निर्मला देशपांडे नहीं रहीं। इस एक खबर के साथ ही उस ऊर्जा और रचनात्मक उत्साह का अवसान हुआ है जिसने समय-समय पर जीवटता के प्रतिमान गढ़े। गाँधीजी की वे सिर्फ अनुयायी ही नहीं थीं बल्कि सचमुच उन्होंने गाँधीजी के आदर्शों को गहराई से जिया था। उनका जुझारू व्यक्तित्व कभी उग्र नहीं हुआ। चाहे जम्मू-कश्मीर और पंजाब की ज्वलंत समस्या हो या तिब्बती शरणार्थियों की गृहराज्य की माँग या फिर म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली से जुड़ा आन्दोलन, निर्मलाजी ने शांति और अहिंसा के जरिए सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का विचार दिया। वे भारत की बहुलतावादी संस्कृति की अग्रदूत थीं।
पद्म विभूषण और राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार से सम्मानित निर्मला 1952 में आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा में शामिल हुईं। उन्होंने 40 हजार किलोमीटर लंबी इस यात्रा के दौरान देशभर में अहिंसा की विचारधारा का प्रचार किया।
वर्ष 2005 में 14वें राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित निर्मला ने पीपुल्स इंटीग्रेशन काउंसिल के जरिए 1997 में भारत-तिब्बत सीमा पर सत्याग्रह किया। उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों की मदद के लिए कई सम्मेलनों और सेमिनारों में भाग लिया तथा आयोजन कराया। निर्मला ने लोकतंत्र के लिए आन्दोलनरत म्यांमारवासियों का भी समर्थन किया।
निर्मला देशपांडे नहीं रहीं। इस एक खबर के साथ ही उस ऊर्जा और रचनात्मक उत्साह का अवसान हुआ है जिसने समय-समय पर जीवटता के प्रतिमान गढ़े। गाँधीजी की वे सिर्फ अनुयायी ही नहीं थीं बल्कि सचमुच उन्होंने गाँधीजी के आदर्शों को गहराई से जिया था।
वूमेंस इनीशिएटिव इन साउथ एशिया की सह संस्थापक निर्मला ने उग्रवाद प्रभावित पंजाब और जम्मू-काश्मीर में शांति मार्च निकाला। शांति तथा सांप्रदायिक सद्भाव के लिए वे लगातार काम करती रहीं।
निर्मला भारत और पाकिस्तान दोनों की ओर से ही इंडो पाक सोल्जर्स इनीशिएटिव्स फॉर पीस (आईपीएसएल) की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने भारत की समग्र बहुलतावादी संस्कृति को बनाए रखने के लिए लेखकों और कलाकारों को मिलाकर साझी विरासत नामक फोरम की स्थापना की।
निर्मला अखिल भारतीय रचनात्मक समाज की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहीं। इस संगठन के हजारों कार्यकर्ता देशभर में शांति और अहिंसा का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने विभिन्न समुदायों खासकर हिन्दू और मुस्लिमों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए एक सेतु का काम किया। वे लगातार इस दिशा में कार्यरत रहीं। राष्ट्रपति ने उन्हें अखिल भारतीय रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार 2004 से सम्मानित किया। एक समय नागपुर के मोरिस कॉलेज में राजनीति विज्ञान की व्याख्याता रहीं निर्मला को अगस्त 1997 तथा अगस्त 2004 में राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया। उन्होंनें उच्च सदन में किसानों, महिलाओं और छात्रों के मुद्दों को प्रखरता से उठाया।
गाँधीवादी सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात करने वाली और आजीवन अविवाहित रहने वाली निर्मला ने हैदराबाद बम विस्फोट में शहर की मुस्लिम महिलाओं की गिरफ्तारी, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में दलित छात्रों के साथ दुर्व्यवहार और उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने जैसे मुद्दे संसद में उठाए।
वे महिला सदस्य सशक्तीकरण समिति, ग्रामीण विकास संबंधी समिति और राजघाट समाधि समिति, सूचना और प्रसारण मंत्रालय की सलाहकार समिति की सदस्य रहीं। वे पार्लियामेंट्री फोरम ऑन चिल्ड्रन की सदस्य भी थीं। महाराष्ट्र के नागपुर में पीवाय देशपांडे के घर 17 अक्टूबर 1929 को जन्मी निर्मला ने अपने गृहनगर से ही एमए तक शिक्षा हासिल की। उन्हें तीन भारतीय विश्वविद्यालयों ने डीलिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। (वार्ता)