ओपन बुक परीक्षा क्या होती है, भारत में कितनी कारगर होगी?

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दीपक मंडल, बीबीसी संवाददाता
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) इस साल नौवीं से बारहवीं तक ओपन बुक परीक्षा का पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर सकता है। अंग्रेजी पत्रकार इंडियन एक्सप्रेस से लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिंदू समेत कई अख़बारों ने इस मुद्दे पर ख़बरें प्रकाशित की हैं। इन खबरों के मुताबिक, बोर्ड की गवर्निंग बॉडी की बैठक में इस पर चर्चा हुई है।
 
ओपन बुक एग्जाम का मतलब परीक्षा देते वक़्त परीक्षार्थी किताब या दूसरी पाठ्य सामग्री देखकर सवालों के जवाब लिख सकता है।
 
सीबीएसई के अधिकारियों ने कहा है कि इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत कुछ चुनिंदा स्कूलों में कक्षा नौ - दस के अंग्रेजी, गणित, विज्ञान विषय और कक्षा 11 - 12 के लिए अंग्रेजी, गणित और जीव विज्ञान विषय की परीक्षा ओपन बुक एग्जाम के तहत कराई जा सकती है।
 
अधिकारियों के मुताबिक़, इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य यह पता करना है कि विद्यार्थी कितने वक़्त में ये परीक्षा पूरी कर लेते हैं। इसका एक अन्य मकसद शिक्षा व्यवस्था से जुड़े सभी पक्षों से फीडबैक लेना भी है।
 
इस प्रोजेक्ट के ज़रिए बच्चों के सोचने, विश्लेषण करने और आलोचनात्मक ढंग से देखने और समस्याओं को सुलझाने की क्षमताओं का आकलन किया जाएगा।
 
ओपन बुक एग्जाम से जुड़े शोध क्या कहते हैं?
दुनिया के कई देशों में ओपन बुक एग्जाम होता है। भारत में 2014 में सीबीएसई ने स्कूली बच्चों के लिए ओपन टेक्स्ट बेस्ड असेसमेंट (ओबीटीए) शुरू किया था।
 
क्लास नौ के लिए हिंदी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के अलावा क्लास 11 के लिए अर्थशास्त्र, विज्ञान और भूगोल जैसे विषयों में ओबीटीए कराए गए थे।
 
लेकिन 2017-18 में ये प्रयोग बंद कर दिया गया क्योंकि ये विद्यार्थियों में आलोचनात्मक दृष्टि पैदा करने में सफल नहीं हो रहा था।
 
नई शिक्षा नीति - 2020 में ओपन बुक एग्जाम का ज़िक्र नहीं है। लेकिन इसमें कहा गया है कि विद्यार्थियों में रटने की प्रवृति की जगह विषयों की अवधारणा को समझने की प्रवृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
 
‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़ एम्स भुवनेश्वर की ओर से कराए गए शोध का निष्कर्ष ये है कि ओपन बुक एग्जाम छात्रों का तनाव घटाने में मदद कर सकता है।
 
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में 2020 में किए गए शोध के मुताबिक़ जिन विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी उनका भी कहना था कि ये कम तनावपूर्ण था।
 
साल 2021 में धनंजय आशरी और विभू पी साहू के शोध में बताया गया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में हुए ओपन बुक एग्जाम में हिस्सा लेने वाले विद्यार्थियों ने पारंपरिक परीक्षा की तुलना में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया।
 
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली ने बीबीसी में बातचीत में कहा कि ओपन बुक एग्जाम यानी पुस्तक प्रणाली कोई नई अवधारणा नहीं है।
 
भारत में 1985-86 में इसे उत्तर प्रदेश में आजमाया जा चुका है। उस वक्त़ उत्तर प्रदेश बोर्ड ने कक्षा नौ के लिए ओपन बुक एग्जाम करवाया था लेकिन इसका फीडबैक ठीक नहीं था। बोर्ड ये परीक्षा ठीक ढंग से आयोजित कराने में नाकाम रहा और फिर इसे कभी आजमाया नहीं गया।
 
गांगुली कहते हैं, ''ये अच्छी बात है कि सीबीएसई ने नौवीं-दसवीं और ग्यारहवीं-बारहवीं क्लास के लिए ओपन बुक परीक्षा का पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का मन बनाया है लेकिन इस परीक्षा प्रणाली को लागू करने में कई चुनौतियां हैं।''
 
वो कहते हैं, ''सबसे बड़ी चुनौती है, प्रश्न पत्र तैयार करने की। फिलहाल हमारे यहां प्रश्न पत्र बनाने वालों में ये क्षमता नहीं है कि वे इसके हिसाब से सवाल तैयार कर सकें। इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित करना होगा। साथ ही उनका सशक्तिकरण करना होगा ताकि वो ओपन बुक एग्जाम के हिसाब से सवाल तैयार कर सकें।''
 
गांगुली भारत में इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियों का भी जिक्र करते हैं। वो कहते हैं कि भारत में नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्र-छात्राओं की संख्या इतनी बड़ी है कि फिलहाल इस तरह की परीक्षाएं कराना बेहद कठिन है।
 
गांगुली कहते हैं, "मिसाल के तौर पर अगर पूरे देश में आप नौवीं और दसवीं के 30 लाख बच्चों के लिए परीक्षा आयोजित करते हैं तो पूरे देश में एक जैसा रेफरेंस मैटैरियल और दूसरी पाठ्य सामग्री कैसे उपलब्ध कराएंगे। ये बेहद कठिन काम है।’’
 
हालांकि पद्मश्री शिक्षाविद जेएस राजपूत इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के दौर से बहुत आगे निकल चुका है। पुरानी सोच से बाहर निकलना होगा। आज हमारे पास आईटी की ताकत है। उससे ऐसे परिवर्तन हुए हैं जो पहले असंभव लगते थे। आज ऑन डिमांड परीक्षा होती है। पुरानी सोच इनोवेशन में बाधा पैदा करती है।’’
 
क्या ओपन बुक एग्जाम से बच्चों का तनाव कम होगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा परीक्षा प्रणाली बच्चों में विषयों को लेकर समझ विकसित करने की जगह रटने पर जोर देती है। ऐसे में ओपन बुक एग्जाम उनके लिए तनाव घटाने वाला साबित हो सकता है।
 
जगमोहन सिंह राजपूत कहते हैं, ''भारत में ओपन बुक परीक्षा की बड़ी ज़रूरत है। क्योंकि मौजूदा परीक्षा प्रणाली से बच्चों में तनाव बढ़ता जा रहा है। आज जब मैं कोटा में हर हफ़्ते किसी न किसी बच्चे की आत्महत्या का बात सुनता हूं तो दुख होता है। इसलिए ओपन बुक एग्जाम जितनी जल्दी शुरू हो उतना अच्छा।''
 
मौजूदा दौर में बच्चों को पढ़ाने वाले टीचर भी ओपन बुक एग्जाम की अहमियत समझ रहे हैं।
 
समरविले स्कूल ग्रेटर नोएडा में अंग्रेजी पढ़ाने वाली सीनियर टीचर डिंपल जोसफ कहती हैं, "कोई भी नई अवधारणा आती है तो हम थोड़ा हिचकते हैं। ऐसा ही ओपन बुक एग्जाम को लेकर हो रहा है। इसमें बच्चों को परीक्षा में ऐसे सवालों का सामना करना पड़ेगा जो उनकी विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ाएंगे।"
 
"ये किसी भी पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री के बारे में उनका नज़रिया तैयार करेगा। सबसे बड़ी बात ये है ये उन्हें रटने से निजात दिलाएगा। यह उनके लिए तनाव की वजह बन गया है।’’
 
हालांकि, अशोक गांगुली कहते हैं, "कहा जा रहा है कि ओपन बुक एग्जाम से परीक्षा में नकल करने और कदाचार के दूसरे मामले कम हो जाएंगे। इससे बच्चों में तनाव कम होने की बात भी कही जा रही है। लेकिन ऐसा नहीं होगा। क्योंकि आखिरकार बच्चों पर परीक्षा में अच्छे नंबर का दबाव बना ही रहेगा।’’

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