भले ही रफ्तार अत्यंत धीमी हो, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है जिनका शादी नामक संस्था पर यकीन नहीं है। ‘इश्क इन पेरिस’ के हीरो और हीरोइन भी शादी नहीं करना चाहते हैं। उनका नारा है, नो कमिटमेंट प्लस नो लव इक्वल्स टू नो मैरिज। हीरो इसीलिए एक रात से आगे बात बढ़ने नहीं देता। यहां तक भी ठीक है, लेकिन वे शादी क्यों नहीं करना चाहते हैं, इसके पीछे हीरो के पास कोई ठोस वजह नहीं है और जहां तक हीरोइन का सवाल है उसके पास जो कारण है वो बेहद लचर है। इसलिए फिल्म में न तो ढंग की प्रेम कहानी है और न ही ये किसी बात या मुद्दे को पेश करती है।
आकाश (रेहान मलिक) और इश्क (प्रीति जिंटा) की मुलाकात एक रेल में होती है। दोनों पेरिस जा रहे हैं। आकाश अपना नाम अ-कैश या ए-केश बोलता है। आकाश पेरिस से अनजान है। वह इश्क से पेरिस घुमाने को कहता है।
ईमेल, मोबाइल नंबर और पता ना देने की शर्त पर इश्क उसे पेरिस घुमाती है। पूरी रात वे साथ घुमते हैं। ड्रिंक करते हैं। डिनर लेते हैं। पब जाते हैं। रात 3 बजे मूवी देखने का मन करता है, लेकिन देर हो चुकी है। इसलिए वे खुद एक रोमांटिक सीन अभिनीत करते हैं।
हीरो का मन सेक्स करने का है, लेकिन इश्क आधी फ्रेंच और आधी भारतीय है, इस मामले में भारतीय बन जाती है। घूमते-फिरते सुबह हो जाती है। वे साथ कॉफी पीते हैं और अब कभी न मिलने की शर्त पर अपनी-अपनी राह निकल जाते हैं।
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आकाश प्यार-मोहब्बत के खिलाफ है, लेकिन इश्क से इश्क कर बैठता है। अचानक उसके विचार बदल जाते हैं, लेखक और निर्देशक ने इसके लिए कोई भूमिका नहीं है। वह इश्क को प्रपोज करता है, लेकिन इश्क इसे ठुकरा देती है। वह शादी के खिलाफ इसलिए है क्योंकि उसके पैरेंट्स ने तलाक लिया था। इसको लेकर लंबी-चौड़ी बातें की गई हैं। इश्क को बुद्धिमान लड़की दिखाया गया है, लेकिन यहां उसके व्यवहार में बुद्धिमत्ता नहीं झलकती है। फिल्म के अंत में वह अचानक शादी के लिए राजी हो जाती है, क्योंकि फिल्म खत्म करना थी।
प्रिती जिंटा के लिए कोई फिल्म नहीं लिख रहा है, इसलिए प्रेम राज के साथ मिलकर उन्होंने ने स्क्रिप्ट लिखी है। कुछ दृश्यों और संवादों को छोड़ दिया जाए तो दोनों का काम निराशाजनक है। फिल्म एक अच्छी शुरुआत लेती है, लेकिन जल्दी ही कमजोर कहानी के कारण बिखर जाती है। निर्देशक के रूप में प्रेम राज बिना घटनाक्रमों के भी फिल्म को कुछ देर खींचने में कामयाब हुए हैं, लेकिन इसके बाद उनका नियंत्रण छूट गया।
जहां तक अभिनय का सवाल है तो प्रीति जिंटा और रेहान मलिक का काम औसत दर्जे का है। सलमान खान यारों के यार हैं, ये बात ‘इश्क इन पेरिस’ से साबित हो जाती है। प्रीति की खातिर उन्होंने एक ऐसा गाना किया है जिसकी न धुन में दम है और न ही कोरियोग्राफी में। इस बात का इतना फायदा जरूर होता है कि सलमान के नाम पर ऊंघते दर्शकों की नींद कुछ देर के लिए भाग जाती है। सिनेमाटोग्राफर मनुष नंदन ने पेरिस को बेहतरीन तरीके से फिल्माया है। ‘इश्क इन पेरिस’ की सबसे अच्छी बात ये है कि फिल्म 96 मिनट में ही खत्म हो जाती है।