शिव की कृपा चाहिए, तो जल बहाएं नहीं, बचाएं...

पवित्र श्रावण माह शुरु हो गया है। इस माह में भगवान भोलेनाथ की आराधना का विशेष महत्व है। शिव मंदिरों में भक्तों का तांता और 'बम भोले' के जयकारे गूंजने लग गए हैं। श्रावण माह के विशेष दिनों में भगवान शिव का विविध रूपों में श्रृंगार होगा। इन दिनों श्रद्धालु व्रत-उपवास रख शिव आराधना में लीन रहेंगे। साथ ही कावड़ यात्रा का दौर भी शुरू हो गया है।
 
श्रावण माह का महत्व : पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण माह में ही समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला। भगवान शंकर ने इस विष को अपने कंठ में उतारकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव-उपासना से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसी माह माता सती ने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा हुए शिव के अपमान से तिलमिला कर यज्ञ कुंड में छलांग लगा दी थी। 

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जल चढ़ाने का महत्व : भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।
 
शिव स्वयं जल हैं :
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।
 
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्‌।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥
 
अर्थात्‌ जो जल समस्त जगत्‌ के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन्‌ उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।

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इन दिनों सभी शिव मंदिरों के आसपास पूजन सामग्रियों की दुकानें सजने लगती है। भगवान भोलेनाथ के प्रिय बिल्व पत्र से लेकर धतूरा और तरह-तरह के पुष्पों की मालाएं लेकर भक्त पूजा के लिए तैयार हैं। पूजा में रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार भगवान रूद्र की आँखों से गिरे आँसू से रुद्राक्ष का जन्म हुआ इसलिए रुद्राक्ष भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है।

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