निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 12 मई के दसवें एपिसोड में वसुदेवजी ने बालकृष्ण को सुपड़े में रखकर नदी पार करने लगे तो वर्षा और तूफान से तो शेषनागजी ने बचा लिया लेकिन तभी यमुना में पानी बढ़ने लगा और वसुदेवजी के मुंह तक पानी चढ़ गया।
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फिर यह बताते हैं कि यमुना माता श्रीकृष्ण के पैर छुना चाहती थीं, लेकिन श्रीकृष्ण अपने पैर बार-बार सुपड़े में समेट लेते थे। फिर यमुनाजी श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहती हैं कि चरण पखारे बगैर तो जाने नहीं दूंगी स्वामी। फिर श्रीकृष्ण अपने पैर बाहर निकालते हैं तो यमुनाजी शांत होकर घटने लगती है।
वसुदेवजी रात्रि के अंधकार में बालकृष्ण को लेकर यशोदा मैया के कक्ष में पहुंच जाते हैं। द्वार अपने आप ही खुल जाते हैं। गहरी नींद में सोई यशोदा मैया के पास वह बालकृष्ण को सुलाकर वहां सोई हुई बालिका को ले जाते हैं। पुन: कारागार में जाकर वे बालिका को गहरी नींद में सोई देवकी के पास सुला देते हैं। तब योगमाया प्रकट होकर उनकी बेढ़ियां फिर जस की तस कर देती हैं और कहती हैं कि हमारी माया से तुम्हें ये सब याद नहीं रहेगा। फिर वसुदेवजी भी सो जाते हैं।
सभी द्वार बंद हो जाते हैं और पहरेदारों की नींद खुल जाती है। परिचारिका भी जाग जाती है। वह सभी चारों ओर देखते हैं। तभी बालिका के रोने की आवाज आती है। उसकी आवाज सुनकर देवकी और वसुदेवजी की नींद खुल जाती है। वह बालिका को आश्चर्य से देखते हैं। तभी पहरेदार अंदर आ धमकते हैं। साथ में प्रधान कारागार के साथ महिला परिचारिका भी आ जाती है। प्रधान कारागार परिचारिका से कहते हैं कि ले लो इसे। वह वसुदेवजी की गोद से बालिका को लेकर उसे देखकर आश्चर्य करते हुए कहती हैं जाओ महाराज को जाकर समाचार दो की लड़की हुई है।
यह सुनकर देवकी और वसुदेव भी आश्चर्य करने लगते हैं। प्रधान कारागार कहता है क्या लड़की? परिचारिका कहती हैं हां लड़की। फिर वह सभी जाकर महाराज कंस को इसकी सूचना देते हैं। कंस यह सुनकर क्रोधित होकर तलवार निकालकर कहता है कि अवश्य किसी ने हमारे साथ धोखा किया है। आज मैं किसी को जीवित नहीं छोडूंगा। ऐसा कहकर वह कारागार की ओर जाता है। उसके पीछे-पीछे चाणूर सहित उसके सैनिक भी पहुंच जाते हैं।
वह कारागार में पहुंचकर वह देवकी से पूछता है क्या ये लड़की है? देवकी कहती हैं हां भैया। तब वह कहता है झूठ। इस बार लड़की कैसे हुई? आकाशवाणी झूठ नहीं हो सकती। उसने आठवें पुत्र की बात कही थी। फिर लड़की कैसे आ गई? अवश्य लड़का हुआ होगा। कहां छिपा दिया है तुमने? तब कंस परिचारिका की ओर देखकर तलवार तानकर कहता है, अवश्य तुने इनकी सहायता की होगी? तब प्रधान कारागार हाथ जोड़कर कहता है नहीं महाराज। कंस फिर कहता है, यहां कौन आया था बताओ? बताओ हमारे किस शत्रु से मिल गए हो तुम लोग? किसने बच्चा बदली की?
डर के मारे प्रधान कारागार कंस के चरणों में गिरकर विश्वास दिलाता है कि यहां कोई नहीं आया था। आप चाहे तो मेरा सर काट दीजिए। फिर कंस वसुदेव की ओर देखकर कहता है वसुदेव तुम तो सत्यवादी हो। कहो तुम्हारा पुत्र कहां है? तब वसुदेव कहते हैं कि जब मेरी आंख खुली तो मैंने इसी बालिका को देखा। मैं सत्यवादी हूं कभी झूठ नहीं बोलता।
यह सुनकर कंस कहता है, हां तो ये भी विष्णु की एक चाल है जिससे मेरी मति भ्रमित हो जाए। चाहे वह कुछ भी कर ले लेकिन मुझे मेरे लक्ष्य से हटा नहीं सकता। चाहे किसी भी रूप में आ जाए वह मेरे हाथों नहीं बच सकता। यह कहकर कंस बालिका को देवकी के हाथ से छुड़ाता है तो देवकी कहती है नहीं भैया इस बिचारी पर दया करो। लेकिन कंस नहीं मानता है और वह बालिका को छुड़ा लेता है। तब देवकी माता कहती हैं इसे छोड़ दो। कंस कहता है नहीं, यही विष्णु है जो मेरे साथ छल कर रहा है। तब देवकी कहती हैं कि ये विष्णु नहीं हो सकती ये तो कन्या है। तब कंस कहता है कि क्यों नहीं हो सकती। क्या विष्णु ने मोहिनी का रूप नहीं धरा था। मैं इस मायाजाल में नहीं फंसने वाला हूं। यह कहकर वह कन्या को ले जाता है।
वह कन्या को एकांत में ले जाकर एक भूमि पर पटककर मारने ही वाला रहता है कि कन्या उसके हाथ से छुटकर आकाश में उड़ जाती और आकाश में योगमाया प्रकट होकर अट्टाहास करने लगती है। यह देखकर कंस भयभीत हो जाता है। फिर योगमाया कहती है, रे मूर्ख मुझे मारने से तुझे कुछ नहीं होगा। तुझे मारने वाला तो कोई ओर है और वो इस धरती पर जन्म भी ले चुका है। वही तेरा संहार करेगा। हे मंद बुद्धि दुष्ट तू व्यर्थ बिचारी देवकी को कष्ट न दें और निर्दोष, दीन एवं असहायों की हत्या करना छोड़ दें। यह कहकर योगमाया अदृश्य हो जाती है।
यह सुनकर कंस घबरा जाता है। वह बदहवास होकर वहां से भागता है। वह चाणूर के पास जाकर कहता है फिर छल कर गया। फिर छल कर गया। लेकिन मैं उसे नहीं छोड़ूंगा। मैं उसे नहीं छोड़ूंगा। विष्णु मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा।
उधर आकाश में सभी देवता योगमाया की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हे देवी इस धरती पर आपका कार्य समाप्त हो गया। अब आप हमारे अमरावती धाम में पधारें। तब देवी योगमाया कहती हैं कि हे देवराज अब मैं देवलोक में नहीं जाऊंगी। अपने स्वामी की आज्ञा से मैं भिन्न-भिन्न रूपों में इस धरा पर ही रहूंगीं। भक्तजन जिस रूप में जहां मेरी स्थापना करेंगे उस रूप में मैं वहां वास करूंगी और समस्त जीवों का कल्याण करूंगीं। मेरी पहली स्थापना विंध्यांचल पर्वत पर आपके द्वारा होगी। देवराज इंद्र कहते हैं जो आज्ञा परमेश्वरी।
उधर, माता रोहिणी अपने पुत्र के पास नींद में सोई रहती है। बालक के रोने पर उनकी नींद खुलती है। वह रोते हुए बालक को माता यशोदा के कक्ष में ले जाती है तो वहां जाकर देखती है कि माता यशोदा के पास एक बालक खेल रहा है। यह देखकर वह कहती है अरे! बाल का जन्म भी हो गया। फिर वह माता यशोदा को उठाकर कहती है बालक का जन्म हो गया और तुम्हें पता भी नहीं चला। यशोदा यह देखकर प्रसन्न हो जाती है। तब वह नंदरायजी को उठाती है और फिर गोकुल में चारों और उत्सव का माहौल हो जाता हैं।
इधर, देवकी और वसुदेवजी की हथकड़ियां खोल दी जाती है। प्रधान कारागार कहता है कि कंस के आदेश पर आपको महल ले जाने के लिए बाहर एक रथ भी खड़ा है। दोनों प्रसन्न होकर सैकिकों से कहते हैं कि तुम्हारा कल्याण हो। हमारे पास तुम्हें देने के लिए आशीर्वाद के अलावा कुछ नहीं है। फिर देवकी कहती हैं चलिए देव। वसुदेवजी कहते हैं आओ चलो। जय श्रीकृष्णा।।
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