ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ...
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा - बशीर बद्र
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ, मगर इतना तो बता
देखकर मुझको तेरे जेह्न में आता क्या है - शहज़ाद अहमद
जिसने दानिस्ता1 किया हो नज़रअंदाज़ 'वसीम'
उसको कुछ याद दिलायें, तो दिलायें कैसे - वसीम बरेलवी
अश्आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे'र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं - जांनिसार अख़्तर
जाने क्या एहसास-सा इस दिल के तारों में है
जिनको छूते ही मेरे नग़्में रसीले हो गये - शाहिद कबीर
इक जाम में गिरे हैं, कुछ लोग लड़खड़ा के
पीने गये थे चल के, लाये गये उठा के
भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिये - खुमार बाराबंकवी
ज़िंदगी मैं भी मुसाफ़िर हूँ तेरी कश्ती का
तू जहाँ मुझसे कहेगी, मैं उतर जाऊँगा - मुईन नज़र
ना सुनो, गर बुरा कहे कोई
ना कहो, गर बुरा करे कोई - ग़ालिब
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो, तो फ़ासिला निकले - वसीम बरेलवी
वीरां है मैकदा, ख़ुमो-साग़र उदास हैं
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के - फ़ैज़
किसे बताऊँ कि गुज़री है ज़िंदगी कैसे
जहां में कोई भी भाया, तो तेरी याद आयी - ख़ालिद शरीफ़
इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं, तो क्या
हाथ आयें, तो उन्हें हाथ लगाये न बने - ग़ालिब
हमने इलाजे-ज़ख़्मे-दिल तो ढूँढ़ लिया, लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है - हस्तीमल 'हस्ती'
मुझे फूँकने से पहले, मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत, मेरे साथ जल न जाये - अनवर मिर्जा़
1. जान-बूझकर