बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्वोत्तर मामलों के प्रभारी राम माधव ने अपने बारे में एक ख़बर प्रकाशित करने वाली वेबसाइट के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करवाया है।
'द न्यूज़ जॉइंट' नाम की वेबसाइट ने एक लेख में 10 फ़रवरी को दीमापुर आए राम माधव के बारे में आपत्तिजनक दावे किए थे। हालांकि, राम माधव की ओर से क़ानूनी कार्रवाई किए जाने के बाद ये वेबसाइट ही बंद हो गई है और इसका फ़ेसबुक पेज भी ग़ायब हो गया है।
राम माधव बीजेपी के पूर्वोत्तर मामलों के प्रभारी हैं और त्रिपुरा में चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में उन्हें लेकर जो ये मामला सामने आया है, उसका काफ़ी राजनीतिक असर हो सकता है। त्रिपुरा के चुनाव में इसका ज़ोरदार असर होगा। सीपीएम के लिए यह एक लॉटरी लगने जैसा है कि एक पेड़ से पका हुआ आम गिर गया।
बीजेपी नेता का बयान दे सकता है फ़ायदा
त्रिपुरा में बीजेपी नेता और असम के वरिष्ठ मंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा मुख्य प्रचारक हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री माणिक सरकार को कहा भी था कि उन्हें धकेलकर बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा असम में ही चल सकता है क्योंकि उससे वोट मिलता है। त्रिपुरा में 72 फ़ीसदी पूर्वी बंगाल की शरणार्थी आबादी है जिसमें सभी हिंदू हैं।
इनके बीच अगर आप जाकर यह बोलते हैं कि माणिक सरकार को आप निकाल देंगे जिनके माता-पिता आज़ादी के पहले त्रिपुरा में आकर बसे थे तो इससे बंगाली मतदाताओं के बीच नागरिकता को लेकर असुरक्षा की भावना ही पैदा होगी। यह भावना उनमें गुस्से का संचार भी करेगी कि वह उनके मुख्यमंत्री माणिक सरकार को बांग्लादेश भेजने वाले होते कौन हैं।
सीपीएम के विरोधी रहे लोग भी इस बयान के विरोध में आएंगे और चाहेंगे कि माणिक सरकार का वापस आना ज़रूरी है और बीजेपी के इन जैसे नेताओं को चुनावी परिणाम के ज़रिए मुंह पर तमाचा मारा जाए।
राम माधव को लेकर क्या हैं ख़बरें?
इसके बाद राम माधव वाला किस्सा आता है।
यहां सुनने में आ रहा है कि त्रिपुरा में कांग्रेस की प्रभावशाली नेता और सिल्चर से सांसद सुष्मिता देव ने ट्वीट कर बीजेपी नेता हेमंत बिस्वा शर्मा से सवाल पूछा है कि राम माधव को लेकर जो अफ़वाह है क्या वह सच है?
इसकी अभी किसी ने पुष्टि नहीं की है। कांग्रेस या सीपीएम के पास इस बात को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं हैं। हालांकि, नागालैंड में इसको लेकर ज़बरदस्त अफ़वाह है। नागालैंड में चुनाव स्थगित करने के लिए सक्रिय रहे एनएससीएन (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड) का कहना है कि पहले उनके साथ समझौता होना चाहिए फिर चुनाव हो।
1997 से उनके साथ बातचीत चल रही है और 2015 में उनके साथ समझौते का मसौदा तैयार हो गया था लेकिन उस समझौते का मसौदा क्या है यह अभी तक पता नहीं चला है।
एनएससीएन का दावा
सबसे बड़ी बात है कि एक क्रिसमस और गुज़र गया है लेकिन समझौते पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। इस कारण एनएससीएन के नेता मुइवा और उनके साथी ख़फ़ा हैं, वे यह चुनाव रोकने पर तुले हैं। और कहा जा रहा है कि यह हनीट्रैप उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव के ऊपर किया है।
ये सिर्फ़ सुनने में आ रहा है। इसमें कितनी हक़ीक़त है यह अभी तक साफ़ नहीं है। ऐसी अफ़वाह है कि एनएससीएन ने उनके वीडियो के ज़रिए केंद्र सरकार को धमकी दी है कि अगर नागालैंड में चुनाव रद्द नहीं करते हैं तो यह वीडियो वायरल कर दिया जाएगा।
चुनाव पर असर
अब देखना यह है कि बीजेपी अगर चुनाव रद्द कर देती है तो यह ज़ाहिर हो जाएगा कि वीडियो वाली बात में सच्चाई है। अगर चुनाव रद्द नहीं होता है तो फिर देखना होगा कि एनएससीएन के पास ऐसा कोई वीडियो है या सिर्फ़ कोरी अफ़वाह है।
आने वाले दिनों में यह साफ़ हो जाएगा कि कौन-सी बात सच है लेकिन एक सप्ताह के अंदर त्रिपुरा में जो चुनाव होने जा रहे हैं उसमें इसका असर पड़ेगा। सीपीएम इसका ढिंढोरा पीटेगा और उसको इसका ज़बरदस्त फ़ायदा मिलेगा।
(बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर से बातचीत पर आधारित. ये सुबीर भौमिक के निजी विचार हैं.)