वसंत आ चुका है और वैलेंटाइन डे भी नजदीक ही है। गीत गूँजते हैं कि एक मैं और एक तू है, हवा में जादू है। हाँ, यह जादू ही है। किसी को देखा, नजरें मिलीं और सैफ अली खान की तरह अपनी रानी मुखर्जी को देख गाने लगे-तेरी एक नजर से जिंदगी बवाल हो गई। इस एक बवाल से न जाने कितने नए बवाल खड़े हो जाते हैं। किसी चाँद को देख फिजाँ उस पर मर मिटती है तो सुर्खियाँ बन जाती है। मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ता है। पहले एक देवदास अपनी पारो के घर के सामने चुपचाप मर जाता था और कुछ होता नहीं था।
पहले खत, फूल, रातें, आहें और आँसू थे। घुट घुट कर मर जाना। घूँट घूँट पीकर मर जाना। था एक समय कि उपन्यासकार शरतचंद्र या फिल्मकार विमल राय का कोई देवदास अपनी पारो के गम में अपने पर इतना इमोशनल अत्याचार करता था कि शराब पीकर खून की उल्टियाँ करता था। अब समय बदल चुका है। ये विमल राय का नहीं, अनुराग कश्यप का समय है।
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पहले एक लड़की से प्रेम का इजहार करने से पहले सौ बार आईने के सामने खड़े होकर बोलने का अभ्यास करना पड़ता था। साहस जुटाना पड़ता था। मैं तुमसे प्रेम करता हूँ कहने के पहले सौ बार सपने में यह बोला जाता था। शेर से लड़कर उसकी आँख निकालने का साहस भले ही हो लेकिन प्रेम में पड़कर लड़की से बोलने में टाँगे काँपती थी। खत लिखे जाते थे, बार बार लिखे जाते थे। पढ़कर बार बार उन्हें फाड़ दिया जाता था। प्रेमिका को हजार तरह के संबोधन दिए जाते थे। मन में उसे हजार तरह से पुकारा जाता था।
लेकिन अब तो सब कुछ फटाफट है। लड़की से 'आई लव यू' बोला शाम को लड़की को बाइक पर बैठाकर हवा से बातें होने लगती थीं। और वो मना कर दे तो? प्रेम ना करें तो? कैसे नहीं करेगी, प्रेम नहीं करेगी तो तेजाब फेंक देंगे। रास्ता रोककर चाकू मार देंगे। नैट पर कट और पेस्ट के जरिए अश्लील फोटो बनाकर जारी कर देंगे। एमएमएस बनाकर बाजार में चला देंगे। नहीं तो ड्रग्स लेंगे और बर्बाद हो जाएँगे। आत्मघाती कदम उठा लेंगे। ये देवदास नहीं, देव.डी का जमाना है।
पहले खत, फूल, रातें, आहें और आँसू थे। अब ईमेल, मोबाइल, कार्ड्स औऱ खुशबू का पूरा व्यापार है। प्रेम का फैलता बाजार है। लेकिन फिर भी है वही सब। वही इमोशनल अत्याचार है, बस ढंग बदल गया है। इस फिल्म का यह गाना जबरदस्त है। यह अपने समय और उसमें मरते-मिटते प्रेमी का बयान है।
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यह हर कस्बे, नगर और महानगर की कहानी है। इमोशनल अत्याचार की कहानी है। आप आसपास नजर डालेंगे तो देव डी मिल जाएँगे। इंदौर के मनोचिकित्सक डॉ. दीपक मंशारमानी कहते हैं कि प्रेम में असफलता किसी भी युवा के लिए पीड़ादायक होती है। यह व्यक्ति की मानसिक बनावट पर निर्भर करता है कि उसे इसे लेकर आत्मग्लानी होती है या वह बदला लेने की ओर प्रवृत्त होता है। इस मौके पर भावनाएँ इतनी ज्यादा तीव्र होती हैं कि कई बार वे संयमित व्यवहार नहीं करते। वह अवसाद में डूब जाता है।
कई बार किसी भी नशे का सहारा ले लेता। इस स्थिति से उबारने के लिए जरूरी है कि उसे ऐसा माहौल दिया जाए जिसमें वह अपनी भावनाओं को बिना संकोच के कह सके। उसे मित्र-परिजनों का आत्मीय साथ मिलना चाहिए।
फ्रायड से लेकर युंग और महान रचनाकार से लेकर युवा कवि तक इस इमोशनल अत्याचार पर रचनाएँ लिख चुके हैं, विश्लेषण कर चुके हैं। शहर की ख्यात मनोचिकित्सक डॉ. स्मिता अग्रवाल कहती हैं कि प्रेम में फीलिंग आफ रिजेक्शन या नाकामयाबी में कई युवा उस काल्पनिक दुनिया में चले जाते हैं जहाँ उन्हें राहत मिलती है। अपने पर ही जुल्म करने में वे राहत महसूस करते हैं। प्रेम में असफल होने पर यादें लगातार पीछा करती हैं। इसलिए ऐसे में जब भी कोई केस आता है तो हम तीन स्तरों पर इलाज करते हैं। दवाइयाँ, रिलेक्सेशन टेक्निक्स और काउंसलिंग।
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वे कहती हैं कि रिलेक्सेशन टेक्निक्स में शवासन से लेकर प्राणायाम तक शामिल हैं। फिर काउंसलिंग की जाती है जिसमें प्रेम की असफलता से ध्यान हटाकर प्रभावित व्यक्ति का ध्यान दूसरी ओर लगाया जाता है। उसे किसी भी तरह कामों में व्यस्त रखा जाता है ताकि वह एक खास तरह की मनःस्थिति से बाहर निकल सके।
प्रेम में असफल होना एक फूल का मुरझाना है। लेकिन एक फूल का मुरझाना जिंदगी का मुरझाना तो नहीं। फूल फिर खिल जाते हैं। तो उदासी को झाड़िए, पोंछिए। नई हवा, नए फूलों के बीच और खिली धूप में साँस लीजिए। इमोशनल अत्याचार से बचकर नई बहार से आँखें दो चार कीजिए।