मूलबंध अपान वायु, जो उत्सर्जन की क्रिया संपादित करती है को नियंत्रित करता है। उड्डीयान बंध अवशोषण क्रिया संपादित करने वाली समान वायु को नियंत्रित करता है। जालंधर बंध उदान वायु (जो भोजन निगलने और स्थूल शरीर को सूक्ष्म शरीर से पृथक करने की क्रिया संपादित करती है, को नियंत्रित करता है)। इन प्राणों अथवा वाय के विषय में प्राणायाम वाले अध्याय में विस्तार से बताया गया है।
मानवता के लिए बंध अद्भुत वरदान हैं। ये कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने, प्रखर स्वास्थ्य, दीर्घ जीवन, स्फूर्ति, मानसिक शक्ति और अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करते हैं। इनसे शरीर और मन की अनेक बीमारियाँ दूर होती हैं। शक्ति, प्रेरणा और प्रणों के अक्षय भंडार खोलने के लिए ये रहस्यमय कुँजी हैं।
पुस्तक : आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध (Yaga Exercises For Health and Happiness)
लेखक : स्वामी ज्योतिर्मयानंद