तपना है जितना तुम्हें तप लो उतना तुम सूर्य...। धर कर कंधे गैती, फावड़ा लेकर हाथों में कुदाल हमें तो खोदना है नहरें -कुएँ -ताल... बनाना है मेड़ें, भरना है नीवें तोड़ना पत्थर सिर पर तसला रख पहुँचाना है गारा आखिरी मंजिल तक। घड़ना है घर, मकान, भवन लगाना है कहकहे, जमीन पर सोना है गहरी नींद आखिरी साँस तक जीना है जीवन रहना है टन्न...। तपना है जितना तुम्हें तप लो उतना सूर्य...। तापते रहेंगे तुम्हें हम ऐसे जैसे ताप रहे हों शीत में अलाव रिसाते रहेंगे पसीना, ऐसे जैसे रिसता है, पानी मिट्टी के घड़े से। झेलेंगे तुम्हें, निडर बेफिकर लगाए रहेंगे, छोड़ेंगे नहीं झड़ी लगने की आस सूरज का ताप झेल सहकर हम काले हुए कोयले की तरह।
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भीतर का ताप-दाब सहकर पिघले-गले तली में रहे तेल की तरह। भूतल पर चला हल उर्वर किया जननी को अंदर हमारे आग है भरपूर जिएँगे धरती के संग डिगेंगे नहीं... अंत तक... रहेंगे डटे...। तुम्हें जितने तपना है तप लो तुम उतना सूर्य...।