बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे के सामने पिता की विरासत को बचाने की चुनौती?

विकास सिंह

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 (15:15 IST)
बिहार की राजनीति में सीवान हमेशा से चर्चा के केंद्र में रहा है। 90 के दशक में जब बिहार की राजनीति अपराधियों का बोलबाला था तब सिवान में बाहुबली शहाबुद्दीन की हुकूमत चलती थी। आरजेडी के टिकट पर चार बार सांसद चुने जा चुके बाहुबली शहाबुद्दीन की भले ही 2021 में कोरोना से मौत हो गई लेकिन आज भी सीवान में उसके नाम की हुकूमत चलती है। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन का बेटा शहाब रघुनाथपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है।

सीवान में शहाबुद्दीन की चलती थी सामानांतर सरकार- तीन दशक से अधिक लंबे समय तक सिवान में अपनी सामानांतर सरकार चलाने वाले बाहुबली शहाबुद्दीन का उदय भी बिहार के अन्य बाहुबलियों की तरह 1990 के विधानसभा चुनाव से होता है। जेल में बंद रहकर अपनी सियासी पारी की शुरुआत करने वाला शहाबुद्दीन 1990 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुना गया था।
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पहली बार विधायक बनने के साथ शहाबुद्दीन रातों-रात मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का करीबी बन जाता है और वह लालू सेना (पार्टी) का सदस्य बन जाता है। शहाबुद्दीन लालू यादव का कितना करीबी था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार शहाबुद्दीन के नाराज होने पर खुद लालू उसको मनाने पहुंचे थे। 

बिहार में जंगलराज का था ब्रांड एम्बेसडर- 90 कके दशक तक अगर बिहार में की पहचान देश ही नहीं विदेश में एक ऐसे राज्य के रूप में होती थी जहां कानून का राज न होकर जंगलराज कहा जाता था तो उसका बड़ा कारण अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह शहाबुद्दीन ही था। दूसरे शब्दों में कहे कि शहाबुद्दीन बिहार में जंगलराज का ब्रांड एम्बेडर था तो गलत नहीं होगा।

हत्या,अपहरण, लूट, रंगदारी और अवैध हथियार रखने के तीन दर्जन से अधिक मामलों में पुलिस की फाइलों में A श्रेणी का अपराधी  शहाबुद्दीन अपने छात्र जीवन में अपराध की दुनिया की ओर कदम बढ़ा दिए थे। छात्र राजनीति में शहाबुद्दीन का टकराव कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से हुआ और वह देखते ही देखते उसने वहां अपना साम्राज्य कायम कर लिया।

1990 में खादी का चोला पहनने के बाद शहाबुद्दीन ने अपने विरोधियों को एक-एक कर निशाना बनाना शुरु करता है और 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 कार्यकर्ताओं की हत्या हो जाती है। इनमें जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और श्यामनारायण जैसे नेता भी शामिल थे।
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शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम है जिसने राजनीति और अपराध की दुनिया की सीढ़ियां एक साथ चढ़ी। पुलिस की फाइलों में 1986 में शहाबुद्दीन के खिलाफ पहला केस हुसैनगंज थाने में दर्ज होता है और वह 1990 में निर्दलीय विधायक बन जाता।

अपराध के साथ चढ़ा सियासी ग्राफ-शहाबुद्दीन के राजनीति में आने की कहानी मुंबईया फिल्मों की पटकथा जैसी ही है। कहा जाता है कि अपने उपर पहला केस दर्ज होने के बाद शहाबुद्दीन अपने इलाके के विधायक त्रिभुवन नारायण सिंह के पास मदद मांगने जाता है लेकिन विधायक जी किसी अपराधी की मदद करने से साफ इंकार कर देते है। इसके बाद जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने वाला शहाबुद्दीन जेल में रहकर चुनाव लड़ता है और माननीय विधायक जी बना जाता  है।
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2004 का बिहार का चर्चित तेजाब कांड- 1990 और 1995 में विधायक और 1996 से 2004 तक लगातार चार बार सांसद चुने जाने वाला शहाबुद्दीन के सितारे 2004 में हुए तेजाब कांड़ के बाद बदल जाते है। सत्तारूढ़ पार्टी के अपराधी सांसद शहाबुद्दीन का खौफ पूरे सीवान में था, कहा जाता है कि सीवान में रहना है तो शहाबुद्दीन को टैरर टैक्स देना है। हर कोई शहाबुद्दीन के नाम से खौफ खाता था। व्यापरियों को धंधा करने के लिए रंगदारी देनी पड़ती थी। 2004 में प्रतापपुर शहर के व्यापारी चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदाबाबू और उनके बेटे शहाबुद्दीन के गुर्गो को रंगदारी देने से साफ इंकार कर देते है।

पहली बार अपने साम्राज्य को मिली इस चुनौती से जेल में बंद शहाबुद्दीन बौखला जाता है और जेल से निकलकर चंदाबाबू के दो जवान बेटों गिरीश राज और सतीश राज का अपहरण कर प्रतापपुर में तेजाब से नहालकर बेरहमी से मौत के घाट उतार देते है। इसके दस साल बाद अगस्त 2014 में इस घटना के गवाह और चंदाबाबू के तीसरे बेटे राजीव रौशन की भी गोलियों से भूनकर हत्या कर दी जाती है। इस चर्चित तेजाब कांड ही शहाबुद्दीन को उमक्रैद की सजा सुनाई जाती है और साल 2021 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में कोरोना से संक्रमित शहाबुद्दीन की मौत हो जाती है।        

पुलिस से सीधी भिड़ंत– सिवान में अपनी सामांनतर सरकार चलाने वाला शहाबुद्दीन को पुलिस का खौफ नाम मात्र का भी नहीं था। पुलिस भी उस पर सीधे हाथ डालने से बचती थी। साल 2001 में जब पुलिस ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई करने की हिमाकत की तो पुलिस और उसके समर्थकों में सीधे भिड़ंत हो गई। दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में आठ लोग मारे गए जिसमें दो पुलिस कर्मी भी थे। शहाबुद्दीन की सेना (सथियों) ने पुलिस को खाली हाथ लौटने पर मजबूर कर दिया।

बेटे पर पिता की विरासत को संभालने की चुनौती- 2021 में शहाबुद्दीन की मौत के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है जब उनके ओसामा शहाब पिता की  राजनीतिक विरासत संभालने के लिए चुनाव मैदान में  उतरने जा रहा है। रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में ही बाहुबली नेता रहे शहाबुद्दीन का पैतृक गांव प्रतापपुर आता है। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में रघुनाथपुर से  शहाबुद्दीन के परिवार की साख दांव पर लगी है। वर्तमान में रघुनाथपुर सीट पर आजेडी के हरिशंकर यादव का कब्जा है लेकिन उन्होंने  शहाबुद्दीन के बेटे ओसमा शहाब के लिए सीट छोड दी है। दरअसल हरिशंकर यादव को 2020 के विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन के कहने पर रघुनाथपुर से आरजेडी का टिकट मिला  था। वहीं  हरिशंकर यादव की जीत में  शहाबुद्दीन फैक्टर का अहम रोल रहा है और अब उसी फॉर्मूले पर ही ओसामा शहाब ने रघुनाथपुर सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है।

बिहार के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रघनाथपुर सीट पर शहाबुद्दीन फैक्टर का असर अब भी काफी दिखाई देता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की हिना शहाब निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी थी और 3 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। वहीं रघुनाथपुर सीट के जातीय समीकरण, शहाबुद्दीन के प्रति क्षेत्र के लोगों का भावनात्मक जुड़ाव और परिवार की लोकप्रियता अब भी  काफी असर डालती है। अब इस बार के विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि शहाबुद्दीन के बेटे ओसाम शहाब पिता के नाम पर चुनाव जीतते है या सीवान में शहाबुद्दीन का असर अब इतिहास की बात हो गया है।

 

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