Thank God review थैंक गॉड‍ फिल्म समीक्षा: कॉमेडी के नाम पर ट्रेजेडी

समय ताम्रकर
Thank God Movie Review: पुण्य कमाओ, वृद्धों की सेवा करो, मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के बजाय भूखों को खाना खिलाओ, परिवार को समय दो, मां से दो पल बतियाया भी करो, धंधा या नौकरी ईमानदारी से करो, ऐसे मैसेजेस रोजाना व्हाट्स एप पर पढ़ने को मिलते हैं और बरसों से मिल रहे हैं। इन संदेशों के इर्दगिर्द निर्देशक इंद्र कुमार ने फिल्म 'थैंक गॉड' का ताना-बाना बुना है। 
 
तड़का डालने के लिए केबीसी शो जैसा 'गेम ऑफ लाइफ' डाल दिया है जिसे मनुष्य के पाप-पुण्य के हिसाब का बहीखाता संभालने वाले चित्रगुप्त उर्फ सीजी होस्ट करते हैं। मनोरंजन का बहुत स्कोप था, लेकिन स्क्रिप्ट इतनी लचर है कि फिल्म देखते समय मजा ही नहीं आता। 
 
निर्देशक इंद्र कुमार मनोरंजक फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं और बरसों से फिल्म इंडस्ट्री में टिके हुए हैं, लेकिन थैंक गॉड में उनका टच नदारद है। इसमें लेखक आकाश कौशिक और मधुर शर्मा का भी दोष है जो एक अच्छे आइडिए पर बढ़िया स्क्रिप्ट नहीं लिख पाए। 
 
अयान कपूर (सिद्धार्थ मल्होत्रा) कर्जे में डूबा हुआ है। कर्ज चुकाने के लिए अपना मकान बेचना चाहता है। बीवी रूही कपूर (रकुल प्रीत सिंह) से जलता है क्योंकि कभी वह पुलिस में जाना चाहता था, लेकिन असफल रहा और बीवी पुलिस ऑफिसर बन गई। लम्पट भी है और दूसरी महिलाओं को देख लार टपकाता है। पैसे कमाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाता है। परिवार को समय नहीं देता। 
 
ईर्ष्या, बेईमान, स्वार्थी, लालची अयान का एक्सीडेंट हो जाता है। इधर डॉक्टर जान बचाने में जुट जाते हैं और अयान की आत्मा स्वर्ग में 'गेम ऑफ लाइफ' खेलने लग जाती है। सूटेड-बूटेड चित्रगुप्त (अजय देवगन) दो आधुनिक अप्सराओं के साथ केबीसी नुमा सेट पर अयान के साथ पाप-पुण्य का गेम खेलते हैं। 
 
अयान से चित्रगुप्त उसकी जिंदगी की बड़ी घटनाओं का जिक्र करते हैं। फिल्म उन घटनाओं कर शिफ्ट होती है। अयान ने पाप किया या पुण्य, ये स्वर्गलोक में बैठी ऑडियंस तय करती है। 

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फिल्म का ट्रेलर और थीम से ये बात स्पष्ट थी कि ये एक कॉमेडी फिल्म है और इसमें दिमाग घर पर भी रख कर आओ तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन स्क्रिप्ट इतनी कमजोर है कि शुरुआती घंटे में तो हंसी क्या, मुस्कान भी नहीं आती। बेसिर-पैर की बातों से हंसाने की कोशिश में निर्देशक और लेखक बुरी तरह विफल रहे। 
 
अयान की जिंदगी से जुड़ी घटनाएं बेहद सतही और बचकानी है और इनमें दर्शकों के लिए बिलकुल भी मनोरंजन नहीं है। इन प्रसंगों से सीख देने की कोशिश की गई है, लेकिन ये सीख थोपी हुई लगती हैं। होना तो ये चाहिए था कि ये सीक्वेंसेस ही इतने दमदार होना चाहिए थे कि दर्शक खुद ब खुद सीख ग्रहण करते। 
 
अयान का अपनी पत्नी रूही से ईर्ष्या करने का कोई ठोस कारण नहीं था। अपनी बेटी के जन्मदिन पर अयान उसे ठीक से समय नहीं दे पाता, लेकिन यहां पर उसकी कोई गलती नजर नहीं आती क्योंकि वह खुद बेहद तनाव में था। अपनी मां के साथ भी उसके खराब व्यवहार की कोई भारी झलक फिल्म में नहीं मिलती। 
 
ऐसे में दर्शकों को महसूस होता है कि अयान को नाहक ही विलेन बनाया जा रहा है और ये स्क्रिप्ट की बड़ी खामी है। सिर्फ उसकी बहन वाला ट्रेक ही दमदार है और भावुक भी करता है। फिल्म का क्लाइमैक्स निहायत ही सपाट है और किसी तरह फिल्म को खत्म किया गया है। 
 
इंद्र कुमार सिर्फ आइडिए पर मोहित हो गए और उन्होंने बेतुकी स्क्रिप्ट पर फिल्म बना डाली और यही उनकी सबसे बड़ी गलती है। मनोरंजन की चाह में टिकट खरीदने वाले दर्शक खाली हाथ रहे। फिल्म में उनका कहीं भी नियंत्रण नजर नहीं आता। न नोरा फतेही का गाना दर्शकों में जोश जगा पाता और न ही कॉमेडी के पंच दर्शकों को हंसा पाते। 
 
कॉमेडी फिल्म में संवाद अहम रोल निभाते हैं, पर थैंक गॉड के संवादों के बारे में बात करना बेकार है। गीत-संगीत, सिनेमाटोग्राफी भी औसत दर्जे की है। 
 
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने लीड एक्टर के रूप में अच्छा काम किया है, लेकिन अजय देवगन के आगे टिक नहीं पाए। देवगन ने पूरे दम के साथ अभिनय किया है। रकुल प्रीत सिंह के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। 
 
थैंक गॉड को थैंक्स बोलने का कोई कारण नजर नहीं आता। मनोरंजन के नाम पर टिकट खरीदने वाले दर्शक ठगा महसूस करते हैं। 
 

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