कोरोनाकाल का संकटपूर्ण समय ऐसा है कि यदि आप इस काल में योग और यौगिक आहार के संबंध में नहीं जानते हैं तो जान लें, क्योंकि अन्न ही अमृत है और अन्न ही जहर है। जब तक कोरोनावायरस का काल चल रहा है तब तक खुद को और परिवार को बचाकर रखना जरूरी है। इसकी गंभीतरता को आप समझते ही होंगे। आन योग या योगासन ना भी करें तो भी यौगिक आहार को जरूर अपनाएं।
यौगिक आहार के नियम :
1. अन्न को अच्छी भावदशा, ऊर्जावान, साफ-सुथरी तथा शांतिमय जगह पर ग्रहण किया जाए तो वह अमृत समान होता है।
2. ध्यान में रखना चाहिए कि भोजन तरल, सुपाच्य, पुष्टिकारक और सुमधुर हो।
3. गाय के दूध से बनी चीजें हों। इस प्रकार के भोजन से व्यक्ति आजीवन निरोगी बना रहता है।
हिन्दू धर्म अनुसार तीन तरह के आहार होते हैं सात्विक, राजसिक और तामसिक, परंतु हम यहां आपको यौकिक आहार के बारे में बताएंगे। अन्न में कई तरह के रोग उत्पन्न करने की शक्ति है और यही हर तरह के रोग और शोक मिटा भी सकता है। योग में अन्न के कुछ प्रकार बताते हुए कहा गया है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। मूलत: इसके तीन प्रकार हैं- मिताहार, पथ्यकारक और अपथ्यकारक।
1. मिताहार : मिताहार का अर्थ सीमित आहार। जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही भोजन लेना और साथ ही भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले तत्व भी सीमित हैं तो यह मिताहार है। मिताहार के अंतर्गत भोजन अच्छी प्रकार से घी आदि से चुपड़ा हुआ होना चाहिए। मसाले आदि का प्रयोग इतना हो कि भोजन की स्वाभाविक मधुरता बनी रहे।
ये भोजन हैं:- कड़वा, खट्टा, तीखा, नमकीन, गरम, खट्टी भाजी, तेल, तिल, सरसों, दही, छाछ, कुलथी, बेर, खल्ली, हींग, लहसुन और मद्य, मछली, बकरे आदि का मांस। ये सभी वस्तुएं अपथ्यकारक हैं। इसके अलावा बने हुए खाने को पुन: गरम करके भी नहीं खाना चाहिए। अधिक नमक, खटाई आदि भी नहीं खाना चाहिए।
3. पथ्यकारक भोजन : योग साधना या सेहतमंद बने रहने के लिए भोजन पुष्टिकारक हो, सुमधुर हो, स्निग्ध हो, गाय के दूध से बनी चीजें हों, सुपाच्य हो तथा मन को अनुकूल लगने वाला हो। इस प्रकार के भोजन योग के अभ्यास को आगे बढ़ाने में सहायक तत्व होते हैं।