भ्रष्टाचार से राष्ट्र को कैंसर होता है, इस लाइन से यूनिवर्सल स्टार कमल हासन की फिल्म 'हिंदुस्तानी 2' का आगाज़ होता है। 1996 में रिलीज हुई 'हिंदुस्तानी' (इंडियन) फिल्म में भी कमल हासन भ्रष्टाचारियों से लड़ते दिखाई दिए थे। स्वतंत्रता सेनानी सेनापति (कमल हासन) देश में फैले करप्शन से दु:खी होकर भ्रष्टों को खुद सबक सिखाने के लिए आगे आता है। पिछले 28 सालों में करप्शन बहुत ज्यादा बढ़ गया है और सोशल मीडिया पर मांग होती है कि हिंदुस्तानी वापस आओ। सुभाषचंद्र बोस का अनन्य भक्त हिंदुस्तानी फिर भारत लौटता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ सैकड़ों फिल्में दर्जनों भाषाओं में बन चुकी हैं, इसलिए जब शंकर जैसा निर्देशक और कमल हासन जैसा एक्टर इस मुद्दे को हाथ में लेकर फिल्म बनाते हैं तो कुछ नया और अनोखा होना चाहिए, लेकिन 'हिंदुस्तानी 2' में ये बात मिसिंग है।
हिंदुस्तानी सिर्फ नया फॉर्मूला ये देता है कि शुरुआत आप अपने घर से कीजिए। अपने घर में जो भी भ्रष्टाचारी है उसे कानून के हवाले कीजिए। लेकिन ये बात फिल्म में बहुत जल्दी असर खो देती है और फिर यह रूटीन फिल्म बन जाती है।
चित्रा (सिद्धार्थ) हिंदुस्तानी की बात मान कर अपने भ्रष्ट पिता को पकड़वा देता है, लेकिन इस कारण से जब उसकी मां बड़ा कदम उठा लेती है तो वह हिंदुस्तानी के खिलाफ हो जाता है। वही नहीं, बल्कि पूरा शहर और देश हिंदुस्तानी को धिक्कारने लगता है। अचानक सबका मन क्यों बदल जाता है, इस पर फिल्म बात ही नहीं करती। एक स्तर तक फिल्म को आगे बढ़ाने के बाद शंकर को कुछ सूझा नहीं कि फिल्म कैसे खत्म की जाए और इंटरवल के बाद फिल्म दिशाहीन हो जाती है।
शुरुआत में फिल्म बोल्ड लगती है,
जब कैलेंडर पर बिकिनी पहनी लड़कियों की तस्वीर छापने वाले और भष्टाचार कर विदेश भागने वाले एक व्यवसायी पर फिल्म हमला करती है।
जब सोने से बना टॉयलेट का उपयोग करने वाले गुजरात के एक व्यवसायी के पैसों के भोंडे प्रदर्शन को फिल्म उभारती है।
जब एक एक्शन सीन में एयरपोर्ट के कमजोर स्ट्रक्चर पर सवाल खड़े करती है।
जब गूगल देख ऑपरेशन कर रहे डॉक्टर के जरिये व्यवस्था पर प्रहार करती है।
जब आरके लक्ष्मण जो अपने कॉर्टून में 'कॉमन मैन' को दिखाते थे, उसके जरिये आम आदमी की दशा दिखाती है।
जब जनता को भी नहीं छोड़ती जो सरकार द्वारा बांटी जा रही मुफ्त की चीजों को हंसते-हंसते स्वीकारते हैं।
जब एक गाने में बैकग्राउंड में डांस कर रही महिलाओं के हाथ में खाली मटके दिखा कर चेन्नई के जलसंकट की ओर भी इशारा करती है।
यहां से उम्मीद जागती है कि फिल्म का तीखापन और तेज हो जाएगा, लेकिन इसके बाद शंकर फिल्म को ठीक से आगे बढ़ाने में चूक गए। शंकर ने कुछ मुद्दे उठाने के बाद दर्शकों के मनोरंजन का ध्यान रखने की कोशिश की। लंबे चेजिंग सीन और फाइटिंग सीन के जरिये मन बहलाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।
फिल्म में बूढ़े किरदार सेनापति को इस तरह से एक्शन करते देखना विश्वसनीय नहीं बना पाया। वर्मा कलई नामक विद्या के जरिये वह शरीर के कुछ हिस्सों पर चोट पहुंचा कर अनोखे तरीके से दुश्मनों को मारता है, लेकिन बात नहीं बन पाई।
एक किरदार को वह इस विद्या के जरिये घोड़े जैसा बना देता है जो दौड़ते-दौड़ते मर जाता है तो दूसरे को वह ऐसी जगह चोट पहुंचाता है कि उसके शरीर का सारा पानी खत्म हो जाता है। ये सीन बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाते।
फिल्म का क्लाइमैक्स सीन लंबा है, लेकिन शंकर की फिल्मों के स्तर के अनुरूप नहीं है। शंकर भव्यता के साथ बात खत्म करते हैं जो 'हिंदुस्तानी 2' में नजर नहीं आती।
शंकर हर बात को लाउड तरीके से पेश करने के लिए जाते हैं और हिंदुस्तानी 2 में ये लाउडनेस चुभती है। वे बात को मनोरंजक तरीके से नहीं दिखा पाए और न ही उनके पास ठोस कहानी थी। एक्शन में मजा नहीं आया और ड्रामा ऐसा नहीं है जो दर्शकों के दिल को छू सके।
कमल हासन ऊंचे दर्जे के कलाकार हैं और इस तरह के रोल करना उनके लिए बहुत ही आसान बात है। उनके लिए यह चैलेंजिंग रोल कतई नहीं था। उनके अलावा यह फिल्म किसी अन्य कलाकारों को ज्यादा मौके नहीं देती। कमल हासन के बाद सिद्धार्थ के पास ही सबसे लंबा रोल था, लेकिन वे निराश करते हैं। रकुल प्रीत सिंह, गुलशन ग्रोवर, पियूष मिश्रा, जाकिर हुसैन के लिए करने के लिए कुछ भी नहीं था। अखिलेन्द्र मिश्रा की तो सिर्फ झलक ही दिखाई दी।
फिल्म के अंत में हिंदुस्तानी 3 का भी वादा किया गया है, लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस होती। असल में हिंदुस्तानी के बाद हिंदुस्तानी 2 की भी जरूरत नहीं थी क्योंकि बताने के लिए कुछ भी नहीं था।