इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

पेशकश : अज़ीज अंसार

ग़ालिब हमें न छेड़ के हम जोश-ए-अश्क*से ---------आँसुओं के बहाव
बैठे हैं हम तहैय्या-ए-तूफ़ाँ* किये हुए ------------तूफ़ान उठाने का फ़ैसला

होगा कोई ऐसा भी जो ग़ालिब को न जाने
शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है

ग़ालिब बुरा न मान जो ज़ाहिद बुरा कहे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे

कहाँ मयख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब, और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले

जब तवक़्क़ो*ही उठ गई ग़ालिब --------आस, उम्मीद
क्यों किसी का गिला करे कोई

सफ़ीना* जब किनारे पे आ लगा ग़ालिब ------ नाव
ख़ुदा से क्या सितम-ए-जोर-ए-नाख़ुदा*कहिए ----- नाव चलाने वाले के सितम

असद*ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए ---------- ग़ालिब का नाम
कहा जब उसने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब
के लगाए न लगे, और बुझाए न बुझे

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के

हुआ है शेह का मुसाहिब*फिरे है इतराता -------बादशाह की संगत में रहने वाला
वगरना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है

बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिस की परदा दारी है

मैंने माना के कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है

काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुम को मगर नहीं आती

ग़ालिबे-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों

ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र व शब-ए-माहताब में ---जिस दिन बादल छाए हों, जिस रात चाँद चमक रहा हो

पूछते हैं वो के ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ के हम बतलाएँ क्या

हम कहाँ के दाना* थे, किस हुनर में यकता* थे----- अकलमंद, माहिर
बेसबब हुआ ग़ालिब, दुश्मन आसमाँ अपना

रेख़ते* के तुम्ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब ---- उर्दू
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था

मैंने मजनूँ पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

कुछ तो पढ़िए के लोग कहते हैं
आज ग़ालिब ग़ज़ल सरा न हुआ

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़* ये तेरा बयान ग़ालिब-----भक्तिभाव की बातें
तुझे हम वली समझते, जो न बादा ख़्वार*होता--------शराब पीने वाला

ये लाश-ए-बेकफ़न असदे-ख़स्ता*जाँ की है -----परेशान ग़ालिब की लाश
हक़ मग़फ़िरत*करे अजब आज़ाद मर्द---------गुनाहों को मुआफ़ करे

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