KGF 2 Review केजीएफ चैप्टर 2 में रॉकी (यश) की पत्नी को गरमी लग रही है और वह पंखे की डिमांड करती है, रॉकी फौरन हेलीकॉप्टर का पंखा स्टार्ट कर देता है। यह सीन दर्शाता है कि केजीएफ चैप्टर 2 किस तरह की फिल्म है। जहां फावड़े से काम चल सकता है वहां पर जेसीबी उपलब्ध करा दी गई है, यानी की इस सीरिज के फैन के लिए दूसरे भाग में वो सभी तत्व दस गुना है जिसकी चाहत में उन्होंने टिकट खरीदा है। यह फिल्म फैंस के लिए डिजाइन की गई है जिसमें स्टारडम कूट-कूट कर भरा हुआ है, भरपूर एक्शन है और डॉयलॉगबाजी है। सबकी अति कर दी गई है जो केजीएफ चैप्टर सीरिज और रॉकी के दीवानों को पसंद आएगा, लेकिन जो इस तरह की फिल्में पसंद नहीं करते हैं उन्हें अतिरंजित लगेगा।
केजीएफ चैप्टर 2 वहीं से शुरू होती है जहां पर चैप्टर 1 खत्म हुई थी। केजीएफ पर रॉकी का कब्जा हो गया है, लोगों के लिए वह भगवान है, लेकिन रॉकी के दुश्मनों की संख्या भी बढ़ गई है जो रॉकी के साम्राज्य को खत्म करना चाहते हैं। अधीरा (संजय दत्त) को रॉकी के सामने खड़ा किया जाता है जो बेहद क्रूर है।
चैप्टर 1 में सरकार और पुलिस की कोई खास भूमिका नहीं थी, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री रमिका सेन (इंदिरा गांधी से प्रभावित किरदार) रॉकी के अवैध कारोबार को खत्म करना चाहती है। रॉकी इन चुनौती का सामना करता है।
स्क्रिप्ट और निर्देशन इस तरह से किया गया है कि फिल्म की हर फ्रेम पर रॉकी की छाप है। रॉकी के आने पर पुलिस वाले थर-थर कांपते हैं। हर दूसरे संवाद में रॉकी की महिमा का बखान किया गया है। संवाद की बानगी देखिए- 'दुनिया में दो तरह के ग्रेविटेशनल फोर्स हैं, एक न्यूटन का जिसमें एप्पल ऊपर से नीचे आता है, दूसरा रॉकी का जिसमें पीपुल नीचे से ऊपर जाता है।'
रॉकी स्क्रीन पर नहीं है तो भी रॉकी की ही बात चलती है। हर दूसरे-तीसरे शॉट में रॉकी सिगरेट फूंकते हुए, आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए, हाथों में हथौड़ा और बंदूक लिए स्लो मोशन में वॉक करता नजर आता है। प्रशांत नील द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट में दूसरे किरदारों के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं है। इसलिए पूरी फिल्म रॉकिंग स्टार यश मय नजर आती है।
दरअसल यह कैरेक्टर ड्रिवन मूवी है और रॉकी का किरदार दर्शकों के दिमाग में इतना मजबूती के साथ फिट कर दिया गया है कि उन्हें फिल्म में और कुछ दिखाई नहीं देता है।
रॉकी के लिए कई बेहतरीन सीन रचे गए हैं जो रोमांचित भी करते हैं। एक भारी-भरकम मशीनगन जिसे फिल्म में मशीनगन की मां कहा गया है के जरिये रॉकी पुलिस स्टेशन में तबाही मचा देता है। हजारों गोलियां दाग देता है और गरम होकर अंगारा बन गई मशीनगन से सिगरेट सुलगाता है तो सिनेमाहॉल तालियों और सीटियों की आवाज से गूंज उठता है।
रॉकी का पहली बार अधीरा से सामना, अधीरा की टीम पर गोलीबारी, रॉकी का सीधे प्रधानमंत्री ऑफिस में घुसना और बात करना, रीना (श्रीनिधि शेट्टी) को पकड़ कर ले जाना और रॉकी का कार से पीछा करने वाले जैसे कुछ दृश्य हैं जिन्हें फिल्म का हाइलाइट कहा जा सकता है।
फिल्म का पहला हाफ तेज गति से भागता है, लेकिन दूसरा हाफ ज्यादा बेहतर है। इसमें कहानी भी आगे बढ़ती है और एक्शन भी देखने को मिलता है। क्लाइमैक्स में दर्शक एक जोरदार एक्शन सीक्वेंस की उम्मीद करते हैं, लेकिन यह अपेक्षा पूरी नहीं हो पाती।
कमियां भी हैं। लार्जर देन लाइफ मूवी के नाम पर खूब छूट ली गई है जो कुछ दृश्यों में अखरती है। रॉकी को मारने का एक बार अधीरा को मौका मिलता है, जो वह बिना ठोस कारण के छोड़ देता है। रीना को रॉकी द्वारा 'एंटरटेनमेंट' के लिए रखना अजीब लगता है। रॉकी से नफरत करने वाली रीना अचानक क्यों रॉकी की ओर आकर्षित हो जाती है? स्क्रिप्ट में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं है और कहानी सीधी है। भारत की प्रधानमंत्री का किरदार छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर महिला किरदार कमजोर हैं। वे या तो विलाप करती हैं, या उन्हें एंटरटेनमेंट कहा जाता है।
निर्देशक और लेखक प्रशांत नील का सीक्वल पहले भाग से बेहतर है। पहले भाग की कुछ कमियों को उन्होंने दूसरे में दूर किया है। फिल्म को तेज गति से दौड़ाया है और दर्शकों को ज्यादा सोचने का समय नहीं दिया है। एक्शन पर उनका फोकस रहा है और हथौड़ा, चेन, चाकू, रॉड, तलवार, फावड़ा, बंदूक के अलावा नए तरीके की मशीनगन भी उन्होंने किरदारों के हाथ में थमा दी है।
एक ही संवाद को तोड़ कर बीच-बीच में दृश्य डालने वाला और एक साथ दो से तीन सीक्वेंस को आपस में जोड़ कर दिखाने का उनका स्टाइल है। प्रशांत ने हर किरदार को स्टाइल और एटीट्यूड के साथ पेश किया है, चाहे रॉकी हो, विलेन हो या फिर रॉकी की मां या भारत की प्रधानमंत्री हो। हर कैरेक्टर के मुंह से शब्द ऐसे निकलते हैं मानो वो गोलियां हों।
फिल्म की एडिटिंग शानदार है और एक साधारण कहानी को एडिट कर किस तरह से स्टाइलिश तरीके से पेश किया जाता है यह इसका उदाहरण है। फिल्म को संपादित इस तरह से किया गया है कि सरल कहानी में खासे उतार-चढ़ाव नजर आएं। फिल्म का एक्शन बड़ा प्लस पाइंट है। संगीत के मामले में फिल्म कमजोर है। बैकग्राउंड म्यूजिक किरदारों जैसा लाउड है।
यश स्टाइलिश नजर आए हैं। उनकी अकड़ उनके कैरेक्टर को तीखा बनाती है। एक्टिंग से ज्यादा उन्होंने अपने एटीट्यूड पर ध्यान दिया है। एक्शन दृश्यों में वे जमे हैं। श्रीनिधि शेट्टी को खास अवसर नहीं मिला। संजय दत्त विलेन के रूप में प्रभावित करते हैं। उनका गेटअप उन्हें खतरनाक बनाता है। प्रधानमंत्री के रूप में रवीना टंडन को कुछ अच्छे सीन मिले हैं। प्रकाश राज, मालविका अविनाश, अर्चना जॉइस जैसे कलाकार का सपोर्ट अच्छा रहा है।
केजीएफ चैप्टर 2 की कहानी अस्सी के दशक में बनने वाली बॉलीवुड फिल्मों की तरह है जिसे आधुनिक तकनीक से जोड़ किस तरह से स्लीक, स्टाइलिश और स्वैग से भरपूर बनाया गया है इसका उदाहरण है।
निर्माता : विजय किरागंदूर
निर्देशक : प्रशांत नील
कलाकार : यश, श्रीनिधि शेट्टी, संजय दत्त, रवीना टंडन, प्रकाश राज