रायसेन। देश के हर प्रांत की तरह मध्यप्रदेश में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े अनगिनत संस्मरण हैं।
प्रदेश के रायसेन जिले के बाशिंदों ने स्वर्गीय वाजपेयी को उस समय बेहद करीब से देखा जब वे 1991 में रायसेन-विदिशा लोकसभा सीट से फार्म भरने आए आए थे। इस दौरान के कई रोचक किस्से जिले के जनप्रतिनिधियों और स्थानीय नागरिकों को याद हैं।
प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री और रायसेन जिले के सिलवानी विधायक रामपालसिंह ने बताया कि वाजपेयी लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में कहा करते थे कि जिस प्रकार सभी लोग मटके को ठोक-बजाकर लेते हैं, उसी प्रकार उन्हें (अटलजी को) भी खूब ठोक-बजा लें। स्वभाव से मस्तमौला वाजपेयी इस दौरान कई गीतों के माध्यम से भी अपने बारे में लोगों को बताया करते थे।
वहीं प्रदेश के वन मंत्री डॉ गौरीशंकर शेजवार ने बताया कि 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही जब वाजपेयी निर्वाचन अधिकारी के समक्ष नामांकन फार्म भर रहे थे तभी बाहर कथित तौर पर कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके वाहन में तोड़फोड़ कर दी। उन्होंने बाहर आकर टूटी गाड़ी देखी, लेकिन उन्हें न तो गुस्सा आया और न ही इसकी शिकायत उन्होंने निर्वाचन अधिकारी से की, उल्टे ये हरकत देखकर वे गाड़ी तोड़ने वालों की नादानी पर हंसने लगे।
जब अटलजी ने मनमोहन को इस्तीफा देने से रोका : 1991 में केंद्र में पीवी नरसिंहराव की सरकार थी और मनमोहनसिंह वित्तमंत्री थे। अटल बिहारी वाजपेयी जी तब लखनऊ के सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। मनमोहन ने अपना बजट भाषण संपन्न किया तो नेता प्रतिपक्ष होने के नाते अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में सरकार के बजट की जमकर आलोचना की।
अटलजी की आलोचना से मनमोहन आहत हो गए और प्रधानमंत्री राव को इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। राव ने तुरंत ही वाजपेयीजी को फोन कर पूरी कहानी बताई। इसके बाद अटलजी ने मनमोहनसिंह से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि उनकी आलोचना राजनीतिक है, इसको व्यक्तिगत नही लेना चाहिए। भाजपा नेताओं के साथ ही हर जन्मदिन पर अटलजी से मुलाकात करने वाले लोगों में तबसे मनमोहनसिंह भी शामिल हैं।
काम के प्रति अटूट निष्ठा : ऐसा ही एक और वाकया है, जब अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ में स्वदेश अखबार के संपादक थे। उसी दौरान कानपुर में अटलजी की बहन का विवाह समारोह था। शादी के दिन नानाजी देशमुख ने अटलजी से कहा कि आज तुम्हारी बहन की शादी है।
अटलजी बोले, ‘अखबार, शादी से ज्यादा जरूरी है।’ नानाजी चुपचाप कानपुर चले गए। वहां उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय को ये बात बताई। दीनदयाल जी कानपुर से लखनऊ आए। वह अटल से कुछ नहीं बोले और कंपोजिंग में जुट गए। शाम हुई तो उपाध्यायजी ने अटलजी से कहा, यह जो गाड़ी खड़ी है। इसमें तुम तुरंत कानपुर जाओ। बहन की शादी में शामिल हो और मुझसे कोई तर्क मत करना।