सब कुशल मंगल स्टार किड्स को लांच करने के लिए बनाई गई है। फिल्म के हीरो प्रियांक शर्मा फिल्म एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरे के बेटे हैं जबकि हीरोइन रीवा किशन एक्टर रवि किशन की बेटी हैं।
स्टारकिड्स को लांच करते समय ज्यादातर प्रेम कहानी चुनी जाती है। उन्हें ऐसे सीन दिए जाते हैं जिसके जरिये वे दिखा सके कि वे डांस कर सकते हैं, एक्शन कर सकते हैं और एक्टिंग भी कर सकते हैं, लेकिन 'सब कुशल मंगल' में ऐसी कहानी ली गई है कि ये स्टारकिड्स बैकफुट पर नजर आते हैं।
कहानी का सारा फोकस अक्षय खन्ना पर है और इस तरह की फिल्म से प्रियांक और रीवा का तो भला होने वाला नहीं है।
पिछले साल सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति चोपड़ा की जबरिया जोड़ी फिल्म आई थी, जिसमें दिखाया गया था कि किस तरह से दहेज से बचने के लिए लड़की वाले गुंडों की मदद लेते हैं। ये गुंडे लड़के का अपहरण कर उसकी जबरिया शादी करवा देते हैं। लड़की वालों को दहेज की तुलना में गुंडों को उनकी फीस देना सस्ता पड़ता है।
यही बात सब कुशल मंगल में भी दिखाई गई है। मंदिरा (रीवा किशन) के पिता जब तीस लाख नकद और स्कार्पियो देने में असमर्थ रहते हैं तो वे बाबा भंडारी (अक्षय खन्ना) की शरण में जाते हैं जो धरपकड़ या जबरिया शादी करवाता है। पप्पू (प्रियांक शर्मा) का बाबा अपहरण कर लेता है। पप्पू मीडिया से जुड़ा है और उसका एक टीवी शो बहुत लोकप्रिय है।
शादी के ठीक एक दिन पहले पप्पू को मंदिरा देखती है और पसंद कर लेती है, लेकिन पप्पू के बारे में उसे कुछ गलतफहमी होती है और वह बाबा के चंगुल से उसे आजाद कर देती है। बाबा बहुत शर्मिंदा होता है कि वह मंदिरा की शादी नहीं करवा पाया, लेकिन वह मंदिरा पर फिदा हो जाता है।
इधर मंदिरा और पप्पू की गलतफहमी दूर होती है, लेकिन उनकी राह में बाबा आ जाता है। मंदिरा को 'मेट्रो टाइप लड़के' पसंद है इसलिए पप्पू की मदद बाबा लेता है। वह अपना लुक, ड्रेसिंग सेंस और भाषा उससे सीखता है ताकि मंदिरा के दिल में जगह बना सके। त्रिकोण कैसे सुलझता है यह फिल्म का सार है।
करण विश्वनाथ कश्यप ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। करण की कहानी कई सवाल खड़े करती है। पप्पू को एक तेजतर्रार पत्रकार दिखाया गया है। जब बाबा उसका अपहरण कर लेता है तो वह कभी भी वहां से भागने की कोशिश नहीं करता।
जब मंदिरा उसे भगा देती है तो भी वह पुलिस में जाकर बाबा का भंडाफोड़ नहीं करता जबकि पहले वह अपने टीवी शो में वह बाबा की करतूत के बारे में काफी बताता है।
जब पप्पू को पता चल जाता है कि मंदिरा को बाबा भी पसंद करता है तो भी वह बाबा को मॉडर्न बनने में क्यों उसकी मदद करता है यह समझ से परे है। पप्पू और मंदिरा की लव स्टोरी को भी ठीक से पकाया नहीं गया है। अचानक वे एक-दूसरे को प्रेम करने लगते हैं और दर्शक हतप्रभ रह जाते हैं कि यह सब कब और कैसे हो गया?
बाबा को बड़ा ही खतरनाक बताया गया है, लेकिन कभी भी उसका खौफ नजर नहीं आता। बाबा से पप्पू इतना डरता क्यों हैं, यह बात समझ ही नहीं आती।
पहले हाफ में फिर भी फिल्म थोड़ा ठीकठाक चलती है, लेकिन दूसरे हाफ में कहानी की ये कमियां खुल कर सामने आती हैं और फिल्म में रूचि खत्म हो जाती है। क्लाइमैक्स निराश करता है। किसी भी तरह स्थिति सुलझानी थी सो सुलझा दी गई।
निर्देशक के रूप में भी करण निराश करते हैं। उन्होंने पूरी फिल्म को कॉमिक टच दिया है और इसके लिए उन्होंने कलाकारों से जम कर ओवर एक्टिंग कराई है, इससे फिल्म बहुत ही नकली लगती है। फिल्म को हद से ज्यादा खींचा गया है कि सिनेमाघर में बैठना मुश्किल हो जाता है।
बैकग्राउंड म्युजिक आपको फिल्म देखते समय परेशान करता है। ऐसा लगता है मानो 'सब' टीवी का कोई सीरियल देख रहे हों। गाने बेदम हैं और ब्रेक का काम करते हैं।
प्रियांक शर्मा में हीरो वाली बात नजर नहीं आई और न ही फिल्म में उन्हें हीरो वाले अंदाज में पेश किया गया। पूरी फिल्म में उनका किरदार दबा-दबा सा रहा। अभिनय उनका ठीक-ठाक है।
रीवा किशन में आत्मविश्वास नजर आया, लेकिन उन्हें भी फिल्म में ज्यादा अवसर नहीं मिला। अक्षय खन्ना ने जम कर ओवर एक्टिंग की और वे बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर पाए। उनके लिए जो विग चुनी गई वो बहुत ही बचकानी है। सतीश कौशिक और सुप्रिया पाठक वाला ट्रैक कॉमेडी के लिए है लेकिन वो जम कर बोर करता है।