बुधवार को 104 साल के वैज्ञानिक डेविड गुडऑल ने ऑस्ट्रेलिया में अपने घर से विदा ली और अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने के लिए दुनिया के दूसरे छोर के लिए रवाना हो गए। डेविड गुडऑल बॉटनी और इकोलॉजी के प्रख्यात वैज्ञानिक हैं।
उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं है लेकिन वो अपने जीवन का सम्मानजनक अंत चाहते हैं। वो कहते हैं कि उनकी आज़ादी छिन रही है और इसीलिए उन्होंने ये फ़ैसला लिया है।
बीते महीने अपने जन्मदिन के मौक़े पर उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन को बताया था, "मुझे इस उम्र में पहुंचने का पछतावा है। मैं ख़ुश नहीं हूं, मैं मरना चाहता हूं। ये वाकई में दुखी होने वाला तो नहीं है लेकिन अच्छा होता अगर इसे टाला जा सकता।"
लंबे वक्त तक चले विवाद के बाद, बीते साल ऑस्ट्रेलिया में एक राज्य में 'असिस्टेड डाइंग' को कानूनी मान्यता दे दी है। लेकिन इसके लिए किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार होना चाहिए। डॉ. गुडऑल का कहना है कि वह स्वैच्छिक रूप से अपने जीवन को ख़त्म करने के लिए स्विट्जरलैंड में एक क्लिनिक में जाएंगे। हालांकि उन्हें ऐसा करने के लिए ऑस्ट्रेलिया छोड़ने का मलाल है।
हमेशा सक्रिय जीवन जिया
लंदन के पैदा हुए डेविड गुडऑल कुछ हफ्ते पहले तक पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में अपने एक छोटे से फ्लैट में अकेले रहते थे। उन्होंने 1979 में नौकरी छोड़ दी थी लेकिन इसके बाद वो लगातार फील्ड वर्क में लगे रहे। हाल के सालों में उन्होंने 'इकोलॉजी ऑफ़ द वर्ल्ड' नाम की 30 वॉल्यूम की पुस्तक सिरीज़ का संपादन किया था।
102 साल की उम्र में 2016 में उन्होंने पर्थ के एडिथ कोवान विश्वविद्यालय में परिसर में काम करने के संबंध में क़ानूनी लड़ाई जीती। यहां वो अवैतनिक मानद रिसर्च असोसिएट के तौर पर काम कर रहे थे।
छोड़ा ऑस्ट्रेलिया
बुधवार को ऑस्ट्रेलिया से बाहर अपनी यात्रा पर निकल रहे डॉ. गुडऑल के साथ उनकी दोस्त कैरल ओ'नील होंगी, जो असिस्टेड डाइंग एडवोकेसी समूह एक्सिट इंटरनेशनल की प्रतिनिधि हैं।
कैरल ओ'नील बताती हैं कि विश्वविद्यालय को डॉ. गुडऑल की सेहत, सुरक्षा और आने-जाने से संबंधित चिंता थी। हालांकि इस मामले में गुडऑल की जीत हुई और वो अपने घर के पास एक जगह से काम करने लगे। लेकिन उनके कामकाज से जुड़े विवाद से वो काफी प्रभावित रहे।
वो कहती हैं, "यह सिर्फ अंत की शुरुआत थी।" "वो पुराने सहयोगियों से मिल नहीं पाए। उनमें काम करने की पहले जैसी इच्छा नहीं रही और वो अपनी किताबें पैक करने लगे। ये उनके लिए खुश ना रहने की शुरुआत थी।"
डॉ. गुडऑल के अपनी ज़िंदगी को ख़त्म करने का फ़ैसला बीते महीने हुई एक घटना के बाद लिया। एक दिन वो अपने घर पर गिर गए और दो दिन तक किसी को नहीं दिखे। इसके बाद डॉक्टरों ने फ़ैसला किया कि उन्हें 24 घंटे की देखभाल की ज़रूरत है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना होगा।
कैरल ओ'नील कहती हैं, "वे स्वतंत्र व्यक्ति रहे हैं। हर समय अपने आसपास किसी को वो नहीं चाहते, वो नहीं चाहते कि कोई अजनबी उनकी देखभाल करे।"
स्विट्जरलैंड की क्यों चुना?
स्विट्जरलैंड ने 1942 से 'असिस्टेड डेथ' को मान्यता दी हुई है। कई अन्य देशों ने स्वेच्छा से अपने जीवन को ख़त्म करने के कानून तो बनाए हैं लेकिन इसके लिए गंभीर बीमारी को शर्त के रूप में रखा है।
ऑस्ट्रेलियन मेडिकल एसोसिएशन 'असिस्टेड डाइंग' का कड़ा विरोध करता है, और इसे अनैतिक मानता है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. माइकल गैनन कहते हैं, "डॉक्टरों को लोगों को मारने नहीं सिखाया जाता। ऐसा करना ग़लत है। ये सोच हमारी ट्रेनिंग और नैतिकता से गहराई से जुड़ी है।"
कैरल ओ'नील कहती हैं, "डॉ. गुडऑल शांतिपूर्वक और इज़्ज़त के साथ इस दुनिया से विदा लेना चाहते हैं। वो उदास या दुखी नहीं है, लेकिन अब पहले की तरह उनमें जीने की चाह नहीं है।"
डॉ. गुडऑल बिज़नेस क्लास में यूरोप तक का सफर कर सकें, इसके लिए एक ऑनलाइन याचिका ने 20,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर जमा किए हैं। स्विट्ज़रलैंड जाने के पहले डॉ गुडऑल फ्रांस में अपने परिवार से मिलेंगे और अपने सगे-संबंधियों के साथ आगे की यात्रा करेंगे।
डॉ. गुडऑल कहते हैं, "मेरे जैसे एक बूढ़े व्यक्ति को पूरे नागरिक अधिकार होने चाहिए जिसमें 'असिस्टेड डेथ' भी शामिल हो।" उन्होंने एबीसी को बताया, "अगर कोई व्यक्ति अपनी जान लेना चाहता है तो किसी दूसरी व्यक्ति को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।"