भारत में विदेशी लोग किराए की कोख के लिए आते हैं और यह व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है। इसी पर आधारित फिल्म 'मिमी' है जो एक गंभीर विषय को हल्के-फुल्के और मनोरंजक तरीके से पेश करती है। फिल्म की कहानी बेहद मजबूत है और दर्शकों को अंत तक बांध कर रखती है।
राजस्थान के एक शहर में रहने वाली मिमी (कृति सेनन) का सपना बॉलीवुड हीरोइन बनने का है। उसे पैसों की जरूरत है। दूसरी तरफ ड्राइवर भानुप्रताप पांडे (पंकज त्रिपाठी) एक अमेरिकी कपल को लेकर घूमता रहता है जिसे एक ऐसी लड़की की तलाश है जो उनके लिए बच्चे को जन्म दे सके।
मिमी को पसंद कर लिया जाता है और वह पैसों के लिए राजी हो जाती है। मिमी घर वालों को कह देती है कि वह मुंबई जा रही है क्योंकि उसे एक फिल्म मिल गई है। वह अपनी सहेली शमा (सई ताम्हणकर) के घर पर रहने लगती है। अमेरिकी कपल मिमी की देखभाल के लिए भानु को उसके पास छोड़ देता है। इसके बाद कहानी में ऐसा ट्विस्ट आता है कि मिमी और भानु की जिंदगी में भूचाल आ जाता है।
2011 में आई मराठी फिल्म 'मला आई व्हायचय' पर यह फिल्म आधारित है। फिल्म में कई ऐसे ट्विस्ट्स और टर्न्स हैं जो आपको हंसने पर मजबूर करते हैं। मिमी का अपनी मुस्लिम दोस्त के यहां रहना, उसके घर के बाहर दुकानदारों का बात करना, मिमी और भानु के बीच कई दृश्य, भानु की पत्नी का मिमी के घर आना, भानु और शमा के पिता का आमना-सामना होना, अच्छे बन पड़े हैं।
फिल्म दौड़ती रहती है और एक से बढ़कर एक सीन आते रहते हैं। कॉमेडी के साथ इमोशनल सीन भी चलते रहते हैं। लेखक और निर्देशक ने इन दृश्यों को अति भावुक होने से बचाया है और यह तारीफ की बात है। मिमी का गोरे बच्चे को जन्म देना और उसको लेकर जो माहौल बनाया है वो शानदार है। फिल्म का स्क्रीनप्ले अच्छे से लिखा गया है। छोटे-छोटे सीन पर मेहनत की गई है। उनको मनोरंजक बनाया गया है।
कुछ लोगों की शिकायत हो सकती है कि कहानी विश्वसनीय नहीं है। मिमी का इतनी जल्दी सरोगेसी के लिए तैयार हो जाना, उसके परिवार का इस बात को लेकर तीखी प्रतिक्रिया न देना, जैसी बातें फिल्म को झटके देती है, लेकिन लेखक और निर्देशक की प्राथमिकता फिल्म को मनोरंजक बनाने की थी, इसलिए वे इन बातों में ज्यादा नहीं उलझे। फिल्म आखिरी आधे घंटे में धीमी भी हो जाती है।
विदेशियों द्वारा भारत में सरोगेसी के लिए लड़की ढूंढने वाले मुद्दे को फिल्म जोर-शोर से नहीं उठाती है। इस पर काम किया जा सकता था। हालांकि फिल्म इस बात का इशारा जरूर करती है कि यह 'व्यापार' भारत में पैर पसार चुका है।
निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने पूरी फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। कलाकारों से अच्छा काम लिया है और दर्शकों की उत्सुकता को अंत तक बरकरार रखा है। फिल्म का अंत कई तरीके से हो सकता था, लेकिन जो अंत दिखाया गया है वो लॉजिकल लगता है।
कृति सेनन टॉप फॉर्म में नजर आईं और यह उनके करियर की बेहतरीन फिल्म है। मिमी के बिंदासपन को उन्होंने स्क्रीन पर अच्छे तरीके से पेश किया है। पंकज त्रिपाठी तो कमाल के अभिनेता हैं। कॉमिक सीन में उनकी टाइमिंग लाजवाब है। वे सीन में अपनी ओर से भी कुछ अतिरिक्त जोड़ देते हैं जिससे सीन में और निखार आ जाता है।
फिल्म में कई प्रतिभाशाली कलाकार हैं। मनोज पाहवा, सुप्रिया पाठक, सई ताम्हणकर ने अपने रोल यादगार तरीके से निभाए हैं, हालांकि सई को ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए। विदेशी दंपति के रूप में एवलिन एडवर्ड्स और एडन व्हायटॉक अपना असर छोड़ते हैं।
एआर रहमान द्वारा संगीतबद्ध गाने कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। 'छोटी सी चिरैया' और 'रॉक ए बाय बेबी' सुनने लायक हैं।
कुल मिलाकर 'मिमी' बात की गहराई में ज्यादा नहीं उतरती है, लेकिन मनोरंजक है।