दृश्यम 2 फिल्म समीक्षा: विजय के दांवपेंच और कानून के लंबे हाथ

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 18 नवंबर 2022 (14:27 IST)
Drishyam2 movie review दृश्यम के लेखक जीतू जोसेफ की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने दृश्यम की कहानी को आगे बढ़ाया क्योंकि पहले भाग की कहानी अपने आप में पूरी है और उसे देखने के बाद महसूस होता है कि अब इसे आगे ले जाने की गुंजाइश नहीं है, लेकिन इस मुश्किल काम में जीतू खरे उतरे और दृश्यम 2 (Drishyam2 review) में कहानी को वहीं से आगे बढ़ाया जहां पर खत्म की थी। बस, 7 साल की छलांग लगा दी गई। 
 
दृश्यम में दर्शकों ने देखा था कि विजय अपने परिवार द्वारा की गई एक हत्या को पुलिस से छिपाने में सफल रहता है। ये हत्या बचाव में की गई और ऐसे व्यक्ति की हुई जो अपराधी किस्म का था, इसलिए दर्शकों की सहानुभूति विजय और उसके परिवार के प्रति रहती है। विजय लाश को ऐसी जगह छिपाता है कि पुलिस के हाथ नहीं लगती और सबूतों के अभाव में वह अपने परिवार को बचा लेता है। 
 
मलयालम भाषा में बनी मूल दृश्यम 2 (Drishyam2 review), जिसमें मोहनलाल ने लीड रोल निभाया है, 2021 में सीधे ओटीटी पर रिलीज कर दी गई थी क्योंकि उस दौरान कोविड की वजह से सिनेमाघर बंद थे। 
 
हिंदी में बने पहले भाग को निशिकांत कामत ने निर्देशित किया था, लेकिन वे अब इस दुनिया में नहीं रहे इसलिए निर्माता अभिषेक पाठक ने दूसरे भाग को निर्देशित किया है। दृश्यम 2  (Drishyam2 review) का हिंदी रीमेक बिलकुल ओरिजनल फिल्म जैसा ही है, मामूली से बदलाव के साथ निर्देशक अभिषेक पाठक ने इसे दर्शकों के लिए बनाया है। 
 
किरदार वही हैं, लोकेशन भी वही है। कहानी में 7 साल का जम्प आ गया है। विजय (अजय देवगन) अब थिएटर का मालिक हो चुका है। एक फिल्म भी प्रोड्यूस कर रहा है। उसकी बेटियां बड़ी हो चुकी हैं। विजय का परिवार पूरी तरह से खौफ से मुक्त नहीं हुआ है। बुरी यादें अभी भी उनका पीछा करती रहती है और पुलिस को देख वे कांप उठते हैं।  

 
अपने इस डर का जिक्र विजय से उसकी पत्नी अक्सर करती है, लेकिन वह बात को मजाक में उड़ा देता है। असल में विजय भी थोड़ा डरा हुआ है, लेकिन जाहिर नहीं करता। साथ में उसने कुछ पुख्ता इंतजाम भी कर रखे हैं ताकि यदि पुलिस उस तक पहुंचे तो वह अपना बचाव कर सके। 
 
मलयालम में बनी दृश्यम 2  (Drishyam2 review) की तुलना में हिंदी वर्जन थोड़ा फीका है। दरअसल अभिषेक ने उसी घटना को फिर से दिखाया है, लेकिन वैसा प्रभाव पैदा नहीं कर पाए जो मलयालम में बनी दृश्यम 2  (Drishyam2 review) में नजर आता है। 
 
हिंदी वर्जन का पहला घंटा सुस्त है। कहानी आगे ही नहीं बढ़ती। दर्शक रोमांच की उम्मीद लिए बैठे रहते हैं और उन्हें थोड़ी निराशा हाथ लगती है। इंटरवल के बाद कहानी फ्रंट सीट पर आती है और इसके बाद आपको हिलने का मौका नहीं देती। विजय अपना बचाव कैसे करेगा, ये बात दर्शकों को परेशान करती है और यही से उसकी फिल्म में रूचि जागती है। 
 
कहानी में तर्क तो दिए गए हैं और वे लॉजिकल भी लगते हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ घटनाक्रम विश्वसनीय नहीं लगते। लेकिन ये बातें फिल्म देखने के बाद महसूस होती है क्योंकि क्लाइमैक्स में इन घटनाक्रमों को दिखाया गया है तब तक आप फिल्म में डूब चुके होते हैं। साथ ही ये कमियां फिल्म देखने में रूकावट नहीं बनती। 
 
स्क्रिप्ट अच्छी लिखी हुई है और आप विजय, उसके परिवार, मीरा (तबू), गाइतोंडे आदि किरदारों से परिचित रहते हैं इसलिए फिल्म से आप सीधे जुड़ जाते हैं। 
 
ओरिजनल मलयालम फिल्म में विजय के परिवार के डर को निर्देशक ने अच्छे से दर्शाया था, वैसा काम निर्देशक अभिषेक पाठक नहीं कर पाए। विजय के परिवार का डर दर्शक महसूस नहीं कर पाता। लेकिन निर्देशक का साथ अच्छी कहानी और स्क्रिप्ट देती है। 
 
कदम-कदम पर नए ट्विस्ट आते हैं जो अनपेक्षित होने के कारण दर्शकों को मजा देते हैं। क्लाइमैक्स आपको हिलने नहीं देता। कुछ सीन जो कहानी में फिट नहीं लगते, क्लाइमैक्स में पता चलता है कि महत्वपूर्ण थे। 
 
दृश्यम 2 (Drishyam2 review) की सारी कड़ियां पहले भाग से जुड़ी हुई हैं, इसलिए दृश्यम देखे बिना दृश्यम 2 देखना फिजूल है। आभास मिलता है कि दृश्यम 3 आएगी, वैसे खबर है कि मलयालम में दृश्यम 3 का काफी भाग शूट भी हो चुका है। 
 
निर्देशक अभिषेक पाठक का काम आसान था। उन्हें ऐसी कहानी और किरदार मिले जिससे दर्शक अच्छी तरह परिचित हैं। उनके सामने एक बनी बनाई फिल्म मौजूद थी जिसे उन्हें हिंदी में बनाना था। लेकिन उन्हें यह बात सीखनी होगी कि जब कहानी आगे नहीं बढ़ रही हो तो दर्शकों को किस तरह से बांधा जाना चाहिए। किस तरह से प्रभाव पैदा किया जाना चाहिए।  
 
अजय देवगन ने संभवत: अपना वजन इस रोल के लिए बढ़ाया है ताकि 7 साल का फर्क नजर आए। अपने परिवार के लिए किसी भी हद तक आगे जाने वाले शख्स की भूमिका उन्होंने अच्छे से निभाई। विजय का किरदार वे पहले भी निभा चुके हैं इसलिए दूसरी बार इसे निभाना उनके लिए सरल था। 
 
श्रिया सरन और ईशिता दत्त के अभिनय को देख महसूस होता है कि वे एक्टिंग कर रही हैं। अक्षय खन्ना का किरदार इस फिल्म से जोड़ा गया है और वे अपनी एक्टिंग स्किल्स का बेहतरीन नमूना पेश करते हैं। हालांकि जिस तरह से उनके किरदार के बारे में बात की गई है, वैसा वे करते नजर नहीं आते हैं। तबू और रजत कपूर का अभिनय अच्छा है। तबू का रोल और बढ़ा होना था। सौरभ शुक्ला छोटे किंतु महत्वपूर्ण रोल में हैं। गाइतोंडे के किरदार में कमलेश सावंत खौफ पैदा करते हैं। 
 
दृश्यम आपने देखी है तो दृश्यम 2  (Drishyam2 review) देखना बनता है। 

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