नींव के पत्थर

चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक'

प्यारे भाइयों और बहनों!

चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक' का स्मरण हिन्दी बाल कविता के प्रथम पंक्ति के रचनाकारों के साथ किया जाता है। 1 सितंबर, 1925 को कानपुर (उप्र) में जन्मे मयंक जी व्यवसाय से एडव्होकेट थे और प्रवृत्ति से एक बेहद सरल निश्छल संवेदनशील कवि। इन्होंने अपना पूरा जीवन ही बच्चों के लेखन में खपा दिया। मयंक जी ने बच्चों के लिए लगभग पचास पुस्तकों की रचना की जिनमें प्रमुख है परियों का नाच, सैरसपाटा, दूध मलाई, बज गया बिगुल, राजा बेटा, हिम्मत वाले, जंगल का राजा, बंदर की दुलहिन हैं। उप्र हिन्दी संस्थान द्वारा बाल साहित्य के सर्वोच्च सम्मान 'बाल साहित्य भारती' से सम्मानित किए गए। 26 जून, 2000 को कानपुर में ही इनका निधन हो गया। यहाँ उनकी चुनिंदा कविताएँ आपके लिए प्रस्तुत हैं -

जादूगर अलबेला
छू, काली कलकत्ते वाली,
तेरा वचन न जाए खाली।
मैं हूँ जादूगर अलबेला,
असली भानमती का चेला।
सीधा बंगाले से आया,
जहाँ जहाँ जादू दिखलाया।
सबसे नामवरी है पाई,
उँगली दाँतों तले दबाई।
जिसने देखा खेल निराला
जकर खूब बजाई ताली!
चाहूँ तिल का ताड़ बना दूँ
रुपयों का अंबार लगा दूँ।
अगर कहो तो आसमान पर
तुमको धरती से पहुँचा दूँ।
ऐसे ऐसे मंतर जानूँ
दुख संकट छू मंतर कर दूँ
बने, कबूतर, बकरी काली।

मिस्टर पाल
मिस्टर पाल, मिस्टर पाल,
गए खेलने को फुटबॉल।
नाटे, मोटे मिस्टर पाल
उस दिन दिखला गए कमाल।
मारी शॉट उड़ा फुटबॉल
खुद भी गिरे उछल कर पाल।

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