मारिआनो कैबरेरो नॉर्थवेस्ट स्पेन क्षेत्र के एक 68 साल के रिटायर्ड टीचर हैं। अपने रिटायर्ड के बाद जिंदगी का लुत्फ उठाने के लिए उन्होंने यात्रा के लिए सबसे पहले भारत को चुना था।
वो भारत के दर्शन कर जानना चाहते थे कि आखिर भारत की आत्मा है क्या?
उन्होंने बार्सिलोना से अपना सफर शुरू किया और दुबई पहुंचे। दुबई से मुंबई। इस तरह 5 दिसंबर को वे भारत आए।
लेकिन कुछ ही दिनों में मारिआनो की यह यात्रा ‘लॉकडाउन’ की वजह से एक भयावह अनुभव बनकर रह गई। वो भी एक एक पराये देश में हजारों लाखों अजनबियों के बीच।
उन्होंने एक सोलो ट्रेवलर के तौर पर यह यात्रा शुरू की थी। वे अकेले राजस्थान के रेगिस्तान और यहां के आलिशान महल, विरासत और सभ्यता को जान-समझ रहे थे। तभी उदयपुर में उनके होटल संचालक ने उन्हें बताया कि अब उन्हें भारत से अपने घर लौट जाना चाहिए।
लेकिन तब तक शायह बहुत देर हो चुकी थी। भारत सरकार ने सभी अंतराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर दिया था।
मारिआनो ने दो दिन मुंबई के सीएसटी टर्मिनल टू एयरपोर्ट पर फर्श पर सोकर रातें गुजारीं।
लेकिन सुरक्षाकर्मी और पुलिस ने उन्हें वहां से भी हटा दिया। उनके पास कोई विकल्प नहीं था। कोई होटल उन्हें रखने को तैयार नहीं था। कहीं जाने का कोई रास्ता भी नहीं।
उन्होंने दिल्ली में स्पेनिश एंबैसी में भी संपर्क किया, जहां से जवाब मिला कि कम से कम 14 अप्रैल तक कुछ नहीं हो सकता।
कुछ वक्त बाद उन्हें मुंबई के वर्सोवा में हारमनी फाउंडेशन द्वारा शुरु की गई शिविर व्यवस्था में भेज दिया गया। अब वे मुंबई के एक मैदान में संचालित इस शिविर में 265 लोगों के साथ रह रहे हैं। एक मामूली गद्दे पर अपने घर और बच्चों को याद कर रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस को उन्होंने अपनी यात्रा की यह कहानी उन्होंने बताई।
मारिआनो कहते हैं, कि कोरोना ने दुनिया में सबसे ज्यादा स्पेन को तबाह किया है, जहां उनका परिवार रहता है। मारिआनो ने बताया कि उनके तीन बेटे और एक बेटी है। हालांकि वे सभी अब तक सुरक्षित हैं।
डिप्टी कलेक्टर राजेश्वरी कोरी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कौंसल जनरल स्पेन को मुंबई में मारिआनो को लेकर चर्चा की गई है। उम्मीद है कुछ दिनों में यूरोप जाने वाली किसी फ्लाइट में उन्हें भेजा जा सके।