना महाकाल' कहा जाता है। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार असली शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए ऐसा किया गया।
3. ओंकारेश्वर शिवलिंग के दर्शन जरूर करें: वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।
4. क्षिप्रा दर्शन: महाकाल दर्शन के बाद या पहले कभी भी क्षिप्रा दर्शन जरूर करें। रामघाट से शिप्रा दर्शन करना शुभ माना जाता है। जो भक्त उज्जैन से बाहर रहते हैं उन्हें यह जरूर करना चाहिए।
6. सिद्धवट: यदि आप उज्जैन में महाकाल के दर्शन करने आए हैं तो हजारों वर्ष पुराने सिद्धवट के दर्शन जरूर करें। जिस तरह प्रयागराज में अक्षयवट, गोकुल मथुरा में वंशीवट, गया में गयावट और नासिक में पंचवट है उसी तरह यह सिद्धवट है। स्कंद पुराण के अनुसार इसे माता पार्वती ने अपने हाथों से लगाया था। इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। यहां कर्मकांड, पितृदोष निवारण, सर्पदोष निवारण आदि का कार्य किया जाता है।
7. विक्रम टीला: उज्जैन में, सम्राट विक्रमादित्य का स्थान 'विक्रमादित्य टीला' है, जो महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है। यह टीला, विक्रमादित्य के सिंहासन बत्तीसी के लिए भी जाना जाता है, जहां उनका दरबार लगता था। उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया।