वुसत का ब्लॉग: इसलिए पाकिस्तानी चुनाव में खड़े होते हैं घोड़े

Webdunia
मंगलवार, 5 जून 2018 (11:17 IST)
- वुसअतुल्लाह ख़ान (वरिष्ठ पत्रकार, पाकिस्तान से)
 
पाकिस्तान में आम चुनाव 25 जुलाई को होंगे मगर चुनाव की तारीख़ घोषित होने से पहले ही घोड़ा मंडी सज गई। जहां घोड़ों का वंश चेक हो रहा है, वज़न चेक किया जा रहा है, हिन-हिनाहट में खरज़ नापी जा रही है और ये देखा जा रहा है कि इससे पहले कितने चुनावी रेसों में पहले, दूसरे, तीसरे नंबर पर आया है।
 
 
इसके बाद पार्टी नेता के साथ घोड़े की तस्वीर खींचती है और फिर रेस की सूची में नाम लिख लिया जाता है।
 
 
चूंकि अगली रेस हर क़ीमत पर जीतनी है इसलिए ये देखने के लिए किसी पार्टी के पास समय नहीं कि कहीं उसकी सुमो तले कोई आदमी तो नहीं कुचला गया, कहीं उसे या उसके पुरखों को किसी ने कभी गाड़ी या तांगे में तो नहीं जोता, कभी ये घोड़ा बदमाश, लुच्चे या रेपिस्ट को सवारी तो नहीं बना रहा, मालिक को कभी बीच रास्ते में उछाल कर तो नहीं भाग गया।
 
 
बस, आओ परिचय कराओ और चुनाव तबेले में दाख़िल हो जाओ। अजब लोकतंत्र है जिसमें वोटर इंसान है और चुनाव घोड़े लड़ रहे हैं। चुनाव की दौड़ में हज़ारों घोड़े भाग लेंगे मगर लगभग 1100 ही जीत की शपथ ले पाएंगे कि वे नए मालिक के वफ़ादार रहेंगे।
 
 
साइज जैसा भी हो वो ज़्यादा चु-चरा नहीं करेंगे। भले उन्हें मालिक गाड़ी में जोते, रेस में भेजे, अपनी सवारी के लिए रखे या किसी को किराए पर दे दे। किसी बात पर बुरा मानके अगली दो टांगो पर खड़े हो कर विरोध नहीं करेंगे।
 
 
बदले में दो वक़्त ताज़ा हरी-हरी घास, आला-चोकर और खली, रोज़ाना मालिश और सुबह-शाम की सैर। जिस घोड़े ने टेढ़ा सवाल पूछा या इनकार में गर्दन हिलाई उसे किसी कोचवान के हवाले किया जा सकता है फिर चाहे वो गोली मारे, तांगे में जोते या जंगल में छोड़ दे।
 
 
पर चुनाव में बस घोड़ो को ही खड़े होने की क्यों इजाज़त है?
 
यूं इजाज़त है क्योंकि घोड़ा मालिक इंसान से भी ज़्यादा वफ़ादार होता है।
 
मगर मालिक का वफ़ादार तो कुत्ता भी होता है?
 
हां, होता है, मगर कुत्ते चुनाव इसलिए नहीं लड़ सकते क्योंकि उन पर सवारी नहीं गाठी जा सकती।
 
आम चुनाव में क्या आम आदमी भी खड़ा हो सकता है?
 
हां, बिल्कुल हो सकता है अगर वो अपना घोड़े होने का सर्टिफिकेट ले आये।
 
कोई और सवाल?
 
जी नहीं।
 
ठीक है, तो फिर जाओ चुनाव के दिन वोट देने ज़रूर आ जाना, फिर न जाने तुम्हें कब मौक़ा मिले।
 

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