हिंदी फिल्म संगीत इस समय जिस उजाड़ बगीचे से गुजर रहा है उसमें हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि सन् 1955 में एक ऐसा भी वक्त था जब हिट-परेडों और गीतमालाओं में एक साथ श्री 420 (शंकर-जयकिशन), उड़न-खटोला (नौशाद), मुनीमजी (एसडी बर्मन) तथा आजाद (सी रामचंद्र) के गीत बज रहे थे।
उन दिनों यह एक कौतुक का विषय था कि इन फिल्मों में से किसे श्रेष्ठ संगीतकार का अवॉर्ड या गीतमाला का सरताज गीत बनने का सौभाग्य मिलेगा। मगर जैसा कि अक्सर घुड़दौड़ के मैदान में होता है कि काला घोड़ा पीछे से आकर दौड़ जीत जाता है, हेमंत कुमार भी अचानक अपनी 'नागिन' की धुन बजाते हुए आए और बाजी जीत ले गए।
मुंबई की फिल्मी दुनिया में संगीत-निर्देशक के रूप में प्रवेश करने के पूर्व एक गायक तथा संगीतकार के रूप में हेमंत मुखोपाध्याय बंगाल में बहुत लोकप्रिय हो चुके थे। हिंदी फिल्मों में तो यह कहना मुश्किल है कि उनकी ख्याति एक गायक के रूप में ज्यादा थी या संगीतकार के रूप में।
बहरहाल, हेमंत कुमार ने 1940 में पहली बार बंगाली फिल्म 'निमाई संन्यास' में एचपी दास के संगीत निर्देशन में पार्श्व-गायन किया। इसके पूर्व 1937 में 'कोलंबिया' कंपनी ने उनके कुछ गैर-फिल्मी गीत रिकॉर्ड करवाए थे।
हिंदी के क्षेत्र में हेमंत ने कमलदास गुप्ता के संगीत निर्देशन में फैयाज हाशमी के दो गीतों- 'कितना दु:ख भुलाया प्यारी' तथा 'ओ प्रीत निभाने वाली' के साथ प्रवेश किया। जवाब की सफलता के बाद कमलदास गुप्ता ने 1947-48 में हेमंत से हिंदी फिल्म 'जमीन-आसमान' के गीत गवाए।
मुंबई में जब हेमेन गुप्ता ने 'आनंदमठ' के निर्माण की योजना बनाई तो उन्होंने हेमंत को इस फिल्म का गायक-संगीतकार नियुक्त किया। सचिन बर्मन ने 'सजा' में उनसे 'आ गुप-चुप, गुप-चुप प्यार करें' गवाया मगर लोकप्रियता की चोटी पर वे 'ये रात ये चांदनी, फिर कहां' (जाल) से ही पहुंचे।
जैसा कि ऊपर कहा गया है, हेमंत कुमार को संगीत-निर्देशक के रूप में सफलता 'नागिन' से ही मिली, मगर बाद की उनकी बीस साल बाद, अनुपमा, काबुलीवाला, मिस मेरी, कोहरा, खामोशी और साहब बीवी और गुलाम संगीत की दृष्टि से कहीं ज्यादा प्रतिष्ठा दिलाने वाली साबित हुईं।
है अपना दिल तो आवारा (सोलवां साल), जाग दर्द ए इश्क (अनारकली), तेरी दुनिया में जीने से बेहतर (घर नं 44), आया तूफान (बादबान), न तुम हमें जानो (बात एक रात की), न ये चांद होगा न तारे रहेंगे (शर्त) जैसे मधुर फिल्मी गीतों के अलावा हेमंत कुमार की लोकप्रियता उनके गैर फिल्मी गीतों के कारण भी रही।
मधुबन में न श्याम बुलाओ, आंचल से क्यूं बांध लिया मुझ परदेसी का प्यार, भला था कितना अपना बचपन, मैं साज बजाऊं तुम गाओ, ए शाम की हवाओं, आदि गीत तो सदाबहार हैं ही, बाद के गीतों में भी अभी न पर्दा गिराओ (गीत गुलजार), कल तेरी तस्वीर (गीत हसरत, संगीत रवि) को भी काफी पसंद किया गया था।
जैसा कि फिल्म क्षेत्र का दस्तूर है, एक ऐसा दौर हर कलाकार की जिंदगी में आता है जब वह फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कदम रखता है। हेमंत ने भी फिल्म बीस साल बाद से इस क्षेत्र में कदम रखा व राहगीर, खामोशी तथा कोहरा (ये नयन डरे-डरे) जैसी फिल्मों का निर्माण किया।
गुरुदत्त की विमल मित्र के उपन्यास पर आधारित साहब बीवी और गुलाम में 'चले आओ, नैना थके' (गीता दत्त), 'सुना है तेरी महफिल में रत जगा है' तथा 'भंवरा बड़ा नादान' जैसे गीतों द्वारा अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया।
उनके खामोशी और कोहरा के गीतों पर रवींद्र संगीत की भी छाप स्पष्ट है। राजेन तरफदार की क्लासिक बंगला फिल्म 'गंगा' के गीत को ही सलिल चौधरी ने उनकी आवाज में उसी लोक धुन को 'काबुली वाला' में पेश किया था।
हेमंत कुमार के कुछ लोकप्रिय प्राइवेट सांग इस प्रकार हैं: