भारत ने खो दिया चैम्पियन पहलवान, अशोक अहलावत का निधन

Webdunia
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017 (19:52 IST)
कृपाशंकर बिश्नोई (अर्जुन अवॉर्डी) 

हरियाणा कुश्ती के योद्धा और दो बार राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता अशोक अहलावत का कैंसर की बीमारी के कारण 22 नवम्बर को असामायिक निधन हो गया। झज्जर के गांव डीघल में जन्में अशोक ने गांव छारा के धन्ना अखाड़ा से कुश्ती के दांवपेंच सीखकर आगे बढ़े तो फिर उन्होंने रुकने का नाम नहीं लिया। 
 
अशोक ने 25 बार अंतरराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व किया था। यही नहीं, पहलवान अशोक लगातार 5 बार कुश्ती में नेशनल चैम्पियन भीरहे। उन्होंने इसी दौरान डिप्लोमा कोचिंग का कोर्स भी किया व अनेक उपलब्धियां हासिल की साथ देश का नाम रोशन किया। 
 
उन्होंने नेवी ज्वाईन की और फिलहाल वे नेवी के दिल्ली स्थित मुख्यालय में बतौर जेसीओ पद तैनात रहकर नए कुश्ती खिलाड़ियों और कबड्डी के धुरंदर खुलाड़ी तैयार कर रहे थे। उन्होंने अपने छोटे भाई नरेश अहलावत को भी कुश्ती के अखाड़े में उतार दिया और आज नरेश भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के बेहतरीन पहलवान बन चुके हैं।
 
 
अशोक के मन मे नई पीढ़ी को कुश्ती से जोड़ने की इतनी ललक थी कि अपने गांव में नेशनल हाइवे 71A के नज़दीक 5 एकड़ भूमि पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की कुश्ती एकेडमी बनाने का निर्णय लिया, जिसके लिए प्राथमिक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रास्ता पक्का कराने और अन्य काम शुरू कर दिए थे। 
 
इसी बीच करीब 14 माह पूर्व जब अशोक को जब खेलने के लिए विदेश दौरे पर जाना था तो मेडिकल टेस्ट में कैंसर होने का पता चला। इतनी गंभीर बीमारी होने के बावजूद पहलवान अशोक अहलावत ने हार नही मानी और अपने साथियों के बीच रहकर उनका खेल के प्रति मनोबल बढ़ाने का काम किया। लेकिन बीमारी इतनी खतरनाक स्तर पर जा चुकी थी कि वो उसकी जकड़ से नहीं निकल पाए। 22 नवम्बर को उन्होंने अंतिम सांस ली। गुरुवार की दोपहर बाद उनका सैनिक सम्मान के साथ गांव डीघल में अंतिम संस्कार किया गया। 
 
इस मौके पर दिल्ली मुख्यालय INSCB के नेवी सेकेट्री एस के बहल, ज्वॉइंट कमांडेंट विजय कुमार के अलावा करीब 5 दर्जन नेवी के सैन्य कर्मियों के अलावा कुश्ती में कॉमन वेल्थ के गोल्ड मेडलिस्ट रजनीश पहलवान व हरियाणा पुलिश के डीएसपी नवीन पहलवान भारत केसरी व रविन्द्र सिंह, हिन्द केसरी पहलवान संजय मटिण्डू, अशोक पहलवान के गुरु पहलवान धन्ना छारा के अलावा अनेक राजनीतिक पार्टियों के नेता, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि व क्षेत्रवासी मौजूद रहे।
 

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