‘स्पीड’ ब्रेकर

(यू/ए) * 12 री
निर्माता : हैरी बावेजा
निर्देशक : विक्रम भट्ट
संगीत : प्रीतम
कलाकार : ज़ायद खान, उर्मिला मातोंडकर, तनुश्री दत्ता, आफताब शिवदासानी, संजय सूरी, अमृता अरोरा, आशीष चौधरी
रेटिंग : 1.5/5

IFM
विक्रम भट्ट उन निर्देशकों में से हैं जो हॉलीवुड की फिल्मों से प्रेरणा लेकर फिल्म बनाते हैं। उनकी ताजा फिल्म ‘स्पीड’ ‘सेल्युलर’ से प्रेरित है। वैसे कई लोगों को यह फिल्म देखते समय अब्बास-मस्तान की ‘बादशाह’ के अंतिम 45 मिनट याद आ सकते हैं, जिसमें शाहरुख खान को मंत्री बनी राखी की हत्या करने का जिम्मा सौंपा जाता है। अब्बास-मस्तान ने उन दृश्यों को बेहद अच्छा फिल्माया था।

‘स्पीड’ में आफताब प्रधानमंत्री की हत्या की योजना बनाता है। इस काम के लिए वह एमआय 5 एजेंट संजय सूरी को चुनता है। वह उसकी बीवी उर्मिला और बच्चे का अपहरण कर उसे इस काम के लिए मजबूर करता है।

आफताब की गिरफ्त में उर्मिला एक टूटे-फूटे फोन के जरिये अपने पति को फोन लगाने की कोशिश करती है। गलती से वह फोन ज़ायद खान को लग जाता है। उर्मिला उससे सारा मामला बयाँ करती है। उर्मिला फोन कट भी नहीं कर सकती, क्योंकि उसे उम्मीद नहीं है कि उस फोन से दोबारा फोन लगाया जा सकता है।

ज़ायद मोबाइल के जरिये लगातार उसके संपर्क में रहता है। वह न केवल उर्मिला और उसके बच्चों को बचाता है, बल्कि उन आतंकवादियों के चंगुल से संजय सूरी को भी छुड़ाता है। प्रधानमंत्री की भी जान बच जाती है।

यह सारा घटनाक्रम कुछ घंटों का है, जिसे निर्देशक विक्रम भट्ट ने दो घंटे में समेटा है। फिल्म की कहानी रोचक है, लेकिन पटकथा में कई खामियाँ हैं जिसकी वजह से फिल्म का प्रभाव कम हो जाता है। फिल्म देखने के बाद कई सवाल मन में आते हैं, जिनका जवाब देने की जरूरत नहीं समझी गई।

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उर्मिला को बचाने के लिए क्यों ज़ायद खान सिर्फ एक ही बार पुलिस के पास जाता है? उर्मिला, ज़ायद को अपने पति का मोबाइल नंबर क्यों नहीं देती? जब ज़ायद उर्मिला को बचा लेता है, इसके बाद उर्मिला अपने पति से फोन पर बात क्यों नहीं करती?

लंदन जैसी जगह में आफताब के कैमरे हर जगह लगे हैं, क्या ये संभव है? संजय सूरी पुलिस की मदद क्यों नहीं लेता? ज़ायद को जब भी कार की जरूरत पड़ती है वह फौरन चुरा लेता है। उसे हर कार में चाबी लगी हुई मिलती है।

उर्मिला को अपहरण कर आफताब जिस जगह रखता है उसमें बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ रहती हैं। उर्मिला फिर भी भागने का प्रयास नहीं करती। जब ज़ायद खान उर्मिला को बचाने पहुँचता है तो वहाँ आफताब की सहयोगी सोफिया उसे मिलती है। आधुनिक तकनीक से लैस सोफिया उसे बजाय बंदूक से मारने के महाभारत के जमाने के हथियार से मारने की कोशिश क्यों करती है?

पटकथा लिखते समय हर पहलू पर बारीकी से गौर किया जाना चाहिए, जो नहीं किया गया है। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी लंबाई ज्यादा नहीं रखी गई है।

विक्रम भट्ट ने फिल्म की गति बनाए रखी है, लेकिन जिस रोचक अंदाज में फिल्म शुरू होती है अंत तक पहुँचते-पहुँचते मामला गड़बड़ हो जाता है। विक्रम अपने कलाकारों से भी अच्छा काम नहीं ले सके।

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ज़ायद खान को अच्छी भूमिका मिली है, लेकिन वे पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाए। कई दृश्यों में उन्होंने ओवर एक्टिंग की है, खासकर तनुश्री के साथ वाले दृश्यों में। उर्मिला मातोंडकर का अभिनय भी फीका रहा। तनुश्री दत्ता की भूमिका में दम नहीं था। आशीष चौधरी और संजय सूरी का अभिनय ठीक है। आशीष और अमृता अरोरा वाला प्रेम प्रसंग फिल्म में नहीं भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। आफताब शिवदासानी खौफ पैदा नहीं कर सके।

इस ‍तरह के फिल्म में गीत की सिचुएशन कम बनती है, फिर भी कुछ गीत रखे गए हैं, जिनमें दम नहीं है। पूरी फिल्म लंदन में फिल्माई गई है और ‍प्रवीण भट्ट का कैमरावर्क अच्छा है। कुल मिलाकर ‘स्पीड’ ऐसी फिल्म है, जिसे नहीं भी देखा गया तो कोई फर्क नहीं पड़ता।