भारत के इसरो ने अपने मून मिशन के तहत चंद्रायन-3 भेजा है। वैज्ञानिक उम्मीद जता रहे हैं कि 23 अगस्त की शाम को देश का चंद्रायन मिशन चांद पर लैंड करेगा और इतिहास रचेगा। रूस का लूना-25 पहले ही क्रैश हो चुका है, ऐसे में भारत के चंद्रायन पर पूरी दुनिया की नजर है। इस बीच यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका का मून मिशन एक झूठ था। दरअसल, अमेरिका के चांद पर पहुंचने वाली उपलब्धि को लेकर विवाद और सवाल भी हैं।
नासा ने 16 जुलाई 1969 को चांद पर 'अपोलो 11 मिशन शुरू किया था। इसके जरिए पहली बार चांद पर इंसानों (नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन) को भेजा गया था।
चांद नहीं कोई तारा : अमेरिका के मिशन पर कोई एक आरोप या सवाल नहीं है। दरअसल, यह भी आरोप लगाया जाता है कि अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा चांद से जो तस्वीर ली गई थी, उसमें एक भी तारा दिखाई नहीं दे रहा है। ये कैसे संभव है कि चांद पर ली गई तस्वीर में एक भी तारा कहीं नजर नहीं आया? वहीं, तस्वीर में एक भी ब्लास्ट क्रैटर क्यों नहीं दिखाई दे रहा? चांद पर उतरने वाले 17 टन के मॉड्यूल बालू पर खड़े दिख रहे थे, लेकिन उनका वहां कोई निशान क्यों नहीं बना?
आखिर क्या है सच : नासा ने जून, 1977 को एक फैक्ट शीट जारी की थी। इसमें उन्होंने ऐसे तथ्य बताए थे, जो साबित कर सकें कि अपोलो 11 मिशन फर्जी नहीं था। उन्होंने चांद से लाए ऐसे पदार्थ भी सामने रखे, जिन्हें धरती पर पैदा नहीं किया जा सकता। उसका कहना था कि ज्यादातर ऑपरेशन लैंडिंग के दौरान चांद से हजार फीट की ऊंचाई से किए गए थे। वहां कुछ विशेष परिस्थितियां बनाई गई थी।
ऐसा क्यों नहीं हुआ : दरअसल, अमेरिका के नासा के मून मिशन पर सवाल उठाने वाले कई वीडियो और तर्क सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं। जिनमें कहा जा रहा है कि जिस समय तकनीक और विज्ञान इतना समृद्ध नहीं था तो कैसे संभव है कि अमेरिका चांद पर चला गया। अगर गया था तो दोबारा अमेरिका ने चांद पर जाने की कोशिश क्यों नहीं की। कई सवाल हैं और कई आरोप। लेकिन इसका सच क्या है यह तो खुद अमेरिका और दुनिया की सबसे बडी विज्ञान ऐजेंसी नासा ही बता सकती है।
edited by navin rangiyal