कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड के काफी गलत इस्तेमाल से ब्लैक फंगस बनी महामारी,कमजोर इम्युनिटी वालों को ज्यादा खतरा : प्रो. सरमन सिंह

विकास सिंह

शुक्रवार, 21 मई 2021 (15:20 IST)
देश कोरोना के खौफ के साये में जी रहा है। कोरोना की दूसरी लहर के कहर से शहर से लेकर गांव तक में रहने वाला हर व्यक्ति सहमा सा नजर आ रहा है। अभी कोरोना की दूसरी लहर का आतंक मद्धिम भी नहीं पड़ा है कि कोरोना की तीसरी लहर की चर्चा शुरु हो गई है। वहीं कोरोना से रिकवर हुए मरीजों में अब ब्लैक फंगस बीमारी इतनी आम हो चुकी है अब इसे महामारी कहा जाने लगा है और उत्तर प्रदेश,राजस्थान,गुजरात सहित 7 राज्यों ने अब तक इसे महामारी घोषित कर दिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसे नई चुुनौती बताया है।

ब्लैक फंगस आखिर क्या है और कैसे यह अब महामारी के रुप में बदल गया है इसको समझने के लिए 'वेबदुनिया' ने देश के जाने माने हेल्थ एक्सपर्ट और भोपाल एम्स के निदेशक प्रो. सरमन सिंह से खास बातचीत कर पूरे मामले को समझने की कोशिश की।  
 
स्टेरॉयड के गलत इस्तेमाल से बढ़ा ब्लैक फंगस-कोरोना महामारी के साथ अचानक से ब्लैक फंगस के लगातार बढ़ते केस बढ़ने के ‘वेबदुनिया’ के सवाल पर एम्स डायरेक्टर प्रोफेसर सरमन सिंह कहते हैं कि म्यूकॉरमायकोसिस जिसे आम बोल चाल की भाषा में ब्लैक फंगस कहते हैं उसके केस बढ़ने का मुख्य कारण कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का गलत तरीके से उपयोग होना है।
 
कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में बहुत गलत तरीके से स्टेरॉयड का उपयोग हो रहा है यहां तक कई सारे डॉक्टरों ने होम आइसोलेशन में रहने वालों को भी स्टेरॉयड दे दिए जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहा। कोरोना संक्रमित ऐसे लोग जो डायबिटिक थे उनको भी स्टेरॉयड दिए जाने से उनका शुगर काफी बढ़ गया। ऐसे में संक्रमित मरीज की इम्युनिटी भी कम हो गई और उनको ब्लैक फंगस का संक्रमण तेजी से होने लगा।

डॉक्टर सरमन सिंह आगे कहते हैं कि वैसे तो ब्लैक फंगस वातावरण में होता है और हम सभी लोगों के संपर्क में आता है लेकिन हमारा इम्युन सिस्टम इतना मजबूत होता है कि शरीर इसको आगे नहीं बढ़ने देता लेकिन जब इम्युन सिस्टम कमजोर होता है तो इसकी ग्रोथ हो जाती है और यह शरीर को डैमेज करना शुरु कर देता है। कोरोना संक्रमित मरीजों के घर पर बिना डॉक्टर की सलाह के और बिना डॉक्टर के सुपरविजन के बिल्कुल भी स्टेरॉयड नहीं लेना चाहिए।
 
कोरोना के इलाज में प्लाज्मा और रेमडेसिवीर का क्या रोल?-‘वेबदुनिया’ से खास बातचीत में भोपाल एम्स निदेशक डॉक्टर सरमन सिंह कहते हैं कि देखिए प्लाज्मा और रेमडेसिविर दोनों ही कोरोना के इलाज की गाइडलाइन से बाहर कर दिया गया है। अब प्लाज्मा कोरोना के इलाज की गाइडलाइन से पूरी तरह बाहर हो चुकी है। कोरोना के इलाज में प्लाज्मा का कोई रोल नहीं और मैं लोगों से कहना चाहूंगा कि प्लाज्मा को लेकर पैनिक नहीं हो।
 
वहीं रेमडेसिविर का उपयोग भी केवल कोरोना संक्रमण जब मॉडरेट स्टेज पर होता है तभी इसका उपयोग होता है,रेमडेसिविर की जरूरत एक निश्चित स्टेज पर होता जब मार्कर हमको इंडीकेट करते है और जब ऑक्सीजन लेवल 70 और 90 के बीच में होता है तब वायरस को मारने के लिए इसकी जरूरत होती है। 

जब संक्रमण माइल्ड ‌स्टेज पर होता है और मरीज होम आइसोलेशन में होता है तभी इसकी कोई जररूत नहीं है। वहीं दूसरी ओर जब स्थिति क्रिटिकल हो जाती है तब भी इसकी उपयोग कोई जरूरत नहीं है
 
कोरोना की तीसरी लहर से मुकाबले का रोडमैप?-कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए सरकारों का किस रोडमैप पर आगे बढ़ना चाहिए,‘वेबदुनिया’ के इस सवाल पर एम्स डायरेक्टर प्रोफेसर सरमन सिंह कहते हैं कि  कोरोना की दूसरी लहर से हम लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिल चुका है और सरकारों को भी बहुत कुछ पता चल चुका है उनको क्या करना चाहिए। कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के हमें अपने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत कर व्यवस्थाओं को सुधारना होगा।
 
कोरोना की दूसरी लहर में हम देख रहे कि कोरोना गांवों तक पहुंच गया है, उसी तरह कोरोना की तीसरी लहर में भी कोरोना गांवों तक पहुंच सकता है इसलिए गांव में प्राइमरी हेल्थ सेंटर और स्वास्थ्य सुविधाओं को और सुदृढ़ करना होगा। डॉक्टरों, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टॉफ को भर्ती कर उनको दी जारी सुविधाओं की और बढ़ोत्तरी करना होगी। गांवों में नियुक्ति होने वाले डॉक्टर और स्टॉफ को और अधिक सुविधाएं देनी होगी जोकि अभी नहीं मिल पा रही है। अगर डॉक्टर और नर्स को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी तो निश्चित तौर पर वह गांव में जाएंगे।

गांव में जब महामारी फैलती है तो इसलिए समस्या अधिक होती है क्योंकि हर आदमी शहर की ओर भागता है क्योंकि गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं है। अगर हमारे देश में गांव-गांव में ही स्वास्थ्य सुविधाएं हो जाए तो लोग शहर की ओर नहीं भागेंगे और उनका इलाज वहीं हो सकेगा। इसका सीधा असर यह होगा कि एम्स और ऐसे इंस्टीट्यूट उन पर लोड कम होगा और वह जिस काम के लिए बने है वह कर सकेंगे।
 
कोरोना की तीसरी लहर का बच्चों पर क्या असर?- कोरोना की तीसरी लहर का बच्चों पर ज्यादा असर होगा इस तरह के सवाल इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। कोरोना की तीसरी लहर और इसके बच्चों पर असर पर डॉक्टर सरमन सिंह कहते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन कोरोना की तीसरी लहर का केवल बच्चों पर ही असर होगा यह कहना मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। तीसरी लहर में बच्चों को इसलिए ज्यादा खतरा रहेगा क्योंकि बच्चे तब तक वैक्सीनेटड नहीं नहीं होंगे और उनकी तुलना अन्य लोगों को वैक्सीन लग चुकी होगी,इसलिए बच्चों पर अधिक खतरा देखा जा सकता है। 
 

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