निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 13 मई के 11वें एपिसोड में देवकी और वसुदेवजी को कारागर से मुक्त करने के बाद मथुरा की जनता में यह चर्चा रहती है कि यदि उस कन्या ने अष्टभुजा दुर्गा रूप धारण करते हुए ये बात कही है तो इसका अर्थ ये है कि पहली आकाशवाणी झूठी नहीं थी। मारने वाला तो आ ही गया है।
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उधर कंस अपनी सभा में दरबारियों से कहता है कि एक आकाशवाणी झूठी हो सकती है दूसरी नहीं। मैंने स्वयं उस बालिका को आकाश में अष्टभुजा का रूप धारण करते हुए देखा है और उसीने मुझे चेतावनी दी है कि वो जो मुझे मारने वाला है वह जन्म ले चुका है। इसका अर्थ ये है कि अवश्य हमारे साथ कोई छल किया गया है। अन्यथा आठवें गर्भ में कन्या कैसे आ सकती थी? और यदि हमारे साथ छल किया गया है तो अवश्य इसमें हमारे किसी आदमी ने सहायता की होगी। कन्या जन्म की उस रात्रि में जो भी पहरेदार पहरे पर थे उन सभी को सरी प्रजा के सामने हाथियों के पैरों तल कुचलवा दिया जाए। ताकी हमारे साथ अन्य कोई विश्वासघात करने की हिम्मत न कर पाए। महाबली धेनुक जाओ हमारी आज्ञा का पालन करो।
उधर, देवकी और वसुदेवजी अपने घर चले जाते हैं जहां वसुदेवजी के पिता उनका स्वागत करते हैं। वसुदेवजी के पिता उन्हें गले लगाकर कहते हैं कि तुमने धैर्य और धर्म का परिचय देकर हमारा पितृ ऋण चुका दिया है। फिर वे देवकी को आशीर्वाद देकर कहते हैं कि तुम पतिपरायण के कारण वंदनीय हो। फिर वे कहते हैं कि एक बात समझ में नहीं आती है कि जिस तारणहार की बात आकाशवाणी में कहीं थी वो अष्टम गर्भ में क्यों नहीं आए?
तब वहां खड़े अक्रूरजी कहते हैं कि महाराज यही प्रश्न प्रजा के मन में बार-बार उठ रहा है। परंतु उसके साथ ही उस बालिका के चमत्कार की बातें सुनते हैं तो लगता है कि इसके पीछे दैवीय शक्तियों की कोई गुढ़ योजना हैं। इसका रहस्य गुरुदेव महर्षि गर्ग ही बता सकते हैं। मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि वह गर्भपात नहीं था एक दैवीय चमत्कार था।
उधर, नंदरायजी माता रोहिणी और यशोदा को यह सूचना देते हैं कि कुमार वसुदेव और भाभी देवकी को कंस ने कारागार से मुक्त कर दिया है। यह सुनकर दोनों खुश हो जाती हैं।
इधर, कंस अपने दरबारियों प्रलंब, केशी, चाणूर आदि से कहता है कि देवी के कथन से यह बात सिद्ध हो गई है कि देवताओं ने हमें मारने की कोई योजना बनाई है। हमारे गुप्तचरों का कहना है कि सारे नगर में इसी बात की चर्चा है कि हमें मारने वाला जन्म ले चुका है। हमारे शत्रुओं ने इस बात को फैलाया होगा, ताकी मैं भयभीत हो जाऊंगा। परंतु वो ये नहीं जानते हैं कि संकट आने पर कंस की शक्ति दोगुनी हो जाती है। सब देवता हमारी वीरता से संतप्त है।
तब चाणूर कहता है कि महाराज हमें जो कुछ भी करना है अतिशीघ्र करना चाहिए। कंस कहता है किंतु क्या करना चाहिए? तब चाणूर कहता है कि पिछले 10 दिनों में राज्य में जो भी बच्चे पैदा हुए हैं उन्हें मार डालना चाहिए। तभी एक दूसरा दरबारी कहता है 10 दिन नहीं पिछले 2 माह में जितने बच्चे पैदा हुए हैं उन सबको मार डाला जाए। कंस इस बात से सहमत हो जाता है और आदेश देता है कि जाओ हमें अब बालकों का केवल क्रंदन सुनाई देना चाहिए।
उसके इस आदेश से राज्य में हाहाकर मच जाता है। सब माताओं से उनके बच्चे छीनकर उनका वध किया जाने लगता है। कंस के डर के कारण कई लोग अपने बच्चों को सुपड़े में रखकर नदी में बहा देते हैं। बच्चे बहते हुए दूसरे तट की ओर निकल जाते हैं।
उधर गोकुल में यशोदा बालक की छठी की पूजा का समारोह चल रहा होता है। गोकुल में सैनिक पहुंचकर गांव वालों से पूछते हैं कि यहां पिछले दिनों किसी बालक का जन्म हुआ है? इस पर गांव वाले कहते हैं हां, छह दिन पहले हुआ है। मंदिर में आज उनकी छठी की पूजा चल रही है। तब एक सैनिक कहता है कि चलो उन बालकों का अंत करें। तभी सभी ग्रामीण खड़े हो जाते हैं और क्रोधित होकर कहते हैं क्या कह रहे हो?
इस पर सैनिक कहता है तुमने सुना नहीं क्या? महाराज की आज्ञा है कि इस राज्य में पैदा होने वाले हर शीशु की हत्या कर दी जाए। ग्रामीण यह सुनकर भड़क जाते हैं और सैनिकों पर पत्थर बरसाने लगते हैं। सैनिक वहां से भाग खड़े होते हैं। सैनिक जाकर प्रधान सेनापति को इसकी सूचना देते हैं कि गोकुल में छह दिन पहले एक बालक का जन्म हुआ। लेकिन ग्रामिणों ने हमें मारकर भगा दिया। फिर प्रधान सेनापति कहता है कि चलों हम चलते हैं।
उधर, सभी ग्रामीण विचार करते हैं कि हमें नंदबाबा को सारी घटना बताना चाहिए। एक ग्रामीण कहता है कि नहीं, अभी नंदबाबा गोकुल के युवराज की षष्ठी पूजा में लगे हुए हैं। हमें उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए। हम गोकुल के नवयुवक ही उन सैनिकों के लिए पयाप्त हैं। जाओ सभी से कहो कि जिसके पास जो भी हथियार हो वह लेकर बाहर आ जाए और यह कार्य इस तरह हो की नंदबाबा के उत्सव में कोई विघ्न न हो।
बहुत से ग्रामीण गांव की सीमा पर एकत्रित होकर कंस के सैनिकों पर पत्थरों की बारिश करके भगा देते हैं। फिर ग्रामीण जाकर यह घटना बताते हैं। नंदबाबा पूछते हैं तुमने ऐसा क्यों किया? तब ग्रामीण बताते हैं कि वे यशोदा काकी के पुत्र का वध करना चाहते थे। क्योंकि उनके राजा ने आज्ञा दी थी कि पिछले एक माह में जितने भी बच्चे पैदा हुए हैं उन्हें मार डाला जाए। यह सुनकर यशोदा मैया और माता रोहिणी अपने अपने बच्चों को भय के मारे सीने से लगा लेती हैं। नंदराय समझ जाते हैं सारा माजरा।
फिर माता यशोदा मैया कहती है कि अब हम यहां नहीं रह सकते। कंस की नजर हमारे लल्ला पर पड़ गई है। वह सारे गोकुल को उजाड़ देगा। नंदराय राय समझाते हैं कि नहीं हमें डरने की जरूरत नहीं। हमारे ग्वालों ने उसे ठीक समय पर चेतावनी दे दी है।
उधर,
कंस को यह बात पता चलती है तो वह भड़क जाता है। तब चाणूर समझाता है कि आम आदमी के बालकों की हत्या कोई भी सैनिक कर सकता है लेकिन हम समाज के विशिष्ठ लोगों के साथ वैसे व्यवहार नहीं कर सकते। क्योंकि नंदराय ग्वालों के एक शक्तिशाली कबीले का एक सरदार है। आपको विशेष रूप से उनके खिलाफ खुले रूप में विरोध प्रदर्शन न करके एक विशेष कूटनीति का प्रयोग करना चाहिए। एक दूसरा दरबारी कहता है कि यदि उनके मन में कोई संशय आ गया तो वे पांचाल नरेश से भी सहायता मांग सकते हैं।
दूसरा दरबारी कहता है कि वसुदेव की बहन कुंती के द्वारा वे हस्तिनापुर से भी सहायत ले सकते हैं। एक तीसरा दरबरी कहता है हमें नंद जैसे प्रमुख सामंत को किसी दूसरे राजा के साथ गठजोड़ करने का अवसर नहीं देना चाहिए। वैसे भी बालकों की हत्या के कारण जनता में असंतोष है। ऐसे में नंद जैसे विशिष्ठ व्यक्ति ने विद्रोह कर दिया तो सारी जनता भड़क सकती है। तब एक दरबारी कहता है कि उनके यहां बालक का जन्म हुआ है तो वे निश्चित ही राजा के दरबार में भेंट लेकर उपस्थित होंगे। तब कंस सभी दरबारियों की बात समझ जाता है। तब चाणूर कहता है कि गोकुल के बालकों को मारने के लिए हमें अपने मायावी राक्षसों की सहायता लेना चाहिए।
उधर, वसुदेवजी और अक्रूरजी गर्ग ऋषि के पास जाते हैं तो गर्ग ऋषि बताते हैं कि यशोदा के यहां जो बालक है वह तुम्हारा ही पुत्र है और रोहिणी के गर्भ से जो बालक जन्मा था वह भी तुम्हारा ही पुत्र है। यह सुनकर वसुदेवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
इधर, नंदराय जी भेंट लेकर कंस के दरबार में उपस्थित होते हैं। कंस कहता है कि हम बहुत प्रसन्न हुए। आपके यहां पुत्र जन्म की सूचना मिलने पर मन गद्गद् हो गया। नंदरायजी आपके बालक का जनम कब हुआ था? तब नंदरायजी कहते हैं अष्टमी की रातको। यह सुनकर कंस चौंक जाता है।
फिर कंस कहता है आपको हमारी ओर से बधाई है। नंदरायजी कहते हैं, इस अनुकंपा के लिए हम आपके आाभरी है महाराज। आप बालक को आशीर्वाद दें। कंस कहता है अवश्य। तब वह एक करधनी देकर कहता है कि उस नंदनरेश के लिए आशीर्वाद के रूप में ये करधनी स्वीकार कीजिए। नंदराय कहते हैं कि आपका हृदय कितना विशाल है।
तब कंस कहता है नहीं नंदरायजी आप जैसे सामंतों के कारण ही हमारे राज्य में समृद्धि है। आप वसुदेवजी के भाई भी हैं अत: इसी कारण भी हम आपका आदर करते हैं। हम जानते हैं कि हमारे प्रति देवकी और वसुदेव के मन में रोष होगा। आप उन्हें समाझाना की जो कुछ हुआ वह आकाशवाणी के कारण हुआ। अंत में वह आकाशवाणी झूठी सिद्ध हुई। नंदरायजी वहां से आज्ञा लेकर चले जाते हैं।
फिर कंस चाणूर से कहता है कि तुमने एक बात पर ध्यान दिया। नंद का ये पुत्र उसी रात को हुआ जिस रात कारागार में देवकी के गर्भ से एक कन्या ने जन्म लिया था। वह रात बड़े महत्व की रात है। जिस नंद के यहां संतान होने की कोई आशा ही नहीं थी उसी रात को नंद के घर में एक पुत्र का जन्म होता है और उसी रात को वह कन्या हाथ से छुटते ही मायावी रूप धरके यही कहती है कि तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है। चाणूर हमें पूरा विश्वास है यह वही बालक है जिसने देवकी के अष्टम गर्भ से जन्म लिया। जय श्रीकृष्णा।
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