Motivational Tips : कैसे और क्यों हो जाती है आपकी सोच नकारात्मक?

अनिरुद्ध जोशी
वर्तमानकाल में अधिकतर लोगों की सोच नकारात्मक हो चली है। इसके पीछे कई राजनीतिक, सामाजिक और रहन-सहन में परिवर्तन के कारण भी हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति बचपन से ही गलत लोगों के साथ रहा हो या बाद में उसकी संगति गलत लोगों की हो गई हो। कई बार फिल्में, वेब सीरीज या साहित्य की किताबें भी हमारी सोच को दूषित कर देते हैं। इस तरह सोचो तो सोच के नकारात्मक होने के कई कारण हो सकते हैं। आओ जानते हैं कि क्या है इसका मनोवैज्ञानिक कारण।
 
 
इनर और आउटर : वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग हजारों विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इसलिए अधिक होते हैं कि जब हम कोई नकारात्मक घटना देखते हैं जिसमें भय, राग, द्वैष, सेक्स आदि हो तो वह घटना या विचार हमारे चित्त की इनर मेमोरी में सीधा चला जाता है जबकि कई अच्छी बातें हमारे चित्त की आउटर मेमोरी में ही घुम-फिरकर दम तोड़ देती है।
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दो तरह की मेमोरी होती है- इनर और आउटर। इनर मेमोरी में वह डाटा सेव हो जाता है, जिसका आपके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा है और फिर वह डाटा कभी नहीं मिटता। रात को सोते समय इनर मेमोरी सक्रिय रहती है और सुबह-सुबह उठते वक्त भी इनर मेमोरी जागी हुई होती है। अपनी इनर मेमोरी अर्थात चित्त से व्यर्थ और नकारात्मक डाटा को हटाओ और सेहत, सफलता, खुशी और शांति की ओर एक-एक कदम बढ़ाओ।
 
आपको याद होगा कि आपको अपने बचपन की सिर्फ वही बातें याद होंगी जिसमें आपकी जमकर मार पड़ी होगी या कोई दु:खद घटना घटी होगी। हो सकता है कि आपने किसी चीज के लिए अपने मम्मी पापा से बहुत ज्यादा जीद की होगी तभी वह मिली होगी तो ऐसी बातें भी याद रह जाती है। दरअसल, हमारा मन दुख:भरी बातें ग्रहण करने में देर नहीं करता परंतु सुखभरी बातों में से अधिकतर तो हम भूल ही जाते हैं। 
 
घटनाएं प्रभावित करती हैं : इसीलिए दुनिया में युद्ध की बातें सभी करते हैं और इतिहास भी भरापड़ा है युद्ध की गाथाओं से। परंतु यह बहुत ही कम लोग जानते हैं या बताया जाता है कि इतिहास में युद्ध, प्रेम के अलावा भी बहुत कुछ होता है। कोई व्यक्ति किस तरह सुखी हो गया या कैसे सकारात्मक हो गया यह कम ही पढ़ने को मिलता है। 
 
वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारा मन दिन और रात के विशेष समय में अन्य समय की अपेक्षा अधिक ग्रहण करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा हमारा मन उस समय भी ज्यादा सक्रिय होता है ज‍बकि कोई विपत्त आई हुई हो या कोई बहुत बड़ी खुशी की बात हो। जैसे जब लॉकडाऊन लगा था तो संपूर्ण देश की चेतना जागृत हो गई थी कि अब क्या होगा। कोरोनाकाल संकट का काल है तो इसकी याददाश्त तो सभी को बहुत समय तक रहेगी ही। इसी तरह जब दो देशों के बीच युद्ध हो जाते हैं तब भी सभी की चेतना जागृत हो जाती है। अर्थात यह की हमारे मन को हमारे जीवन में आई बड़ी घटनाएं प्रभावित करती है।

 
 
कैसे बन जाता है व्यक्ति दुखी और रोगी : जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। अर्थात वह हमारी इनर मेमोरी में चला जाता है। आपके आसपास बुरे घटनाक्रम घटे हैं और आप उसको बार-बार याद करते हैं तो वह याद धारणा बनकर चित्त में स्थाई रूप ले लेगी। बुरे विचार या घटनाक्रम को बार-बार याद न करें।
 
विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि आपको अपनी सेहत को लेकर भय है, सफलता को लेकर संदेह है और आप विश्वास खो चुके हैं तो समझ जाएं की चित्त रोगी हो गया है। किसी व्यक्ति के जीवन में बुरे घटनाक्रम बार-बार सामने आ जाते हैं तो इसका सीधा सा कारण है वह अपने अतीत के बारे में हद से ज्यादा विचार कर रहा है। बहुत से लोग डरे रहते हैं इस बात से कि कहीं मुझे भी वह रोग न हो जाए या कहीं मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए....आदि। सोचे सिर्फ वर्तमान को सुधारने के बारे में।
 
 
कैसे होगा यह संभव : योग के तीन अंग ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय और धारणा से होगा यह संभव। जैसा कि हमने उपर लिखा की इनर और आउटर मेमोरी होती है। इनर मेमोरी रात को सोते वक्त और सुबह उठते वक्त सक्रिय रही है उस वक्त वह दिनभर के घटनाक्रम, विचार आदि से महत्वपूर्ण डाडा को सेव करती है। इसीलिए सभी धर्म ने उस वक्त को ईश्वर प्रार्थना के लिऋ नियु‍क्त किया है ताकि तुम वह सोचकर सो जाए और वही सोचकर उठो जो शुभ है। इसीलिए योग में 'ईश्वर प्राणिधान' का महत्व है।
 
संधिकाल अर्थात जब सूर्य उदय होने वाला होता है और जब सूर्य अस्त हो जाता है तो उक्त दो वक्त को संधिकाल कहते हैं- ऐसी दिन और रात में मिलाकर कुल आठ संधिकाल होते हैं। उस वक्त हिंदू धर्म और योग में प्रार्थना या संध्यावंन का महत्व बताया गया है। फिर भी प्रात: और शाम की संधि सभी के लिए महत्वपूर्ण है जबकि हमारी इनर मेमोरी सक्रिय रहती है। ऐसे वक्त जबकि पक्षी अपने घर को लौट रहे होते हैं...संध्यावंदन करते हुए अच्छे विचारों पर सोचना चाहिए। जैसे की मैं सेहतमंद बना रहना चाहता हूं।
 
 
ईश्वर प्राणिधान : सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर और न ही गुरु घंटाल।
 
एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

 
विश्वास रखें सिर्फ 'ईश्वर' में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी। और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर लेगी और फिर आप सोचे अपने बारे में सिर्फ अच्‍छा और सिर्फ अच्छा। ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेगा।
 
स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएं। जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूँगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूँ। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

 
धारणा से पाएं मनचाही सेहत, खुशी और सफलता : जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वह धारणा का रूप धर लेते हैं। यह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।

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