88 साल के फिल्म के डायरेक्टर अरिबम श्याम शर्मा कान फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने के लिए यहां तक तो पहुंच गए लेकिन स्क्रीनिंग में शामिल नहीं हो सके क्योंकि उनकी तबियत ख़राब हो गई। इस फिल्म को लिखा है बिनोदिनी देवी ने। फिल्म का रीस्टोरेशन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की कोशिशों से पूरा हुआ। फाउंडेशन ने शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर कहते हैं कि पहली बार इस फिल्म को 2021 में देखा था और उसी वक़्त तय कर लिया था कि जिस फिल्म ने मणिपुरी सिनेमा को दुनिया के नक़्शे पर लगा दिया उसे तो सहेजना भी है और फिर से दुनिया के सामने लाना है।
फिल्म शुरू होती है थम्पा और उसके छोटे से परिवार से, जहां उसकी बेटी है, पति है और मां। सब कुछ सुकून से चल रहा होता है कि अचानक थम्पा परिवार को छोड़ कर माईबी बन जाती है। यहां परिवार की उन अनकही मुश्किलों को महसूस करना होता है जब लोग कम से कम शब्दों में बात करते हैं।
बुनुएल थिएटर में इस फिल्म को देखना एक शानदार अनुभव है। बहुत ख़ुशी होती है कि भारत के अलग अलग इलाकों से फिल्में यहां तक आ पाती हैं लेकिन कहीं न कहीं दुःख भी होता है कि ऐसी फिल्मों की जानकारी भी हमें कान फिल्म फेस्टिवल की वजह से मिलती है। इस बात की कोशिशें करना बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी कला की धरोहर को बेहतर ढंग से सहेज पाएं।