Meerut Shahi Jama Masjid: उत्तरप्रदेश में मुस्लिम धार्मिक स्थलों को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। कृष्ण जन्म नगरी मथुरा और काशी में ज्ञानवापी के मुद्दे अभी शांत भी नहीं हो पाए थे कि इसी बीच मेरठ की शाही जामा मस्जिद पर अंगुली उठने लगी है।
मेरठ के प्रसिद्ध इतिहासकार केडी शर्मा ने दावा करते हुए कहा है कि मेरठ की शाही जामा मस्जिद बौद्ध मठ है। इस मस्जिद का निर्माण बौद्ध मठ को गिराकर महमूद गजनवी ने करवाया था, जो आज 'शाही मस्जिद' के नाम से जानी जाती है। मस्जिद से पहले बौद्ध मठ होने का दावा करने वाले इतिहासकार केडी डी शर्मा का कहना है कि अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उनके पास पुख्ता प्रमाण हैं।
मेरठ कॉलेज में प्रोफेसर पद पर सेवा दे चुके केडी शर्मा ने कहा कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक जामा मस्जिद का निर्माण 410 हिजरी में गजनी के महमूद के वजीर हसन मेंहदी ने मेरठ के सबसे ऊंचे टीले पर बने बौद्ध मठ को ध्वस्त करके किया था जिसकी मरम्मत का कार्य मुगल काल में हुमायूं ने किया, जो वर्तमान में मेरठ शहर स्थित शाही जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है।
इसी गैजेटियर का हवाला देते हुए शर्मा मान रहे हैं कि जामा मस्जिद, बौद्ध मॉनेस्ट्री को तोड़कर बनाई गई है। इसी के साथ उन्होंने राजर्षि टंडन जन्मशती के एक ग्रंथ का हवाला देते हुए कहा है कि इसमें प्रकाशित लेख 'इतिहास के वातायन' में पृष्ठ 378 और 379 में भी मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ने का उल्लेख किया गया है।
शर्मा ने बताया कि 1875 में भूकंप आया था और इस मस्जिद को कुछ क्षति पहुंची और कुछ हिस्सा टूटकर गिर गया। जो मस्जिद का हिस्सा गिरा था, उस भाग में से बौद्ध और मौर्य पाषाण काल के पिलर निकले थे। यह पिलर इतिहासकार को उनके एक मित्र असलम सैफी के घर मिले थे जिसे वे अपने घर ले आए।
पिलर के अध्ययन और मिलान के बाद यह बात एकदम साफ हो गई कि वहां बौद्ध मठ को ढहाकर मस्जिद का निर्माण किया गया है। अवशेष से मिले पिलर पर हाथियों की कलाकृतियां हैं, जो कमल और सूर्य के प्रतीक रूप में स्पष्ट दिखते हैं। इस कला को 'इंडो-बुद्धिस्ट कला' के नाम से जाना जाता है।
मेरठ शाही मस्जिद से पहले बौद्ध मोनेस्ट्री होने का दावा करने वाले इस इतिहासकार का कहना है कि वर्ष 1904 में अंग्रेजों के गैजेटियर के मुताबिक भी जामा मस्जिद को लेकर यह दावा पुख्ता होता है। उस समय हर जिले में जामा मस्जिद बनाई जाती रही है, ताकि हफ्ते में 1 दिन सब लोग एक स्थान पर एकत्रित हो सके।
इतिहासकार के मुताबिक 119 वर्ष पूर्व ब्रिटिश हुकूमत में प्रकाशित हुए गैजेटियर में भी इस घटना का उल्लेख किया गया है। गैजेटियर के वॉल्यूम-4 पृष्ठ संख्या-273 में लिखा है कि 'जामी मस्जिद का निर्माण प्राचीनकाल में रहे बौद्ध मंदिर पर किया जाना प्रतीत होता है। इसकी खोज तब हुई जब 1875 में इस बौद्ध मंदिर के अवशेष यहां से मिले थे।
मेरठ शाही जामा मस्जिद को विवादों में घिरता हुआ देकर शहर काजी जैनुस साजिद्दीन सिद्दीकी, जो अलीगढ़ मुस्लिम विवि के प्रोफेसर रहे चुके हैं, का कहना इस शाही जामा मस्जिद की उम्र लगभग 800 साल पुरानी है। उन्होंने कहा कि खलीलबल निजामी ने अपनी पुस्तक 'सल्तनत-ए-देहरी' में लिखा है कि दिल्ली सल्तनत के नासिरुद्दीन महमूद ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था। शाही मस्जिद का निर्माण महमूद गजनवी के आने के 200 साल बाद हुआ है।
शहर काजी ने कहा कि इतिहासकार मस्जिद को लेकर गलत दावे कर रहे हैं, क्योंकि महमूद गजनवी मेरठ में कभी नहीं रहा। उसके कुछ रिश्तेदार मेरठ आए थे जिनमें से एक बाले मियां हैं और वह कुछ दिन मेरठ में रुके और बाद में बहराइच चले गए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शायद मुसलमानों का एक समूह मेरठ आया हो और उन्हें एक जगह मिलने के लिए मस्जिद की जरूरत हो और उन्होंने मस्जिद बनवाई होगी। बाले मियां की याद में एक दरगाह का निर्माण मेरठ में हुआ है।
बहरहाल, मेरठ की शाही जामा मस्जिद इतिहासकार के दावे के बाद सुर्खियों में आ गई है और लोगों की कानाफूसी भी शुरू है गई है। जहां बौद्ध मठ को ध्वस्त करके मस्जिद निर्माण की बात कही जा रही है, वहीं शहर काजी और प्रोफेसर साजिद्दीन इस दावे को एक सिरे से नकार रहे हैं। शहर काजी का कहना है की चुनाव के नजदीक आते ही ऐसे बातें उठनी शुरू हो जाती हैं। मेरठ अमनपसंद शहर है और यहां शांति व्यवस्था कायम रखने का प्रयास रहना चाहिए।