हम हैं हाट वाले...

- अनहद

रब ने बना दी जोड़ी और गजनी दोनों फिल्मों ने अकल्पनीय मुनाफा कमाया है और सवाल यह पैदा होता है कि क्या आम दर्शक पर मंदी का कोई असर नहीं पड़ा है? अगर आम दर्शक पर मंदी का फर्क पड़ा होता, तो दर्शक बॉक्स आफिस को तोड़ डालने की हद तक ये दोनों फिल्में नहीं देखते। पेट में रोटी और तन पर कपड़ा हो, तो ही फिल्म अच्छी लगती है। भूखे न भजन हो सकता है और न मनोरंजन। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने ये दोनों फिल्में एक बार से ज्यादा देखी हैं। पहले खुद देखीं और फिर अपने परिवार को दिखाई हैं। पूछा जा सकता है कि मंदी है कहाँ?

जिन लोगों को तेजी से कभी कोई फायदा नहीं हुआ, मंदी उनका क्या बिगाड़ सकती है? कुछ बड़े लोगों के लिए मंदी भले ही कुछ मायने रखती हो, आम आदमी के लिए कोई मायने नहीं रखती। मंदी के चलते बहुत-सी चीजें सस्ती हुई हैं, जैसे खाने का तेल, आटा, शकर, पेट्रोल, डीजल, मकान बनाने का सामान...। आम आदमी के लिए तो मंदी फायदे की चीज साबित हुई है। उसकी मजदूरी की दर लगभग वही है, पर उसके पास अब सिनेमा का टिकट खरीदने को पैसा बचने लगा है। यही वजह है कि दोनों बड़ी फिल्में ठाठिया टॉकीजों में भी देखी जा रही हैं और महँगे मल्टीप्लेक्सेस में भी। कहीं पर भी दर्शक कम नहीं हैं। जिस तरह तेजी की खबरें मीडिया का फुगावा थीं, उसी तरह मंदी की खबरें भी मीडिया का मातम हैं। आम आदमी को खाने के लिए रोटी, पहनने को मोटा सस्ता कपड़ा और ओढ़ने के लिए मैली-कुचैली रजाई पहले भी मिल रही थी, अब भी मिल रही है। अमीर आदमी, जिस पर मंदी का असर हुआ है, वो भी पहले जैसा ही रह रहा है, खा-पी रहा है। फिर काहे की मंदी? बंगाल और बिहार के अकाल-सूखे जैसे तो हालात नहीं हैं। बच्चे लूडो खेलते हैं, व्यापार खेलते हैं। झूठ-मूठ में वो खरीदते-बेचते हैं। इसी तरह का खेल लोग बड़े होकर भी खेलते हैं। आँकड़े इधर-उधर होने से खुश या निराश हो जाते हैं। खाते वही दो रोटी हैं और पहनते भी उसी स्तर का है, जो नुकसान से पहले पहनते थे। बहुत कम ही नुकसान या मंदी का असर उनके जीवन स्तर पर पड़ता है।

फिल्म इंडस्ट्री को मंदी से दोहरा फायदा हुआ है। दर्शक जमकर फिल्में देख रहे हैं और उधर सितारों ने मंदी के चलते अपना मेहनताना घटा दिया है। इस समय दर्शक हर अच्छी फिल्म को देखने के मूड में है और "चाँदनी चौक टू चाइना" के लिए भी आसार अच्छे हैं। अगर फिल्म दर्शकों को अच्छी लगी तो सफल जरूर होगी। आम आदमी के पास अपने पसीने और मेहनत की कमाई का इतना पैसा तो है कि वो अपनी जरूरतें बेहिचक पूरी कर रहा है और मनोरंजन पर पैसा खर्च करने से भी वह पीछे नहीं हट रहा। दरअसल, मंदी से ज्यादा लोगों को मंदी की अफवाह ने डरा रखा है। अपने देश में मंदी होना नामुमकिन है। करोड़ों लोग पेट भी भरेंगे, मनोरंजन भी करेंगे और त्योहार भी मनाएँगे। यहाँ बाजार जिंदगी से जुड़ी चीज है। शेयर बाजार और हाट-बाजार में बहुत अंतर है। ये देश शेयर बाजार से नहीं, साप्ताहिक हाटों से चलता है।

(नईदुनिया)

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