निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 31 अगस्त के 121वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 121 ) में भानामति यक्षदेव, नागदेव और गंधर्वदेव से प्रद्युम्न को युवा बनाने में सहायता करने हेतु उनकी लोककल्याण हेतु स्तुति करती है। सभी देवता एक एक करके उसे आशीर्वाद देते हैं।.. उधर, गुरुदेव का यज्ञ चलता रहता है और इधर भानामति सभी देवताओं से आशीर्वाद और अनुमति लेती हैं। फिर नागदेव, गंधर्वदेव और यक्षदेव एक साथ प्रकट होकर कहते हैं कहा भानामति हम तुम्हारी क्या सहायता कर सकते हैं। यह सुनकर भानामति कहती है प्रभु मैं भगवान विष्णु की आज्ञा तथा रसायन विद्या से मैं प्रद्युम्न को बड़ा करना चाहती हूं। तब वे देवता कहते हैं कि परंतु इससे पहले प्रद्युम्न को सात पवित्र नदियों गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, यमुना, सरस्वती और सबसे बढ़कर गंगाजल से इसको स्नान कराए बिना प्रद्युम्न को बढ़ा करने का कार्य संपन्न नहीं हो सकता। फिर भानामति कहती है जो आज्ञा प्रभु।
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फिर भानामति श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि हे अंतरयामी! आप मेरी सहायता कीजिये प्रभु। यह सुनकर श्रीकृष्ण सभी नदियों का आह्वान करके कहते हैं कि आप सभी अपने पवित्र जल से प्रद्युम्न को नहलाइये ताकि वह शुद्ध हो और उसकी शारीरिक क्षमता बढ़े। फिर भानामति सभी नदियों की स्तुति करती हैं तो वे सभी कलश में जल लेकर आती हैं और प्रद्युम्न को नहलाती हैं।
उधर, संभरासुर के गुरुदेव का यज्ञ चलता रहता है। फिर श्रीकृष्ण ब्रह्माजी का आह्वान करते हैं और जब ब्रह्माजी आ जाते हैं तो वे निवेदन करते हैं कि प्रद्युम्न को युवावस्था प्रदान की जाएगी तब तक आप मेरे पुत्र के गुरु बन जाइये क्योंकि भानामति प्रद्युम्न को युवा तो बना देगी परंतु कहीं ऐसा ना हो कि प्रद्युम्न युवा बन तो जाए परंतु उसकी बुद्धि एक बालक जैसी ही रह जाए अत: आप उसे ज्ञान प्रदान करें। ब्रह्माजी कहते हैं- जो आज्ञा वासुदेव।
उधर, फिर से संभुरासुर के गुरुदेव को यज्ञ करते हुए बताया जाता है। तब वह आसमान में देखकर यह जान लेते हैं कि प्रद्युम्न को सभी गंधर्व, नाग और यक्ष देव की उपस्थित में स्नान कराया जा रहा है। उसे मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनाई देती है।
फिर भानामति के समक्ष अश्विनी कुमार भी प्रकट होते हैं और कहते हैं कि आपका रसायन प्रयोग सफल हो। फिर अश्विनी कुमार अपनी दिव्य शक्ति से अग्नि प्रज्वलित एक यज्ञ वेदी को निर्मित कर देते हैं। उसमें से एक दिव्य कमल निकलता है जिस पर प्रद्युम्न को सुला दिया जाता है। फिर उसी यज्ञ में से पीतल का एक कलश निकलता है जिसमें भरा रसायन प्रद्युम्न के शरीर पर उड़ेल दिया जाता है।.. यह देखकर नारदमुनि देवी रति से कहते हैं कि अश्विनी कुमार के इस रसायन से प्रद्युम्न अब शीघ्र ही युवा बन जाएंगे।
उधर, फिर से संभुरासुर के गुरुदेव को यज्ञ करते हुए बताया जाता है। वह अपने मंत्र की शक्ति से यज्ञ में से एक गदा उत्पन्न करता है और उसे भानामाति के स्थल की ओर छोड़ देता है।... रुक्मिणी, श्रीकृष्ण, नारदमुनि और देवी रति ये देख लेते हैं। रति घबरकर पूछती है अब प्रद्युम्न की सुरक्षा कैसे होगी देवर्षि? यह सुनकर देवर्षि कहते हैं कि प्रभु (श्रीकृष्ण) प्रद्युम्न की रक्षा अवश्य करेंगे आप निश्चिंत रहिये।
फिर श्रीकृष्ण मुस्कुराकर इंद्रदेव को इशारा करते हैं तो इंद्रदेव उस गदा को अपने धनुष से रोक देते हैं। उधर, अश्विनी कुमार तीनों देवता गंधर्व, नाग और यज्ञ के साथ मंत्रों का जाप करते रहते हैं प्रद्युम्न को युवा बनाने के लिए और ब्रह्माजी ज्ञान देते रहते हैं।
अपने वज्र को विफल होता देख गुरुदेव पुन: मंत्र पढ़कर यज्ञ से एक भाला निकालकर उसे उस ओर छोड़ देते हैं। उसे भी इंद्रदेव विफल कर देते हैं।.. फिर ब्रह्माजी के भीतर से दिव्य शकित्यां निकलती हैं और वह कमल अपनी पंखुड़ियों से प्रद्युम्न को ढंक लेता है। फिर कुछ समय बाद वह पंखुड़ियां खुलती है तो उसमें अबोध बालक प्रद्युम्न की जगह एक थोड़ा बड़ा प्रद्युम्न लेटा हुए रहता है। यह देखकर भानामति प्रसन्न हो जाती है। सभी उसे देखते हैं। फिर उस बालक पर अश्विनी कुमार उसी कलश से पुन: रसायन उसके ऊपर उड़ेलते हैं।
उधर, फिर से संभुरासुर के गुरुदेव को यज्ञ करते हुए बताया जाता है जो अबकी बार मंत्र पढ़कर एक भयानक धनुर्धारि राक्षस को यज्ञ से उत्पन्न करते हैं जो गुरुदेव को प्रणाम करता है तो गुरुदेव कहते हैं जाओ। फिर उस राक्षस और इंद्रदेव में युद्ध प्रारंभ हो जाता है।
इधर, अश्विनी कुमार का मंत्र जाप और रसायन प्रयोग चलता रहता है। उधर, अंत में इंद्रदेव अपने वज्र से उस राक्षस का वध कर देते हैं। यह देखकर गुरुदेव अचंभित और भयभित हो जाते हैं।.. फिर उधर, ब्रह्माजी एक बार पुन: किशोर प्रद्युम्न को कमल की पंखुड़ी में बंद करके उसे ज्ञान देते हैं और जब पंखुड़ियां खुलती हैं तो उसमें से तरुण प्रद्युम्न निकलता है। यह देखकर भानामति सहित सभी प्रसन्न हो जाते हैं। फिर एक बार पुन: कमल की पंखुड़ियां बंद हो जाती है।
उधर, गुरुदेव के पास संभरासुर आता है और प्रणाम करता है। वहां पर संभरासुर भानामति के पति भाणासुर को देखकर आश्चर्य करता है। गूंगा भाणासुर संभरासुर के पास आकर उन्हें प्रणाम करता है। संभरासुर उसे देखकर क्रोधित हो जाता है और अपनी तलवार निकालकर तक्षण ही उसकी गर्दन काट देता है। उसकी मुंडी उड़ता हुआ गुरुदेव के यज्ञकुंड में गिर जाती है। यह देखकर गुरुदेव भयभित और अंचभित हो जाते हैं और क्रोधित होकर खड़े हो जाते हैं और संभरासुर से कहते हैं- ये क्या किया तुमने? यज्ञ में दानव की मुंडी डालकर मेरे यज्ञ को अपवित्र कर दिया। मेरी साधना को भंग कर दिया। मेरी तपस्या को समाप्त करके तुमने मेरे पुण्य को छीन लिया। अब मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकता संभरासुर, कुछ भी नहीं। तुम्हारे साथ-साथ अब मेरा भी अंत मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। जय श्रीकृष्ण।