लखनऊ। उत्तरप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी झांसी की रहने वाली 95 वर्षीय मानकुंवर डॉक्टरों को डर के मारे बेताल बोलती थीं लेकिन उनके भीतर का डर धीरे-धीरे खत्म हुआ और उन्होंने कोरोनावायरस को मात दे दी। महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के स्टाफ ने मानकुंवर की किसी भी बात का बुरा नहीं माना। मानकुंवर को 'झांसी की रानी' बुलाने वाले स्टाफ का कहना है कि इस उम्र में अस्पताल के माहौल में ढलने में मरीज को समय लगता है।
कोविड-19 अस्पताल के प्रभारी अधीक्षक डॉ. अंशुल जैन ने बताया कि मानकुंवर शुरू में चिंतित थीं, क्योंकि वे पहली बार अस्पताल आई थीं लेकिन धीरे-धीरे वे माहौल में ढल गईं। जूनियर डॉक्टरों ने मानकुंवर की परिवार वालों से बात कराई, वीडियो कॉल भी कराई।
डॉ. जैन ने बुधवार को बताया कि स्टाफ उन्हें हल्दी दूध और खाना देता था। दूसरे दिन से वे सामान्य हो गईं। मानकुंवर को जब 19 जुलाई को भर्ती कराया गया था तो उनमें कोरोनावायरस संक्रमण के कोई प्रकट लक्षण नहीं थे लेकिन उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
उनके पोते ने बताया कि दादी अकसर घर के भीतर ही रहती हैं। कभी-कभार ब्लडप्रेशर बढ जाता है अन्यथा उन्हें और कोई दिक्कत नहीं है। ठीक होने के बाद उन्हें 25 जुलाई को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। सरकारी प्रोटोकॉल के अनुरूप उन्हें 7 दिन के गृह क्वारंटाइन में रहने को कहा गया है।
वे अस्पताल से बाहर आईं तो एक महिला रेजीडेंट डॉक्टर ने मजाक किया कि अम्माजी, हम लोग बेताल नहीं हैं। मानकुंवर बोलीं कि तुम तो बेटा, परी-सी हो। उनके अस्पताल से बाहर निकलने पर चिकित्साकर्मियों और अन्य मरीजों ने ताली बजाकर खुशी का इजहार किया। इस उम्र में कोरोनावायरस संक्रमण से जंग जीतकर सकुशल वापस घर जाना उनकी उम्र के हजारों अन्य मरीजों के लिए प्रेरणादायी है। (भाषा)