काबुल। अफगानिस्तान में भले ही तालिबान ने कब्जा कर लिया है और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ चुके हैं। लेकिन इन तालिबानियों की भी राह आसान नहीं है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान के खिलाफ हुंकार भरी है और आखिरी दम तक लड़ने का ऐलान किया है। साथ ही उन्होंने अपने आपको अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया है।
अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर भले ही तालिबानियों का कब्जा हो गया हो, लेकिन अभी भी एक इलाका ऐसा है, जो तालिबानियों की पहुंच से दूर है और यह इलाका है पंजशीर घाटी। यहीं पर अमरुल्लाह सालेह डटे हुए हैं और तालिबान को चुनौती दे रहे हैं। इन सबके बीच अफगानिस्तान में अब भी लोकतंत्र की एक उम्मीद नजर आ रही है।
सालेह ने गुरिल्ला कमांडर मसूद के साथ 1990 के समय युद्ध लड़ा था। 1990 में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती होने से बचने के लिए सालेह विपक्षी मुजाहिदीन बलों में शामिल हुए थे। सालेह को खुले तौर पर पाकिस्तान का विरोधी माना जाता है, जबकि भारत का करीबी बताया जाता है।