रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य में दर्जनभर से ज्यादा क्षेत्रीय दल हैं, लेकिन ये दल कभी भी राजनीतिक ताकत के तौर पर नहीं उभरे। और तो और, अविभाजित मध्यप्रदेश में कभी 15 निर्दलीयों को विधानसभा भेजने वाला छत्तीसगढ़ जब अलग राज्य बना तो यहां निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव ही नहीं जीत सके।
राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाले प्रमुख क्षेत्रीय दलों में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच हैं।
धरसीवां विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी देवजी पटेल ने कहा कि कई बार स्थानीय मुद्दे इतने प्रभावी हो जाते हैं कि निर्दलीयों को उनका लाभ मिलता है और वे जीत जाते हैं। कभी निर्दलीय प्रत्याशी का प्रभावशाली व्यक्तित्व उसे जिता देता है।
कांग्रेस के पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू अभनपुर सीट से एक बार फिर विधायक हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में अस्तित्व में आने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति मुख्यत: कांग्रेस और भाजपा के आसपास ही घूमती रही है और यहां अन्य क्षेत्रीय दल पकड़ नहीं बना पाए। क्षेत्रीय दलों की बात छोड़ ही दें, यहां बीते दो चुनावों में एक भी निर्दलीय प्रत्याशी नहीं जीता।
उन्होंने कहा कि निर्दलीय प्रत्याशियों में ज्यादातर वे लोग होते हैं, जो अपनी मूल पार्टी से टिकट न मिलने पर बागी हो जाते हैं। अक्सर ऐसे लोग निर्दलीय खड़े होते हैं। ये जीतें या न जीतें,वोट जरूर काटते हैं।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन आपातकाल के दौरान श्रमिक नेता शंकरगुहा नियोगी ने किया था। नियोगी खुद कभी चुनाव नहीं लड़े लेकिन प्रत्याशी खड़े करते रहे। मोर्चे ने पहली जीत 1985 में दर्ज की जब उसके टिकट पर जनकलाल ठाकुर विधायक निर्वाचित हुए।
ठाकुर 1993 में भी जीते। नियोगी की हत्या के बाद मोर्चे की कमान उनकी पत्नी आशा नियोगी ने थामी, लेकिन छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद मोर्चा अपनी मौजूदगी नहीं दिखा सका।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भाजपा के एक बागी हीरासिंह मरकाम ने बनाई थी। मरकाम ने 1993 में चुनाव लड़ा और हार गए। वे 1998 में चुनाव जीत गए, लेकिन पृथक छत्तीसगढ़ बनने के बाद वर्ष 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में वे हार गए। पार्टी का मत प्रतिशत भी घटता गया। दोनों ही चुनावों में पार्टी ने प्रत्याशी उतारे लेकिन उसका खाता नहीं खुला।
इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी इसलिए चर्चा में आई, क्योंकि उसके टिकट पर सक्ती सीट से सक्ती राजघराने के सुरेंद्र बहादुर सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने उनका टिकट का दावा खारिज कर दिया जिससे नाराज होकर सिंह गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में शामिल हो गए और उसके टिकट पर सक्ती सीट से खड़े हो गए।
सुरेन्द्र बहादुर ने कहा कि जनता के लिए काम करना पार्टी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम किसी भी दल से खड़े हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। धनेन्द्र ने कहा कि निर्दलीय प्रत्याशी जीतने के बाद किसी भी दल से हाथ मिला लेते हैं इसलिए उन पर मतदाता भरोसा नहीं करता।
यही वजह है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में 1952 के विधानसभा चुनाव में 15 निर्दलीय प्रत्याशियों को जिताने वाले छत्तीसगढ़ में पिछले दो चुनावों में एक भी निर्दलीय नहीं जीता। निर्दलीय या क्षेत्रीय दल यहां वोट काट सकते हैं लेकिन जीतते नहीं, क्योंकि यहां की राजनीति फिलहाल कांग्रेस या भाजपा के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।
राज्य में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बिलकुल नया क्षेत्रीय दल है जिसका गठन भी भाजपा के ही एक बागी ने किया। भाजपा से 2 बार विधायक और 4 बार सांसद रहे ताराचंद साहू ने 2008 में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया।
वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में साहू ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार भी उन्होंने करीब 45 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। (भाषा)