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रोग-व्याधि सभी दूर करने हेतु
हेतु- रोग-व्याधि सभी दूर हो जाते हैं।
उद्भूत-भीषण जलोदर भारभुग्नाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युत जीविताशाः ।
त्वत्पाद-पंकज-रजोऽमृत दिग्ध-देहा मर्त्या भवन्तिमकरध्वज-तुल्यरूपाः ॥ (45)
भयंकर-भीषण जलोदर (पेट का भयानक रोग) के आक्रांत हुआ, जिसका शरीर क्षत-विक्षत हो चुका हो... जीवन की आशा धुमिल होकर नष्ट हो रही हो... ऐसे में भी यदि मनुष्य आपके चरण-कमल की रज को धारण करे तो अवश्य वह तंदुरुस्त होकर खूबसूरती को प्राप्त कर लेता है।
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अक्खीणंमहाणसाणं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवति क्षुद्रोपद्रव शांतिकारिणि रोग कुष्ठ-ज्वरोपशमनं कुरु कुरु स्वाहा ।
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