Atrangi Re Movie Review in Hindi : तनु वेड्स मनु, ज़ीरो जैसी फिल्म बनाने वाले आनंद एल. राय को लव स्टोरी ट्विस्ट के साथ बनाना पसंद है। साथ ही वे एक अनोखा प्रेम त्रिकोण भी अपनी फिल्म में बनाते हैं जिसके जरिये लव स्टोरी में उलझन पैदा होती है। उनकी ताजा फिल्म 'अतरंगी रे' में भी यही बात नजर आती है।
तमिलनाडु का रहने वाला विशु (धनुष) दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में फाइनल ईयर का स्टूडेंट है। दो-तीन बाद उसकी शादी होने वाली है। वह बिहार के सिवन नामक शहर में जाता है। क्यों जाता है यह नहीं बताया गया।
सिवन में रिंकू सूर्यवंशी (सारा अली खान)बार-बार अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है और इससे उसके घर वाले परेशान हैं। रिंकू के माता-पिता की मौत बचपन में ही हो गई है और पूरे घर को उससे कोई लगाव नहीं है। रिंकू किसके साथ भागती है, यह किसी को पता नहीं है।
रिंकू की जबरिया शादी करने का निर्णय उसकी दादी लेती है। विशु को उठा लिया जाता है और दोनों की शादी करा दी जाती है। जब विशु और रिंकू को पता चलता है कि दोनों की लाइफ में कोई और है तो वे दिल्ली जाकर अपनी-अपनी राह पर चलने का फैसला लेते हैं। इसके बावजूद दिल्ली पहुंचकर रिंकू, विशु के बॉयज़ होस्टल में रहने लगती है। क्यों? कोई जवाब नहीं है। बॉयज़ होस्टल में कोई आपत्ति भी नहीं लेता।
रिंकू को विशु बताता है कि उसकी शादी तमिलनाडु में होने वाली है। क्या वो चलना पसंद करेगी? तो रिंकू मान जाती है। रिंकू को वह क्यों ले जाना चाहता है? रिंकू को ले जाने से मुसीबत खड़ी हो सकती है? ये सारे सवाल फिर खड़े होते हैं, जिनका जवाब फिल्म के लेखक ने बताना उचित नहीं समझा।
विशु की शादी के दौरान रिंकू-विशु की शादी का भेद खुल जाता है और उसकी शादी टूट जाती है। इस दौरान विशु को रिंकू से प्यार हो जाता है। अचानक यह प्यार क्यों हुआ? कैसे हुआ? कोई जवाब नहीं। रिंकू अपनी शादी के पहले अपनी होने वाली पत्नी को रिंकू से शादी वाली बात क्यों नहीं बताता? ये भी अहम सवाल है।
अब आते हैं ट्विस्ट पर। रिंकू के बारे में एक ऐसी बात विशु और उसके दोस्त को पता चलती है जिससे वे दंग रह जाते हैं। यह राज विशु और उसके दोस्त को ही पता चलता है। रिंकू के घर वालों, मोहल्लों वालों को कभी पता नहीं चलता। फिर आप हैरान होते हैं।
वह किसी सज्जाद नामक जादूगर का नाम लेती है जिसे वह बेहद चाहती है। अब यह सज्जाद कौन है? क्या है? रिंकू से उसका क्या लगाव है? यह फिल्म का सस्पेंस है।
फिल्म को हिमांशु शर्मा ने लिखा है और स्क्रीनप्ले में कई खामियां हैं जो समय-समय पर उभर कर फिल्म देखने का मजा खराब करती रहती है। कुछ दृश्य तो बेहद बचकाने हैं, जैसे एक मैजिक शो और सज्जाद का ताजमहल को गायब करने वाला सीन।
आश्चर्य होता है कि कैसे ये सीन लिखे गए और निर्देशक ने इन्हें मंजूर कर लिया जो कहीं से भी विश्वसनीय नहीं है। ऐसा लगता है कि लेखक और निर्देशक ने ऐसा मान लिया कि जो वे दिखा रहे हैं उसका आप मजा लीजिए और सवाल मत पूछिए।
लेखन की कमजोरी को आनंद एल. राय अपने कुशल निर्देशन से भी नहीं छिपा सके। इस कमजोर कहानी पर उन्होंने अच्छी फिल्म बनाने की पूरी कोशिश की। फिल्म को म्यूजिकल रखा और माहौल बनाने का पूरा प्रयास किया। खासतौर पर जो ट्विस्ट है उसके जरिये ही उन्होंने दर्शकों को फिल्म के अंत तक बिठाए रखने की कोशिश की।
वे सज्जाद के किरदार के जरिये दर्शकों को कुछ और आभास देते रहे, साथ ही ऐसे संकेत भी देते रहे कि जो वे आभास दे रहे हैं वो सही नहीं हो। कुछ सवाल उन्होंने अपने प्रस्तुतिकरण के जरिये पैदा किए और वक्त आने पर उनका जवाब भी दिया। लेकिन आनंद के उम्दा निर्देशन की नाव में लेखक ने हिमांशु ने इतने छेद कर दिए कि आनंद फिल्म को डूबने से नहीं बचा पाए।
गीत-संगीत के मामले में फिल्म मजबूत है। एआर रहमान की धुनों पर गीतकारों ने अर्थपूर्ण बोल लिखे हैं। सिनेमाटोग्राफर पंकज कुमार ने फिल्म को खूबसूरती के साथ शूट किया है। हेमल कोठारी का संपादन कमाल का है कि एक साधारण सी कहानी असाधारण होने का आभास देती है।
सारा अली खान ने बिंदास एक्टिंग की है, लेकिन उनके किरदार को लेखक गहराई नहीं दे पाए। अक्षय कुमार का रोल छोटा है और वे मिसफिट लगे। कई दृश्यों में उन्होंने बेमन से एक्टिंग की है। धनुष ने पूरा जोर लगाया है और सबसे बढ़िया काम उनका ही है।
कुल मिलाकर अतरंगी रे में कुछ अलग करने की कोशिश नाकामयाब रही है।
निर्माता : आनंद एल राय, हिमांशु शर्मा, भूषण कुमार, कृष्ण कुमार