ये तज्रबे सफर के किसी और को सुना बरसों हमारे पाँव रहे हैं रकाब में। साबिर सहबा
इंदौर के वरिष्ठ शायर साबिर सहबा के इस शेर की तारीफ बहुत हुई है। इस शेर में आम जीवन की एक खास भावना को अभिव्यक्त किया गया है। जैसे हम कहते हैं ना कि अरे हमें मत सिखाइये, हम भी घाघ हैं।
चालू भाषा में कहते हैं कि जिस स्कूल में अभी आप पढ़ रहे हैं, उसके हम हेडमास्टर रह चुके हैं वगैरह-वगैरह। यह बात पहली बार साबिर सहबा के यहाँ शायराना रविश के साथ आई है। सही शब्द तज्रबा या तज्रबे है। हिंदी में तजुर्बा कहा जाता है, जो गलत है।
रकाब- घोड़े पर बैठने वाले जिस लोहे के हथकड़ीनुमा खोल में पाँव के पंजे रख कर बैठते हैं।