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जमीन के अंदर की चट्टानें अचानक टूटने से भूकंप आता है।
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भूमि के भीतर टेक्टोनिक प्लेटों के हिलने से भूकंप आता है।
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भूमि कटाव, अवसादन, या हिमनद पिघलने जैसी चीजों से भूकंप आता है।
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जब किसी निश्चित क्षेत्र पर भार हटा दिया जाता है, तो यह जमीन को उछाल सकता है और इससे भूकंप पैदा हो सकता है।
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अत्यधिक खनन और बढ़ते तापमान के चलते भी भूकंप आता है।
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चंद्रमा और धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण भी भूकंप आता है।
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ज्वालामुखी के फटने, भूस्खलन, खदानों में विस्फोट, परमाणु परीक्षणों की वजह से भी भूकंप आते हैं।
1. परमाणु विस्फोट : कई देश पूर्व में परमाणु टेस्ट कर चुके हैं। इसके लिए धरती के भीतर गहराई तक एक गड्डा खोदा जाता है और वहां पर परमाणु बम फीट करके उसकी तीव्रता का टेस्ट किया जाता है। इस विस्फोट के चलते धरती के भीतर की प्लैटों में भी कंपन होता है और इसकी के चलते उनके दरकने और सरकने की गति में तीव्रता आती है। भूमिगत परमाणु परीक्षण भविष्य में भूकंपों को जन्म देता है।
2. खनन से खोखली होती धरती : धरती को कई किलोमीटर भीतर तक खोद दिया गया है। हीरा, पन्ना, तेल, कोयला, बॉक्साइड, यूरेनियम, कार्बन, तांबा, सल्फ़र, सोना, संगमरमर, ग्रेनाइड, ग्रेफाइट आदि कई खनीजों के लिए धरती को छलनी कर दिया गया है। धरती अब भीतर से खोखली होने लगी है। उनकी उपरी परत के टूटने का खतरा बड़ गया है इसी के साथ यह स्थिति आने वाले समय में भूकंपों की संख्या को बढ़ा देने वाली है।
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खनन 5 जगहों पर हो रहा है- 1. नदी के पास खनन, 2. पहाड़ की कटाई, 3. खनिज, धातु, हीरा क्षेत्रों में खनन, 4. समुद्री इलाकों में खनन और 5. पानी के लिए धरती के हर क्षेत्र में किए जा रहे बोरिंग। रेत, गिट्टी, खनिज पदार्थों, हीरा, कोयला, तेल, पेट्रोल, धातु और पानी के लिए संपूर्ण धरती को ही खोद दिया गया है। कहीं हजार फीट तो कहीं 5 हजार फीट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। खोखली भूमि भविष्य में जब तेजी से दरकने लगेगी तब मानव के लिए इस स्थिति को रोकना मुश्किल हो जाएगा।
3. कटते वृक्ष से घटता ऑक्सीजन बढ़ाएगा धरती का तापमान: ब्राजील, अफ्रीका, भारत, चीन, रशिया और अमेरिका के वन और वर्षा वनों को तेजी से काटा जा रहा है। वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सीएफसी जैसी जहरीली गैसों को सोखकर धरती पर रह रहे असंख्य जीवधारियों को प्राणवायु अर्थात 'ऑक्सीजन' देने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जंगल हैं तो पशु-पक्षी हैं, जीव-जंतु और अन्य प्रजातियां हैं। कई पशु-पक्षी, जीव और जंतु लुप्त हो चुके हैं। पेड़ों की भी कई दुर्लभ प्रजातियां और वनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं। इस सबके चलते धरती का तापमान भी धीरे धीरे बढ़ने लगा है। कई प्रेक्षणों से पता चला है कि भूकंप से पहले सतह और सतह के आस-पास का तापमान 3-5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसके उलट धरती के क्षेत्र विशेष पर तापमान बढ़ने से भी भूकंप आता है। दुनियाभर में गर्मी के दिनों में भूकंप का खतरा ज्यादा बना रहता है. अक्सर इन दिनों में भूकंप के झटके ज्यादा महसूस किए गए हैं।
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4. नदी पर बने बांध, नर्मदा पर बना बांध सबसे खतरनाक : नदियों की स्वाभाविक गति को बिजली उत्पादन के लिए रोकना एक ओर जहां जलचर जीव जंतुओं के जीवन को नष्ट करना है तो दूसरी ओर कई दुर्लभ वनस्पतियों और जंगलों को भी नष्ट करना है। इसके साथ ही जब अत्यधिक माता में जल अस्वाभाविक रूप से एक ही जगह एकत्रित होकर धरती के क्षेत्र विशेष पर दबाव बनाता है तो संचित जल का कुछ हिस्सा धरती में भीतर तक समाकर कई चट्टानों पर भी दबाव बनाता है। धरती के भीतर चट्टानों को संभालने के लिए जल की जरूरत है परंतु अत्यधिक मात्रा में गया जल चट्टानों को तोड़ता है।
नदी पर बांध बनने से पृथ्वी की पपड़ी में दबाव और तनाव आता है, जिससे भूकंप आने का खतरा रहता है। भूकंप आने के कारण बांध क्षतिग्रस्त हो सकता है और बाढ़ आ सकती है। बांधों के कारण भूकंप आने की घटना को जलाशय-प्रेरित भूकंपीयता (आरआईएस) कहते हैं। बांधों के निर्माण से जमीन में सूक्ष्म दरारें और दरारों में अतिरिक्त पानी का दबाव पैदा होता है। हिंदू पुराणों में लिखा है कि नर्मदा नदी को यदि रोका गया तो इसका पानी पाताल में समाकर सैंकड़ों भूकंप की रचना करेगा और भविष्य में भारत के दो टूकड़े हो सकते हैं, क्योंकि यह नदी और विध्यांचल की पहाड़ियां भारत को दो हिस्सों बांटती है।